कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते लगे प्रतिबंधों से वैश्विक स्तर पर प्रवासन लगभग 30 प्रतिशत तक धीमा हो गया है। संयुक्त राष्ट्र की शुक्रवार की एक रिपोर्ट से ये खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019-20 के बीच तकरीबन 20 लाख लोग पलायन कर गए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 में 28 करोड़ 10 लाख लोग अपने मूल देश से बाहर रह रहे थे।
“इंटरनेशनल माइग्रेशन 2020” शीर्षक से रिपोर्ट में दिखाया गया है कि पंजीकृत प्रवासियों में से दो-तिहाई 20 से कम देशों में कैसे रहते थे।
संयुक्त राज्य अमेरिका इस सूची में सबसे ऊपर है, जिसमें 2020 में 5 करोड़ 10 लाख प्रवासी मौजूद थे।
जर्मनी 1 करोड़ 60 लाख प्रवासियों के साथ दूसरे स्थान पर था, इसके बाद सऊदी में अरब 1 करोड़ 30 लाख प्रवासी थे, रूस 1 करोड़ 20 लाख प्रवासी के साथ चौथे नंबर पर और पांचवें स्थान पर ब्रिटेन में 90 लाख प्रवासी थे।
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2020 में सबसे ज्यादा प्रवासी भारत से थे, सूची में पहले स्थान पर। रिपोर्ट के अनुसान 2020 में 1 करोड़ 80 लाख भारतीय अपने जन्म से बाहर रह रहे थे।
अपने मूल देश के बाहर रहने वाली एक बड़ी आबादी वाले देशों में मेक्सिको भी है। रूस के 1 करोड़ 10 लाख, चीन 1 करोड़ और सीरिया के 80 लाख लोग दूसरे देशों में प्रवासी हैं।
प्रवासियों की सबसे अधिक संख्या 8 करोड़ 70 लाख 2020 में यूरोप में रहती थी।
लगभग आधे विदेशी प्रवासियों ने अपने मूल देश के नजदीकी किसी देश में रुख कर लिया। उदाहरण के लिए, यूरोप में 70 फीसदी प्रवासी जो यूरोप में ही जिस देश में पैदा हुए थे, अब दूसरे यूरोपीय देश में रह रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों में शरणार्थियों का 12 फीसदी हिस्सा है।
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक जलवायु संकट अगले 30 वर्षों में दक्षिण एशियाई देशों के भीतर 6 करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों को उनके घरों से विस्थापित कर सकता है।
एक्शनएड इंटरनेशनल एंड क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ग्लोबल वार्मिंग अपने मौजूदा रास्ते पर जारी रही तो समुद्र का बढ़ता स्तर और सूखा दक्षिण एशियाई आबादी के एक बड़े हिस्से को पलायन के लिए मजबूर कर देगा।