द लीडर हिंदी : उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में कोरोना वैक्सीनेशन के दौरान स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बढ़नी के उपकेंद्र औंदही कलां में 20 लोगों को पहली डोज कोविशील्ड की लगाई गई थी, फिर दूसरी डोज कोवैक्सीन की लगा दी गई.
जब अलग अलग कंपनी की वैक्सीन 20 लोगों को लगाएं जाने की बात स्पष्ट हुई तो स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया. जिन लोगों को अलग-अलग वैक्सीन की डोज दी गई है वे फिलहाल स्वस्थ हैं.
सीएमओ का दावा हैं कि जांच में दोषी पाए जाने के बाद एएनएम समेत तीन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति डीएम से की गई है. मामला सुर्खियों में छाया तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार लापरवाही का उदाहरण है.
उप्र के सिद्धार्थनगर में 20 ग्रामीणों को कोरोना की पहली व दूसरी डोज में कोवीशील्ड व कोवैक्सीन के अलग-अलग टीके लगाया जाना, भाजपा सरकार की लापरवाही का निकृष्ट उदाहरण है। इससे प्रभावित लोगों को डॉक्टरी निगरानी में रखा जाए।
इस तरह के वैक्सीनेशन सर्टिफ़िकेट पर किसका चित्र होगा? pic.twitter.com/6uf1MiNfMA
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) May 26, 2021
टीकाकरण की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सिद्धार्थनगर जिले के ग्रामीणों को कोरोना वैक्सीन की पहली व दूसरी डोज में अलग-अलग टीके लगाए जाने पर सरकार को घेरा है। अखिलेश ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि सिद्धार्थनगर जिले में 20 ग्रामीणों को कोरोना की पहली व दूसरी डोज में कोविशील्ड व कोवैक्सीन के अलग-अलग टीके लगाया जाना भाजपा सरकार की लापरवाही का निकृष्ट उदाहरण है। सपा अध्यक्ष ने इससे प्रभावित लोगों को डाक्टर की निगरानी में रखे जाने की जरूरत बताते सवाल पूछा कि इस तरह के वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर किसका चित्र होगा।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बढ़नी के उपकेंद्र औंदही कलां में 20 लोगों को अलग-अलग वैक्सीन की डोज लगाने के मामला 14 मई को सामने आया था, लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है। लोगों की निगरानी करने और जांच कराने के सीएमओ के दावे के बाद भी किसी मरीज की निगरानी नहीं हुई और न ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई। जिलाधिकारी दीपक मीणा ने दो सदस्यीय टीम बनाकर तीन दिन में जांच रिपोर्ट मांगी थी। जांच टीम के सदस्यों एसीएमओ डा. सौरभ चतुर्वेदी व डा. डीके चौधरी ने एएनएम, केंद्र प्रभारी व ब्लाक कोल्ड चेन मैनेजर को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की है।
सिद्धार्थनगर के सीएमओ संदीप चौधरी का कहना है कि उन्होंने एएनएम के निलंबन समेत तीनों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति पांच दिन पहले की है। वहीं, डीएम दीपक मीणा का कहना है कि उन्होंने दो दिन पहले ही एएनएम को निलंबित करने के निर्देश दे दिए हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि दो दिन पहले जांच रिपोर्ट मिली थी। जिन लोगों को अलग-अलग वैक्सीन लगी है, सभी की एंटीबाडी जांच कराई जाएगी।
परिवार कल्याण महानिदेशालय ने मांगी रिपोर्ट : सिद्धार्थनगर में 20 ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के लिए टीका लगाने में लापरवाही उजागर हुई है। इन लोगों को पहली व दूसरी डोज में एक ही कंपनी की वैक्सीन की न देकर अलग-अलग कंपनी की दे दी गई। एक डोज कोवैक्सीन और दूसरी कोविशील्ड की दे दी गई। फिलहाल अब परिवार कल्याण महानिदेशालय की ओर से मामले की रिपोर्ट मांगी गई है और जांच के बाद कार्रवाई होगी।
रामसूरत, इकराम, राधेश्याम, बेलावती, मालती देवी, छेदीलाल, सनेही, शहाबुद्दीन, इंद्र बहादुर, रामकुमार, गोपाल, मुन्नी, अनारकली, चंद्रावती, सोमना, रामकिशोर, मालती, देवी, रामप्रसाद, उर्मिला, नंदलाल चौधरी को पहले कोविशील्ड, फिर कोवैक्सीन की डोज लगी है.
मानपुर और औदही कलां के 20 ग्रामीणों को पहली डोज कोविशील्ड और दूसरी कोवैक्सीन लगाई थी। एएनएम कमलावती ने कहा था कि बढ़नी से यही वैक्सीन लगाने के लिए मिली थी। किसी ने नहीं बताया कि दूसरे डोज में इसे नहीं दे सकते। एमओआइसी बढ़नी डा. एसके पटेल ने माना भी था कि गलती से केंद्र पर कोविशील्ड की जगह कोवैक्सीन चली गई थी।
टीका लगवा चुकीं उर्मिला का कहना है कि कोरोना से बचाने के लिए दोनों टीका लग चुका है। एक बार कोविशील्ड लगाई, दूसरी बार कोवैक्सीन। फिलहाल डर बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक कोई जांच नहीं कराई है। वहीं, चंद्रावती ने कहा कि दूसरा टीका लगने के बाद मन में डर लगातार बना हुआ है। अभी तक स्वास्थ्य विभाग का कोई स्टाफ हाल जानने नहीं आया है। फिलहाल कोई समस्या नहीं है। अभी तक कोविड19 की जांच भी नहीं हुई है। एंटीबाडी की जांच भी नहीं की गई।
भारत में अभी तक कोविड-19 के दो टीके कोविशील्ड और कोवैक्सीन ही लगाए जा रहे हैं। अगर किसी को पहला टीका कोविशील्ड का लगा है तो दूसरा भी वही लगना चाहिए। अगर पहला इंजेक्शन कोवैक्सीन का था, तो दूसरा भी इसी का होना चाहिए। इसकी जानकारी टीकाकरण करने वाले लगभग सभी हेल्थ प्रोफेशनल्स को रहती है। इसके बाद भी घोर लापरवाही बरती गई है।