चुनाव के मंच से या मुस्कुराहट के साथ कुछ कहना हेट स्पीच नहीं-दिल्ली हाईकोर्ट

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Hate Speech Delhi High Court
दिल्ली हाईकोर्ट.

द लीडर : ‘हेट स्पीच’ क्या है. ऐसा भाषण या बयान, जो सोसायटी में नफ़रत फैलाए. यही न. लेकिन मुस्कुराहट के साथ नफ़रत की आग भड़काना हेट स्पीच नहीं है. नफ़रत मापने का ये स्केल दिल्ली हाईकोर्ट का है. इसलिए हेट स्पीच पर अदालत की टिप्पणी बहस का केंद्र बन गई है. इस पर तमाम-तरह के तर्क-वितर्क सामने आ रहे हैं. लेकिन हेट स्पीच से जुड़ा ये कौन सा मामला है और उस पर अदालत ने क्या कहा-पहले ये जान लेते हैं. (Hate Speech Delhi High Court)

मामला केंद्र सरकार में मंत्री अनुराग ठाकर और दिल्ली भाजपा के नेता प्रवेश शर्मा से जुड़ा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव के दरम्यान 27 जनवरी 2020 को अनुराग ठाकुर की सभा में ये नारे लगे थे-“देश के गद्​दारों को, गोली मारो सालों को”. उस वक़्त दिल्ली के शाहीनबाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ प्रोटेस्ट चल रहा था. और लगातार भड़काऊ बयानबाजी का सिलसिला बना था. बाद में फरवरी 2020 में पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़क गए थे.

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के बयान को लेकर सीपीएम नेता वृंदा करात और पॉलिटीशियन केएम तिवारी ने ठाकुर के ख़िलाफ एफआइआर दर्ज़ करने की मांग को लेकर अदालत में याचिका लगाई थी. (Hate Speech Delhi High Court)


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दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि, क्या ये चुनावी स्पीच थी या सामान्य. अगर ये बात चुनाव के दरम्यान कही गई है तो अलग चीज़ है. अगर आप सामान्य तौर पर ऐसा कहते हैं तो इसका मतलब भड़काने का इरादा होगा. जस्टिस सिंह ने कहा कि, जब कोई बात मुस्कुराहट के साथ कही जाती है, तो उसमें कोई क्रिमिनालिटी यानी अपराधिकता नहीं होती है. चुनावी भाषणों में नेताओं द्वारा बहुत सी बातें कही जाती हैं, लेकिन ये भी ग़लत है.

भड़काऊ भाषण के आरोप में कई एक्टिविस्ट-छात्र जेल में हैं

दिल्ली दंगों के बाद पुलिस ने कई छात्र और एक्टिविस्टों को इस आरोप में गिरफ़्तार किया था कि उनके भाषण भड़काऊ हैं. इसमें उमर ख़ालिद, उनसे पहले शरजील इमाम और दूसरे एक्टिविस्ट व स्टूडेंट्स शामिल हैं. कुछ को ज़मानत मिल चुकी है तो कई अभी तक जेल में है. (Hate Speech Delhi High Court)

बेलगाम ज़ुबान, ज़हरीली भाषा और नफ़रत की बयार

हेट स्पीच का सिलसिला कहां जाकर थमेगा. किस रूप में इसका अंत होगा. इस चिंता के बीच कश्मीर फाइल्स फिल्म ने आग में और घी डाल दिया है. कई सिनेमाघरों से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ भड़काऊ दृश्य सामने आ चुके हैं. पिछले साल दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक सम्मेलन में तो मुसलमानों के नरंसहार का आह्वान किया गया था. हरिद्वार धर्म संसद में खुलेआम नरंसहार की अपील की गई.

इस मामले में शिया वक़्फ बोर्ड का पूर्व चेयरमैन जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी-अभी जेल में है. तो यति नरसिंहानंद सरस्वती को ज़मानत मिल चुकी है. बुल्लीबाई-सुल्ली डील्स एप पर मुस्लिम लड़कियों की नीलामी की करतूत भी समाज को आग में झोंकने की ही कोशिश है. इस सबके बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, नफ़रत के फलने-फूलने का सबसे बड़ा अड्डा साबित हुआ है. लेकिन सवाल ये है कि आख़िर इस नफ़रत का सौदाग़र है कौन. क्या संवैधानिक संस्थाएं इस नफ़रत को कंट्रोल कर पाएंगी. (Hate Speech Delhi High Court)


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