रमज़ान में दरगाह आला हज़रत का पैग़ामः ज़कात के पैसे से ग़रीब को कारोबार कराएं

0
546
Dargah Ala Hazrat Nepal Court
आला हज़रत दरगाह

मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी

रमज़ान का महीना अल्लाह का इनाम है, जो उसने उम्मत-ए-मुहम्मदिया को अता फरमाया. इस माहे मुक़द्दस में सुबहो शाम और हर समय अल्लाह की तरफ से रहमतें और बरकतें नाज़िल होती रहती हैं. हर तरफ नूर और खुशहाली, नेकियों की बहार दिखाई देती है. हर जगह दीनदारी और मज़हबी फ़िज़ा की किरणें चमकती हैं.
इस माहे मुबारक में रब तआला मोमिन और रोज़ेदार का रिज़्क बढ़ा देता है. जिन चीज़ों के खाने का एहतमाम आदमी दूसरे दिनों में नही कर पाता मगर इन दिनों में कर लेता है. इफ्तार, सहरी, तरावीह ही नहीं बल्कि हर घड़ी बेशुमार लोगो की बख़्शिश की जाती है. रोज़े की जज़ा खुद रब तआला देता है. खुदाए तआला खुद रोज़े की जज़ा और बदला बन जाता है.

इस महीने की एक खासियत यह भी है कि इस महीने में नेक कामों का अज्र और सवाब कई गुना बढ़े दिया जाता है. सुन्नत का सवाब फर्ज़ और फर्ज़ का सत्तर गुना कर दिया जाता है. इस माह मरने वाला मोमिन बिना हिसाब जन्नत में जाएगा और उससे क़ब्र में नकीरैन के सवालात नहीं होंगे. रोज़ेदार को हर तरफ़ से रहमत और बरकत अपने घेरे में लिए रहती है. इसलिए इस महीने का अभिनंदन एक ख़ास मेहमान की तरह करें. ज़्यादा से ज़्यादा समय मस्जिद में गुजारें. क़ुरान इसी महीने उतरा है, इसलिए क़ुरान ख़ूब पढें. तफ़सीर पढें, उसके अनुवाद को समझने के लिए किसी आलिमे कुरआन से पढें. दुरुद शरीफ़ ख़ूब पढें.


मस्जिद अल-हरम और नबवी में दो साल बाद इफ्तार की इजाजत


जुए, शराब, चोरी, झूठ, बुराई, ग़ीबत से बचें. ग़रीबों को फातेहा का खाना देकर उनकी मदद करें. जिक्र की महफिलें सजाएं, नमाज़े तरावीह का ख़ूब एहतेमाम करें. सदक़े और ज़कात से गरीबों की मदद करें. पांच दस रुपये देने के बजाय ग़रीब और मुस्तहक़ ज़कात अपने क़रीबी रिश्तेदार को इकठ्ठी ज़कात देकर उसे कोई कारोबार करा दें या दुकान आदि दिला दें. किसी ग़रीब छात्र को फीस जमा करने के लिए दे दें कि पढ़-लिख कर बरसरे रोज़गार हो जाए. ताकि आइन्दा वह खुद दुसरे की मदद कर सके.


रमज़ान 2022: कुवैत ने लगाया मस्जिदों में इफ्तार पर ‘बैन

 


समाज से ग़रीबी दूर करने ही के लिए इस्लाम ने ज़कात सिस्टम लागू किया है और यह तभी होगा जब आप हर साल अपनी ज़कात से हसबे हैसियत एक, दो, पाँच, दस बेरोज़गारों को बरसरे रोज़गार कर दें कि वह खुद जकात देने वाले बन जाएं। वरना एक, दो,पांच दस रुपये देकर रस्म अदा करने से फ़क़ीर बढ़ेंगे, खत्म नही होंगे. इस तरह भीख बांटकर हम और आप समाज में भिखारी बढ़ाने का काम कर रहे हैं. इस्लाम का मक़सद ज़कात सिस्टम से समाज से भिखारी, भीख प्रथा और ग़रीबी को दूर करना है.


(आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)