-नेता जी सुभाष चंद्र बोस जयंती विशेष-
द लीडर : हिंदुस्तान की आजादी की खातिर कुर्बानी देने का वो पाक जज्बा. जिस खूबसूरत याद की एक पूरी एल्बम है. उसमें तमाम चेहरे हैं, जो हर पल मेरे आस-पास साये की तरह रहते हैं. वे सब हमारे दोस्त हैं-साथी हैं. जिनमें कर्नल हबीब, कैप्टन राम सिंह, शौकत मलिक और शाह नवाब खान से लेकर हम सबके अजीज नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं. वतन की आजादी की ये खूबसूरत यादें आज भी जोश से भर देती हैं. नेताजी, जिनकी कल्पना भर से भुजाएं फड़कने लगती हैं. और काफी देर तक कानों में जय हिंद का शंखनाद गूंजता रहता है.’ कर्नल महबूब अहमद, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद-हिंद फौज के सैनिक थे, वे अपनी किताब, मौत की मस्ती और जीने का सुख में अपने साथियों को कुछ इस तरह याद करते हैं. (Colonel Mahboob Subhash Chandra Boses Army Jai Hind)
कर्नल महबूब अहमद ने 9 जून 1992 को आखिरी सांस ली थी. उनकी ये किताब बिहार की ऐतिहासिक लाइब्रेरी खुदा बख्श से 1993 में उर्दू जुबान में प्रकाशित कराई थी. उनकी यौमे वफात (पुण्यतिथि) पर दरगाह आला हजरत पर उन्हें याद किया गया. दरगाह के मदरसा मंजरे इस्लाम ने वर्चुअल संगोष्ठी की.
कर्नल महबूब अहमद बिहार के पटना में एक उच्च शिक्षित परिवार में 1920 में पैदा हुए थे. उनके पिता डॉक्टर थे, इसलिए महबूब की पढ़ाई लिखाई भी अच्छे माहौल में हुई. शुरुआती शिक्षा देहरादून कराई. इसके बाद महबूब अहमद इंडियन मिलीट्री एकेडमी देहरादून में पढ़े. अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा उत्तरीर्ण करके ब्रिटिश सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हुए.
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लेकिन महबूब को सेना की वो नौकरी रास नहीं आई. इसलिए क्योंकि उनकी रगों में देश की आजादी का जुनून दौड़ रहा था. साल 1943 में उन्होंने अंग्रेजी सेना की नौकरी छोड़कर सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ज्वॉइन कर ली. और देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष का हिस्सा बन गए.
इंडियन नेशनल आर्मी जिसे आजाद हिंद फौज कहा जाता है-उसमें उस वक्त करीब 43 हजार सैनिक थे. लेकिन कर्नल महबूब सुभाष जी के काफी अजीज थे. मौलाना कहते हैं कि म्यांमार, जोकि तब बर्मा हुआ करता था. उसके युद्ध के बाद के जब INA को मदद की सख्त जरूरत थी. तब सैनिकों के लिए वर्दी और खाने पीने के बंदोवस्त में कर्नल महबूब ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
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मदरसे की ओर से आयोजित संगोष्ठी में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के उप निदेशक जगमोहन सिंह और मुफ्ती सलीम नूरी शामिल हुए. मुफ्ती सलीम ने कर्नल महबूब अहमद की जिंदगी पर रौशनी डाली. उन्होंने कहा कि तहरीके आज़ादी और भारत को ब्रिटिश राज्य से मुक्ति दिलाने में अहम भमिका निभाने वाले इंडियन नेशनल आर्मी के हीरो कर्नल महबूब अहमद, नौजवानों के लिए प्ररेणास्रोत हैं. उन्होंने 1943 में आजाद हिन्द फौज की कमान संभाली. और फौज का विस्तार किया. देश की खातिर बलिदान देने वाले योद्धाओं को इसमें भर्ती करना शुरू किया.
दरअसल, एक मौके पर कर्नल महबूब अहमद ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का देश प्रेम से जुड़ा एक भाषण सुना, जिसने उन्हें अंग्रेजी हुकूमत की नौकरी छोड़कर आजाद हिंद फौज में शामिल होने का जज्बा दिया. दिलचस्प बात ये है कि म्यांमार की सीमा पर कर्नल महबूब की पहली मुठभेड़ ब्रिटिश सेना से ही हो गई. जिसमें उन्होंने अंग्रेजी फौज के छक्के छुड़ाते हुए आज़ाद हिन्द फौज को एक ऐतिहासिक जीत दिलाई.
1944 में इंफाल के करीब एक लंबी लड़ाई के बाद आज़ाद हिन्द के योद्धा, कर्नल शौकत मलिक, लाल सिंह, राम प्रसाद, मोहम्मद खान, मेजर आबिद हसन के साथ मिलकर उन्होंने इंफाल की सरजमीं पर आजाद हिन्द फौज का परचम फहरा दिया. आजाद हिंद फौज में सभी धर्मों के जांबाज योद्धा शामिल थे.
मंजरे इस्लाम के शिक्षक कमाल अहमद ने कहा कि आज देश में जो लोग सांप्रदायिक माहौल पैदा करने की कोशिश करते हैं. उन्हें इन जांबाजों की जीवनी पढ़ने की जरूरत है. ताकि वे देश की एकता और अखंडता के लिए काम कर सकें. जुबैर रज़ा खान ने कहा कि कर्नल महबूब जैसे देश प्रेमियों के इतिहास से अपने युवाओं को अवगत कराना चाहिए.
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दरगाह आला हजरत से जुड़े और तंजीम उलमा ए इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन कहते हैं कि कर्नल महबूब अहमद की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो अक्सर कहते थे- ‘मेरा एक ही जन्म है. अगर मेरे पास एक हजार जन्म होते. तो मैं बड़ी खुशी के साथ उन सभी जन्मों को सुभाष चंद्र बोस के आजादी के लक्ष्य को समर्पित कर देता.’
कर्नल महबूब को याद करते हुए मौलाना कहते हैं कि वह उन मुसलमानों में से एक थे, जिन्होंने देश के प्रति अपनी वफादारी निभाई. और एक सच्चे देशप्रेमी, कर्तव्यनिष्ठ सैन्य अधिकारी की तरह देश की आजादी के मिशन में डटे रहे. अंग्रेजी सेना में एक बड़े पद पर थे, लेकिन देश के लिए उन्होंने उसे ठोकर मार दी. कर्नल महबूब ने आजाद हिंद फौज में कई अहम भूमिकाएं अदा की हैं. इसलिए अपने इस वीर योद्धा पर आज पूरे देश को नाज है. देश के नौजवानों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.