आम बजट: तरक्की के शोर-शराबे के बीच यह याद रहे

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         Mukesh Aseem

आम बजट पेश किया जा रहा है। आंकड़ों की बाजीगरी से तमाम सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं, लेकिन असलियत से मुंह छुपाया जा रहा है। बेरोजगारी और क्रय शक्ति बहुत कम हो जाने के मुद्​दे पर सरकार की चुप्पी ही नहीं है, किसानों की आमदनी 2022 में दोगुनी करने का प्रचार जगजाहिर है। ऐसे में बेरोजगार युवा पीढ़ी को इस बजट के भ्रमजाल को समझना बहुत जरूरी है। (Budget Noise Of Progress)

भारतीय युवाओं में बेरोजगारी की बढ़ती विकरालता को आधिकारिक बेरोजगारी दर के जरिए नहीं समझा जा सकता, क्योंकि उसकी गणना का तरीका तो असल में उसकी विकरालता को छिपाने का तरीका है। 

CMIE के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के सब ग्रेजुएट में 18.5 प्रतिशत बेरोजगार हैं। हाल की पीढ़ी के ग्रेजुएट, 20 से 29 साल वाले ग्रेजुएट में 43 प्रतिशत बेरोजगार हैं। नोटबंदी-जीएसटी के बाद के ग्रेजुएट यानी 20 से 24 साल वालों में देखें तो 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं।

बेरोजगारी पहले से बढ़ ही रही थी, मगर मोदी सरकार अंबानी, अदानी, टाटा, रामदेव जैसे कॉर्पोरेट के हित में जिस तरह पूरी मेहनतकश व मध्यवर्गीय जनता पर हमलावर हुई है, उसने तो एक पूरी पीढी की जिंदगी को अंधे कुएं में धकेल दिया है।

विश्व बैंक अनुसार काम की उम्र वालों में असल कार्यरत प्रतिशत

चीन – 63 प्रतिशत (पूंजीवादी ‘सुधारों’ पूर्व 80 प्रतिशत से ऊपर)

बांग्लादेश – 53 प्रतिशत

पाकिस्तान – 48 प्रतिशत

भारत – 43 प्रतिशत (CMIE के मुताबिक यह सिर्फ 38 प्रतिशत ही है – आधिकारिक गणना में पिछले 6 महीने में कभी भी काम मिला हो तो उसे कार्यरत गिना जाता है, किंतु सीएमआईई पिछले सप्ताह में काम मिलने को ही गिनता है।)

उत्तर प्रदेश में तो आधिकारिक आंकड़ा और भी नीचे 32.7 प्रतिशत का ही है। चमड़े का एक बड़ा रोजगार वाला उद्योग था उत्तर प्रदेश में, उसकी भी कमर भाजपा सरकार में तोड़ दी गई। (Budget Noise Of Progress)

यही वजह है कि भाजपा के पास उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में दंगे की धमकी देने के अतिरिक्त कोई मुद्दा नहीं। अमित शाह व आदित्यनाथ, दोनों बीजेपी के चुनाव हारने पर पूरे प्रदेश को दंगों की आग में झोंकने की खुली धमकी दे रहे हैं कि इस डर से लोग उन्हें वोट दे दें।

उधर किसान बॉर्डरों से वापसी के डेढ़ महीने के भीतर ही ‘विश्वासघात दिवस’ मनाने को मजबूर हैं। याद रहे कि मांगें कृषि कानून व एमएसपी की हैं, पर उप्र में इस आंदोलन के पीछे एक बड़ी वजह किसानों और कृषि मजदूरों की युवा पीढ़ी के लिए खेती के बाहर रोजगार के रास्तों का पूरी तरह बंद हो जाना भी है – न खेती में भविष्य है, न उससे निकलने का उपाय बचा है! (Budget Noise Of Progress)

उच्च स्तर को छोड़ भी दें, पूंजीवादी देशों के औसत मंझले स्तर (काम की उम्र के 56% रोजगार में) से ही तुलना करें तो भी भारत में मंझले पूंजीवादी स्तर के मुकाबले भी विश्व बैंक के आंकड़ों (43%) के आधार पर 13-14 करोड़ तथा सीएमआईई आंकड़ों (38%) मुताबिक 18-20 करोड़ अतिरिक्त बेरोजगार हैं। याद रहे, ये कुल बेरोजगार नहीं, पूंजीवादी व्यवस्था के आम वैश्विक स्तर से भी भारत में इतने ज्यादा बेरोजगार हैं।

असल में रोजगार के अधिकार के स्तर से देखेंगे तो भारत में बेरोजगारों की असल तादाद 40-45 करोड़ बनती है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व आर्थिक मामलों के जानकार हैं, फेसबुक वॉल पर टिप्पणियों को संपादित कर प्रकाशित किया गया है।)


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