बिलकीस बानो के बलात्कारी और परिवार के सात लोगों के क़ातिलों को सरकार ने इस आदेश के तहत आज़ाद किया

द लीडर : गुजरात दंगों के जख़्मों की एक ज़िंदा मूरत बिलकीस बानों के बलात्कारी और उनके परिवार के सात सदस्यों के क़ातिल आज़ाद हो गए हैं. अदालत ने इन 11 दोषियों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी, लेकिन गुजरात सरकार ने 15 अगस्त पर इन्हें आज़ाद कर दिया. जेल से बाहर आए ताे मिठाई खिलाई गई. तिलक लगाकर स्वागत हुआ. बिलकीस बानों का परिवार इस रिहाई से हक्का-बक्का है. सरकार के फ़ैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं. (Bilkis Bano Gujrat Riots)

बिलकीस बानो का केस साल 2002 के गुजरात दंगों की विभीषिका का हिस्सा है. 27 फ़रवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की बोगियों में आग लगा दी गई थी. ट्रेन में सवार अयोध्या से लौट रहे 58 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. इसी गोधरा कांड के बाद गुजरात के कई हिस्सों में भीषण दंगें भड़क गए थे. महीनों तक राज्य भयंकर हिंसा, मारकाट, लूटपाट और महिलाओं के साथ दरिंदगी की आग में सुलगता रहा.

3 मार्च को हिंसा की ये आग दाहोद ज़िले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव तक पहुंच गई. भीड़ ने बिलकीस बानों के परिवार पर हमला कर दिया. उस वक्त बिलकीस बानों 21 साल की थीं. और पांच महीनें की गर्भवती. भीड़ ने बिलकीस की आंखों के सामने ही सात लोगों को मार डाला. गर्भवती बिलकीस के साथ सामूहिक बलात्कार किया. बिलकीस बानों ने अपने साथ हुई दरिंदग़ी के बारे में कहा था कि सामूहिक बलात्कार के बाद मैं लगभग तीन घंटे तक बेहोश रही. होश आया तो तन पर कपड़े नहीं थे. दर्द से उठना मुश्किल था. आसपास नज़र डाली तो घरवालों की लाशें पड़ी थीं. मैं नंगे बदन घर से निकलीं और एक आदिवासी महिला से कपड़े लेकर अपना शरीर ढका. एक होमगार्ड बिलकीस को लेकर पुलिस स्टेशन गए. और शिकायत दर्ज करवाई.

हालांकि स्थानीय पुलिस में दर्ज मामला सुबूतों के अभाव में खारिज हो गया था. लेकिन बिलकीस ने अपने साथ हैवानियत करने वालों को सज़ा दिलाने की ठान ली थी. वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंची. और फिर सुप्रीमकोर्ट में एक पिटिशन फाइल की. सुप्रीमकोर्ट ने बिलकीस मामले में दाखिल क्लोज़र रिपोर्ट खारिज कर दी और सीबीआई को आदेश दिया कि पूरे मामले की नए सिरे से जांच करे. सीबीआई ने अपनी जांच में 18 लोगों को दोषी पाया. इसमें 5 पुलिसकर्मी, एक सरकारी डॉक्टर भी शामिल था. जिन्होंने साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की थी. (Bilkis Bano Gujrat Riots)


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साल 2004 में इस मामले में आरोपियों को गिरफ़्तार किया गया था. 21 जनवरी 2008 को मुंबई में सीबीआई की एक स्पेशल कोर्ट ने बिलकीस बानों के साथ गैंगरेप और सात लोगों की हत्या के जुर्म में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कुछ सबूतों के अभाव में रिहा हो गए थे.

इंसाफ़ की लड़ाई बिलकीस के लिए आसान नहीं थी. परिवार खत्म किया जा चुका था. तीन लोग बचे थे. हंसते खेलते घर में बिलकीस के अलावा दो लोग और बचे थे. मुकदमेबाजी में उन्हें तमाम धमकियां मिलीं. दो साल में उन्होंने 20 बार अपना ठिकाना यानी घर बदला. आख़िर में बिलकीस ने सुप्रीमकोर्ट से अपील की थी कि उनका केस गुजरात के बाहर किसी दूसरे राज्य में शिफ़्ट कर दिया जाए. इस तरह मुंबई में उनके केस की सुनवाई हुई. मुंबई की एक सेशल कोर्ट में सुनवाई के दौरान 3 आरोपियों ने बिलकीस के साथ बलात्कार करने का जुर्म कुबूल किया था. इस तरह इन्हें उम्रकैद की सज़ा तो मिल गई. लेकिन 2017 में फिर आरोपी हाईकोर्ट पहुंचे. और लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सज़ा को बरक़रार रखा था.

आरोपी 15 सालों से जेल काट रहे थे, जिन्हें सज़ा का टाइम पूरा होने से पहले रिहा कर दिया गया है. आपको बता दें कि बिलकीस बानो केस गुंजरात दंगों की तमाम दर्दनाक कहानियों में से एक है. (Bilkis Bano Gujrat Riots)

2002 के गुजरात दंगें में अधिकारिक तौर पर 1044 लोग मारे गए थे. जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू थे. लेकिन कई दूसरी रिपोर्ट्स में मौतों का आंकड़ा कहीं अधिक बताया गया है. सिटीज़न ट्रिब्यूनल रिपोर्ट में कम से कम दो हज़ार लोगों के मारे जाने का दावा किया गया था.

किस क़ानून के तहत रिहा किए गए दोषी

आज़ादी के अमृत महोत्सव को लेकर सेंट्रल गवर्मेंट ने इसी साल यानी 2022 के जून महीने में दोषी कैदियों की रिहाई नीति का प्रस्ताव देते हुए स्टेट्स के लिए गाइडलांस जारी की थीं. हालांकि उसमें रेप के दोषी शामिल नहीं थे, जिन्हें इस पॉलिसी के तहत रिहाई नहीं दी जानी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सेंट्रल की स्पेशल पॉलिसी में स्पष्ट है कि आजीवन कारावास की सज़ा वाले किसी व्यक्ति को रिहा नहीं किया जाएगा. बिलकीस बानो केस में दोषियों की रिहाई को लेकर पंचमहल की कलेक्टर सुजाता मायात्रा ने कहा था कि इस मामले में गठित समिति ने 11 दोषियों की रिहाई के पक्ष में सर्वसम्मति से फ़ैसला लिया था. राज्य सरकार को ये सिफ़ारिश भेजी गई और 15 अगस्त के दिन दोषी रिहा हो गए हैं.

उधर बिलकीस बानों के परिवार ने इस फ़ैसले पर हेरानी जताई है. उनके पति ने कहा कि दोषियों के बाहर आ जाने से उनका चैलेंज और सुरक्षा का संकट और बढ़ गया है. गुजरात दंगों के बिलकीस बानो केस के आरोपी ऐसे वक़्त में आज़ाद हुए हैं, जब गुजरात में विधानसभा चुनावों की तैयारियां चल रही हैं. और इसी साल के आख़िर यानी दिसंबर महीने में चुनाव संभावित है. तो ऐसे वक़्त में गंभीर आरोपों के दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं. (Bilkis Bano Gujrat Riots)


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Ateeq Khan

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