बेनजीर भुट्टो: इस्लामी दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री

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बेनज़ीर भुट्टो 1 दिसंबर 1988 को न सिर्फ पाकिस्तान की, बल्कि आधुनिक इतिहास में इस्लामी जगत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थीं। लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत मुश्किल भरा रहा। साल 1988-90 में और फिर 1993-96 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बतौर उनके दो कार्यकाल रहे। (Benazir Bhutto Islamic World)

बेनजीर 1971 से 1977 के बीच प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी थीं। कराची में 21 जून 1953 में जन्मीं। हार्वर्ड विश्वविद्यालय 1973 में ग्रेजुएशन किया और फिर 1977 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। राजनीतिक जीवन के दौरान 27 दिसंबर 2007 में राावलपिंडी में उन पर हमला किया गया, जिसमें उनकी मौत हो गई।

1979 में सैन्य तानाशाह मोहम्मद जिया-उल-हक के शासन के दौरान अपने पिता जुल्फिकार भुट्टो की फांसी के बाद बेनजीर अपने पिता की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की प्रमुख बनीं और 1979 से 1984 तक लगातार नजरबंद रहीं। निर्वासन में 1984 से 1986 तक रहीं। मार्शल लॉ हटने के बाद पाकिस्तान लौटीं और जनरल ज़िया के राजनीतिक विरोध में सबसे प्रमुख चेहरा बन गईं। (Benazir Bhutto Islamic World)

तभी पाकिस्तान की सियासत में टर्निंग प्वाइंट आया। अगस्त 1988 में एक रहस्यमय विमान दुर्घटना में राष्ट्रपति ज़िया की मौत हो गई। सैन्य सत्ता फिर लोकतांत्रिक ढांचे में आने को तैयार हो गई। आगामी चुनावों में पीपीपी ने बेनजीर की अगुवाई में नेशनल असेंबली में सबसे ज्यादा सीटें जीतीं और 1 दिसंबर 1988 को वह गठबंधन सरकार की प्रधानमंत्री बनीं।

बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की गरीबी, भ्रष्टाचार और बढ़ते अपराध से निपटने में नाकाम रहीं। नतीजतन, अगस्त 1990 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने भ्रष्टाचार और अन्य आरोप में उनकी सरकार को बर्खास्त कर नए चुनावों का ऐलान कर दिया। अक्टूबर 1990 के राष्ट्रीय चुनावों में पीपीपी को हार का सामना करना पड़ा और नवाज शरीफ सरकार के विपक्ष का नेतृत्व किया।

अक्टूबर 1993 में हुए चुनावों में पीपीपी को बहुत मिला और गठबंधन सरकार की मुखिया बनीं। भ्रष्टाचार, आर्थिक कुप्रबंधन और कानून-व्यवस्था की गिरावट के नए आरोपों के तहत उनकी सरकार को नवंबर 1996 में राष्ट्रपति फारूक लेघारी ने बर्खास्त कर दिया।

1997 के चुनावों में मतदान प्रतिशत कम रहा, तब भुट्टो की पीपीपी को शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी से निर्णायक हार का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश और स्विस सहयोग से शरीफ के प्रशासन ने भुट्टो के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई जारी रखी। 1999 में बेनजीर और उनके पति, विवादास्पद व्यवसायी व सीनेटर आसिफ अली जरदारी जेल गए – दोनों को लाहौर की एक अदालत ने भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया था।

लेकिन 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सबूतों के अभाव के आधार पर फैसला पलट दिया। 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ के सैन्य तख्तापलट के बाद नई बाधाएं खड़ी हो गईं। स्थायी वारंट के चलते वह 1990 के दशक के आखिर तक लंदन और दुबई में निर्वासन में रहीं।

मुशर्रफ के 2002 के फरमान ने प्रधानमंत्रियों को तीसरे कार्यकाल की सेवा करने पर प्रतिबंध लगा दिया और उस साल हुए चुनावों में बेनजीर को चुनाव में खड़े होने की मंजूरी नहीं मिली। इसके अलावा 2000 में बने कानून के आधार पर अदालत द्वारा दोषी व्यक्ति को पार्टी कार्यालय संचालित करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे के बाद उनकी पार्टी ही खतरे में आ गई। (Benazir Bhutto Islamic World)

इस उठापटक में पीपीपी को दो हिस्सों बांट दिया, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सांसद (पीपीपीपी) नामक एक नई शाखा बन गई। पीपीपीपी ने 2002 के चुनावों में भाग लिया, जिसमें उसे अच्छे वोट मिले। सैन्य सरकार के साथ सहयोग के लिए बेनजीर भुट्टो की शर्त – कि उनके और उनके पति के खिलाफ सभी आरोपों को वापस ले लिया जाए – को खारिज कर दिया गया। 2004 में भुट्टो के पति जमानत पर जेल से रिहा हुए और बेनजीर के साथ निर्वासन में चले गए।

साल 2007 के चुनावों से ठीक पहले बेनजीर की पाकिस्तान वापसी की चर्चा शुरू हो गई थी।

मुशर्रफ के राष्ट्रपति पद के लिए फिर से चुने जाने से कुछ समय पहले, बेनजीर और मुशर्रफ के बीच समझौते की अनसुलझी चर्चाओं के बीच भुट्टो के खिलाफ शरीफ प्रशासन द्वारा लाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को माफ कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के माफी देने के अधिकार को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी। फिर भी, अक्टूबर 2007 में भुट्टो आठ साल के निर्वासन के बाद दुबई से कराची लौट आईं। उनकी वापसी के जश्न में उनके काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें कई समर्थक मारे गए। कुछ ही समय बाद भुट्टो की दिसंबर में इसी तरह के हमले में आगामी संसदीय चुनावों के प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई।


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