एएमयू ने 48 साल बाद मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र के घर भेजी पीएचडी की उपाधि

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AMU Poet Basheer Badr
अपनी पीएचडी की उपाध‍ि को सीने से लगाए शायर डॉ बशीर बद्र.

द लीडर : सात संदूकों में भरकर दफन कर दो नफरतें,  आज इंसान को मुहब्बत की जरूरत है बहुत. दुनिया को ये पैगाम देने वाले अपने होनहार छात्र और मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र की मुहब्बत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) ने 48 साल बाद पीएचडी की उपाधि उनके घर भेजी है.

दरअसल, डॉ. बशीर ब्रद ने एएमयू से बीए और एमए की तालीम हासिल की है. साल 1973 में उन्होंने यहीं से पीएचडी की. इसके बाद डॉ. बद्र उर्दू अदब (साहित्य) की खिदमत में जुट गए और मुहब्बतें लुटाने लगे. कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी उपाधि की ख्वाहिश जाहिर की थी.

जिस पर एएमयू प्रशासन ने ये फैसला क‍िया. ‘द लीडर’ से बातचीत में एएमयू के सहायक सूचना अधिकारी जीशान अहमद ने कहा कि डॉ. बद्र की इच्छा पर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने ये उपाधि भेजी है.

एएमयू गेट, फोटो साभार ट़वीटर

एएमयू से निकल दुनिया में छा गए बद्र

सरयू के तट पर बसे अयोध्या में 15 फरवरी 1935 को जन्में बशीर बद्र को साहित्य की सेवा के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा जा चुका है. उनकी झोली में उर्दू साहित्य अकादमी अवार्ड समेत तमाम सम्मान आए हैं. कानपुर के हलीम कॉलेज और इटावा के इस्लामिया (Islamiya college) कॉलेज से शुरुआती शिक्षा हासिल करने वाले बद्र आज दुनिया भर में मशहूर हैं.

डॉ. बद्र के कुछ शेर यूं हैं

मुहब्बत की शक्ल में गढ़े उनके शेर जिंदगी का दर्पण (Mirror) हैं. वे लिखते हैं, ‘उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए. एक और शेर है उनका-जिंदगी तूने मुझे कब्र से कम दी है जमीं, पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है.


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उनके शेर समाज को दिशा भी देते हैं, जो हर दौर-समय में प्रासंगिक लगते. शेर है-दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब भी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों. समाज में बढ़ती कड़वाहट के बीच अक्सर ये शेर सुनाई पड़ता रहता है.

उनके शेर में मुहब्बत है तो सलाह भी. जब उन्होंने लिखा-कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो.

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