इतिहास के पन्नों में दबी एक प्रेम कहानी जिसे हिटलर भी नहीं डिगा पाया

0
673
अभिनव सरोवा-

हिटलर का नाम आते ही, उसकी क्रूरता की तस्वीरें आंखों के सामने तैरने लगती हैं। कहते हैं उसके दौर में उसको चुनौती देना तो दूर, उसके सामने तेज आवाज में बोलने की हिम्मत तक लोगों के अंदर नहीं होती थी! बहरहाल, यह पूरा सच नहीं है! हिटलर के साथ कई ऐसे नाम भी लिए जाते हैं, जिन्होंने हिटलर को पूरी महफिल के सामने चुनौती दी। ‘ऑगस्ट लैंडमेसर’ उनमें से ही एक नाम है। यह वही इंसान है, जिसने हिटलर के प्रतिरोध के लिए ‘नाजी सलामी’ देने से इंकार कर दिया था। ‘ऑगस्ट लैंडमेसर’ ने ऐसा क्यों किया आईए जानने की कोशिश करते हैं।

अखबार की तस्वीर ने दिलाई सुर्खियां

22 मार्च 1991 को जर्मन अखबार ‘डाई जिथ’ में एक तस्वीर छपी, जिसे देखकर लोग हैरान रह गए। उनकी हैरानी की बड़ी वजह भी थी। असल में उस तस्वीर में उन्होंने कुछ ऐसा देखा, जिसकी उन्होंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। अखबार में प्रकाशित इस तस्वीर में एक अकेला व्यक्ति अपने दोनों हाथ बांधे तनकर खड़ा हुआ है और बाकी सब हिटलर के सम्मान में नाजी सलामी दे रहे हैं। सलामी ना देने वाला यह व्यक्ति कोई और नहीं ‘ऑगस्ट लैंडमेसर’ था।

जब इस तस्वीर के बारे में सर्च किया तो पता चला कि यह तस्वीर 13 जून 1936 में हैम्बर्ग बंदरगाह पर खींची गई थी। मौका था एक युद्धक जहाज होर्स्ट वेसेल की लॉन्चिंग का। चूंकि, ऑगस्ट वहीं काम करता था, इसलिए वह इस मौके का हिस्सा था। खैर, ऑगस्ट ने ऐसा क्यों किया। इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है….

नाजी पार्टी का सदस्य था ऑगस्ट लैंडमेसर! ऑगस्ट लैंडमेसर ने 1931 में नाज़ी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। कहते हैं कि उसने यह सदस्यता सिर्फ इसलिए ली थी, ताकि उसे आसानी से नौकरी मिल सके, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा। इसी क्रम में आगे 1935 के आसपास उसे ‘इरमा एकलर’ नाम की एक यहूदी लड़की से प्यार हो गया। रिश्ता आगे बढ़ा तो दोनों प्यार के रिश्ते में बंध गए।

सगाई के रिश्ते में बंधकर दोनों एक नए उड़ान भरना चाहते थे! इसी बीच 15 सितंबर 1935 को जर्मनी में एक नया कानून लागू हो गया। इस काननू के तहत किसी भी नाजी को यहूदी से शादी न करने की हिदायत थी। बताते चलें कि हिटलर रक्त की शुद्धता के सिद्धांत में विश्वास रखता था। उसे लगता था कि नाज़ी लोग ही शुद्ध आर्य हैं और यहूदियों से शादी करने पर उनकी शुद्धता नष्ट हो जाएगी। यही कारण था कि उसने ‘न्यूमबर्ग’ नाम का यह कठोर कानून बनाया था।

प्रेम के लिए दी हिटलर को चुनौती!

चूंकि, ‘ऑगस्ट लैंडमेसर’ एक यहूदी लड़की से प्यार करता था, इसलिए यह कानून व्यक्तिगत तौर पर उसे मंजूर नहीं था। इसके लिए उसने कई बार विरोध भी जाहिर किया। 13 जून 1936 में हैम्बर्ग बंदरगाह पर खींची गई उसकी तस्वीर इस बात का बड़ा प्रमाण है, जिसमें उसने भीड़ के बीच हिटलर को नाजी सलाम करने से मना कर दिया और हाथ बांधे खड़ा रहा!

खैर, प्रेम तो प्रेम होता है। वह नहीं जानता कि कौन किस जाति और धर्म से वास्ता रखता है। इसमें बड़ी से बड़ी कठिनाई का सामना करने की ताकत होती है। इसी के दम पर ऑगस्ट और इरमा ने इस कानून के बाद भी साथ रहने का फैसला किया।

दूसरी तरफ अपने इस कठोर कानून को लेकर हिटलर की तानाशाही बढ़ती जा रही थी। इसके चलते ‘ऑगस्ट लैंडमेसर’ ने जर्मनी छोड़कर डेनमार्क जाने का फैसला किया। वह लगभग सारी तैयारी कर चुका था, लेकिन यह उसकी बदकिस्मती ही थी कि वह सरहद पर पकड़ लिया गया।

उसे आर्य नस्ल को बदनाम करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। एक साल तक कार्यवाही चली। हालांकि, सबूतों के आभाव के कारण उसे छोड़ दिया गया। किन्तु, लगातार उसे जान से मारने की धमकी नाजी देते रहे। हिटलर के मंत्री उसे डराते रहे, ताकि वह इरमा को छोड़ दे।

अंत में वह नहीं माना तो 1938 में उसे यातनागृह में भेज दिया गया. कहते हैं कि इसके बाद ऑगस्ट लैंडमेसर, इरमा से कभी नहीं मिल सका!

मौत के साथ प्रतिरोध के नए प्रतीक का जन्म दूसरी तरफ नाजियों ने उसकी प्रेमिका इरमा को नहीं छोड़ा। वह सात महीने की गर्भवती थी। बावजूद इसके उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जहां उसने पुत्री को जन्म दिया। जिसका नाम आइरीन था।

1941 को ऑगस्ट जेल से बाहर आया और उसने फोरमेन के रूप में काम करना शुरू कर दिया। जल्द ही उसे पीनल इन्फेंट्री में एंट्री मिल गई। ‘पीनल इन्फेंट्री’ जर्मन सेना का वह हिस्सा थी, जहां किसी जुर्म में सजा पाए लोगों को भर्ती किया जाता था। इसी दौरान उसे क्रोएशिया भेज दिया गया। वहीं वह गुम हो गया और मरा हुआ मान लिया गया। जबकि, उसकी लाश तक नहीं मिली थी!

आगे 1949 के आसपास ऑगस्ट और इरमा को आधिकारिक रूप से मरा हुआ घोषित कर दिया गया। तब तक हिटलर भी मर चुका था। इस तरह हिटलर की क्रूरता ने एक आर्य और यहूदी प्रेम कहानी का अंत कर दिया, लेकिन इसके साथ प्रतिरोध के एक नए प्रतीक को भी जन्म दे दिया।

ऑगस्ट और इरमा की बेटियों ने 1996 में एक किताब छपवाई। इस किताब में उनके मां – बाप की प्रेम कहानी से जुड़े तमाम सबूत हैं। इस किताब को पढ़कर लोगों ने जाना कि जब ऑगस्ट जिन्दा था, तब सब उसके खिलाफ थे। किन्तु, आज उसके मर जाने के बाद वह सरकारी प्रतिरोध की मिशाल बन गया है। उसके प्रतिरोध की वजह राजनीतिक नहीं थी। उसके प्रतिरोध के केंद्र में वह अथाह प्रेम था, जो उसने इरमा और इरमा ने उससे किया था।

ऑगस्ट लैंडमेसर की कहानी बताती है कि एक अकेला आदमी भी क्रूर से क्रूर व्यक्ति के सामने खड़ा हो सकता है। जरूरत बस जज्बे की है, ऑगस्ट के पास जज्बा ही तो था, जिसके दम पर उसने हिटलर जैसे तानाशाह को चुनौती देने का साहस दिखाया।


यह भी पढ़ें: जहां के शासकों को दूसरे मुल्कों की आजादी रास नहीं आती


(आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here