मौलाना आजाद के नक्शेकदम पर चलकर मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने वाले इकलौते मौलाना हैं वली रहमानी

द लीडर : ”अगर इस मुल्क में बेहौसला होकर ईमान वाला जिएगा, तो यकीन मानिए ये बात बहुत तकलीफ की है. बेहौसला होकर जीना, हिम्मत से दूर भागना, ये मुसलमान की पहचान नहीं है. अल्लाह के रसूल फरमाते हैं कि एक ही दिल में ईमान और बुजदिली जमा नहीं हो सकती. तो अगर दिल में ईमान है वहां बुजदिली की कोई गुंजाइश नहीं है, न डरने की कोई वजह है. फिर चाहें दुनिया ही क्यों न खिलाफ हो जाए.” (Maulana Wali Rahmani Azad Muslims Education)

परीक्षा में सफलता की खुशी मनाते रहमानी-30 के छात्र.

मौलाना मुहम्मद वली रहमानी अब हमारे बीच नहीं हैं. शनिवार को उनका इंतकाल हो गया था और रविवार को वह सुपुर्द-ए-खाक हो गए. लेकिन उनकी तकरीर (स्पीच) का उपरोक्त हिस्सा मुसलमानों में हौसला भरता रहेगा. एक आलिम की हैसियत से वे कौम को दीन और दुनियावी, दोनों क्षेत्रों में अपनी जगह बनाने के लिए जागरुक करते रहे. मुसलमानों के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक विकास के लिए पूरी जिंदगी गुजार दी.

उनकी एक बड़ी कोशिश थी कि फिरकों में बंटा मुस्लिम समाज एकजुट हो जाए. वह अक्सर कहा करते थे कि बरेलवी, देवबंदी, शिया और सुन्नी बाद में हो, पहले मुसलमान हो. और अपनी इस पहचान को स्वीकार करते हुए एक हो जाओ.

गरीब बच्चों के लिए रहमानी-30 की स्थापना

बिहार के मुंगेर जिले में 5 जून 1943 को जन्में मौलाना मुहम्मद वली रहमानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के महासचिव थे. इसके साथ ही वे रहमानी-30 के संस्थापक हैं. रहमानी-30 कोचिंग आर्थिक रूप से गरीब बच्चों को आइआइटी, नीट, सीए, क्लैट आदि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराती है. जिसका खर्च रहमानी फाउंडेशन वहन करता है. (Maulana Wali Rahmani Azad Muslims Education)

देश में किसी खानकाह की ओर से आधुनिक शिक्षा के प्रति ये पहली कोशिश नजर आती है जो मौलाना ने रहमानी-30 के रूप में की है. हां, धार्मिक शिक्षा के लिए दरगाहें और खानकाहें जरूर काम रही हैं.

मुंगेर में जामिया रहमानी नाम से एक बड़ा शैक्षिक संस्थान भी स्थापित किया है, जो दीन और दुनियावी, दोनों तरह की शिक्षा प्रदान करता है.

जामिया रहमानी.

वली रहमानी केवल एक मौलवी भर नहीं थे. बल्कि मुंगेर से निकलकर उन्होंने देश-दुनिया एक बड़े शिक्षाविद, समाजसेवी और राजनेता की पहचान बनाई. वह 1974 से 1996 तक वह बिहार विधान परिषद के सदस्य और विधानसभा में डिप्टी स्पीकर भी रहे.


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शाह इमरान हसन ने मौलाना की ऑटोबायोग्राफी लिखी है. जिसमें वह खानकाह-ए-रहमानियां के वजूद में आने का जिक्र करते हैं, जो साल 1901 में स्थापित हुई थी. मौलाना मुहम्मद अली मुंगेरी और उनके साथियों ने इस खानकाह की बुनियाद रखी थी.

बाद में मौलाना वली रहमानी के पिता मौलाना मिनातुल्लाह रहमानी ने इसका विकास किया. और अपने अंतिम समय तक मौलाना वली रहमानी इस खानकाह के सज्जादानशीन रहे.

इमरान हसन लिखते हैं कि मौलाना वली रहमानी स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के न सिर्फ बड़े प्रशंसक थे, बल्कि अपनी शख्सियत पर उनका बड़ा प्रभाव भी मानते थे. एक शिक्षाविद की हैसियत से उन्होंने मुस्लिम नौजवानों को कौम की खिदमत (सेवा) के लिए प्रेरित किया. (Maulana Wali Rahmani Azad Muslims Education)


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धार्मिक मजलिसों में भी उनकी तकरीरों का विषय समाज की तरक्की और दुनियावी मसलों से जुड़ा होता था. अपनी एक तकरीर में वे मुसलमानों को पैगाम देते हैं. कहते हैं कि ”आज हम अपने किरदार को बर्बाद कर रहे हैं. उससे बहरहाल लौटना होगा. लौटकर ही बात बन सकती है.

हमारे हालात दुरुस्त हो सकते हैं. यकीन मानिए अल्लाह को हमारी इबादतों की जरूरत नहीं है. हमारे सजदों का मोहताज नहीं है. अगर खुदा को पूरी दुनिया कहे कि खुदा नहीं है तो भी वो खुदा है. वो बेनियाज है. बेहतर है कि हम अपने हालात ठीक करें.”

इस संदेश के साथ वे मुसलमानों को ये समझाने की कोशिश करते हैं कि शिक्षा हासिल करें. समाज में अपनी अच्छी जगह बनाएं. गुनाह-अपराधों से बचकर एक खुशहाल और अच्छी जिंदगी जिएं.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जीलानी कहते हैं कि वली रहमानी का यूं अचानक जाना मुस्लिम समाज के लिए एक बड़ा नुकसान तो है ही. समाज और देश का भी नुकसान है. वो एक विजनरी थे. राजनीति में सक्रिय रहकर वह इसकी नब्ज को जानते थे. वह बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे. (Maulana Wali Rahmani Azad Muslims Education)


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वह लखनऊ में भी रहमानी-30 की स्थापना की कोशिश में थे. यहां एक टेस्ट भी कराया था. शायद एक या दो बच्चों का उनकी कोचिंग के लिए सेलेक्शन भी हुआ था. जफरयाब जीलानी कहते हैं कि मुस्लिम समाज में उनके कद का दूसरा शख्स नजर नहीं आता है. रही बात कोचिंग की तो उनके बेटे कोचिंग का संचालन कर रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठक के बाद ही महासचिव के पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.

मौलाना के इंतकाल देश के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद और राजनीतिक शख्सियतों ने दुख जाहिर किया है. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने कहा कि मौलाना का इंतकाल मुस्लिम समाज के लिए एक बड़ी क्षति है. बिना ठहरे कौम के लिए काम करते थे. खासतौर से शिक्षा के लिए उन्होंने बड़ा काम किया है. (Maulana Wali Rahmani Azad Muslims Education)

 

Ateeq Khan

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