उनके बच्चे बच्चे और हमारे बच्चे जनसंख्या!

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मनीष आज़ाद-

एक बार राकफेलर परिवार के ही किसी पूंजीपति से एक पत्रकार ने पूछा कि इस धरती के लिए कितनी जनसंख्या पर्याप्त होगी। राकफेलर का उत्तर था- 5 प्रतिशत। फिर ये 95 प्रतिशत लोग कौन हैं जो स्त्री-पुरूष प्यार की वजह से नहींं, बल्कि ‘जनसंख्या विस्फोट’ के कारण अस्तित्व में आ गए।

इसी 95 प्रतिशत को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका में पिछली सदी की शुरुआत में एक प्रतिक्रियावादी आंदोलन ने जन्म लिया। इसका नाम था यूजेनिक्स (Eugenics) आंदोलन। मजेदार बात यह है कि चार्ल्स डार्विन के एक रिश्तेदार फ्रांसिस गॉल्टन (Francis Galton) की प्रेरणा से यह शुरू हुआ।

यूजेनिक्स के अनुसार, श्रेष्ठ नस्ल के लोगों को ही आपस में संतानोत्पत्ति का अधिकार है। जाहिर है यूरोपीयन गोरे लोग अपने आप को ही श्रेष्ठतम नस्ल मानते थे। उनके बीच यह माना जाने लगा कि अगर काले लोगों, एशियाई, अफ्रीकी, और लैटिन लोगों की जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो भविष्य में ये ‘बर्बर-असभ्य लोग’ गोरे लोगों की सभ्यता को वैसे ही नष्ट कर देंगे जैसे कभी बर्बर जर्मन कबीलों ने रोम साम्राज्य को नष्ट कर डाला था।

इसके साथ ही जुड़ी थी नस्ल की ‘शुद्धता’ का सिद्धांत। इस कारण अमेरिका के अधिकांश राज्यों ने गोरे और काले लोगों के बीच शादियों को अपराध घोषित कर रखा था।

इस प्रतिक्रियावादी आंदोलन के परिणामस्वरूप काले, अफ्रीकन-अमेरिकन व लैटिन अमेरिकन लोगों विशेषकर उनकी महिलाओं का बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी कर दी गई। अमेरिका का ‘मेडिकल साइंस’ काली औरतों के प्रति इस जघन्य अपराध में लिप्त रहा है।

हालांकि, इसका चरम व वीभत्स रूप हमें हिटलर के ‘फाइनल सल्यूशन’ में दिखा। जिसमे 60 लाख से ज्यादा यहूदियों का कत्लेआम किया गया।

बहरहाल समाजवाद के असर, अमेरिका व दुनिया में सिविल राइट्स मूवमेंट के उभार के बाद यूजेनिक्स (Eugenics) बहुत बदनाम हो गया और इसे विज्ञान से बेदखल कर दिया गया।

लेकिन कुछ ही समय बाद यह नाम बदलकर फिर से लौट आया। इस बार इसका नाम था- ‘जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम’। तब से तीसरी दुनिया मे विश्व बैंक का यह एक स्थायी एजेंडा बन गया।

यूजेनिक्स (Eugenics) आंदोलन को फंड करने वाले अमेरिका के दो बड़े पूंजीवादी घराने ‘राकफेलर फाउंडेशन’ और ‘फोर्ड फाउंडेशन’ अब ‘जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम’ को फंड कर रहे हैं।

अभी पिछले साल ही प्रसिद्ध डार्विनवादी रिचर्ड डॉकिन्स ने भी जनसंख्या नियंत्रण के लिए ‘यूजेनिक्स’ के व्यवहारिक महत्व पर जोर देकर अच्छा खासा बवाल पैदा कर दिया था।

Children behind a barbed wire fence at the Nazi concentration camp at Auschwitz in southern Poland. (Photo by Keystone/Getty Images)

उत्तर प्रदेश का ‘जनसंख्या नियंत्रण बिल’ और कुछ नहीं इसी यूजेनिक्स (Eugenics) का जूठन है। ‘लव जेहाद’ को इसके साथ मिलाकर देखेंगे तो यह जूठन और साफ दिखाई देगा। वहां की नस्लीय श्रेष्ठता यहां जातीय व धार्मिक श्रेष्ठता में बदल जाता है।

वहां के अफ्रीकी-अमेरिकी की तरह यहां निशाने पर गरीब, दलित, मुस्लिम हैं। 1975 की इमरजेंसी में इसी ‘यूजेनिक्स’ (Eugenics) के तहत जिन 80 लाख लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई उसमे बहुतायत गरीब, मुस्लिम और दलित थे।

दरअसल जिस तरह एक पुरुष स्त्री के शरीर पर अधिकार के किसी भी मौके को नहीं चूकना चाहता, ठीक उसी तरह सरकारें भी जनता पर नियंत्रण के किसी भी मौके को नहीं चूकती। चाहे वह ‘कोरोना’ हो या फिर ‘जनसंख्या नियंत्रण’। ‘जनसंख्या नियंत्रण कानून’ दरअसल ‘नागरिक नियंत्रण कानून’ है।

यह अजीब बात है कि जिस ‘माल्थस के सिद्धांत’ का हवाला देकर ‘जनसंख्या विस्फोट’ का खौफ पैदा किया जाता है, वह पूरा सिद्धांत ही गलत आंकड़ों पर आधारित था।

दुनिया में जो गरीबी बेरोजगारी भुखमरी है वो ‘जनसंख्या विस्फोट’ के कारण नहीं बल्कि ‘आदमी द्वारा आदमी के शोषण’ पर टिकी इस अमानवीय व्यवस्था के कारण है।

जिसने भी ‘रॉबिंसन क्रूसो’ पढ़ी होगी वे इस बात को समझ सकते हैं कि बिना इस अमानवीय व्यवस्था को बदले यदि धरती पर दो लोग भी बचे तो एक मालिक होगा और दूसरा उसका गुलाम।

हमें यह बात समझनी होगी कि मानवता का सबसे बड़ा लक्ष्य स्त्री-पुरुष की पूर्ण समानता है और स्त्री-पुरुष समानता ही सबसे बड़ा गर्भ-निरोधक भी है।


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