नई दिल्ली: भारत का तीसरा ‘मून मिशन’ शुरू हो चुका है. 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2.35 बजे चंद्रयान-3 लॉन्च हो चुका है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 को चांद के सफर पर रवाना किया. यह अगले 40-45 दिनों में चांद के साउथ पोल पर उतरेगा. चांद पर चंद्रयान-3 के सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलते ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा.
#WATCH | Indian Space Research Organisation (ISRO) launches #Chandrayaan-3 Moon mission from Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota.
Chandrayaan-3 is equipped with a lander, a rover and a propulsion module. pic.twitter.com/KwqzTLglnK
— ANI (@ANI) July 14, 2023
चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और एक्सपेरिमेंट करेगा. इसमें एक प्रोपल्शन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा. चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है. चंद्रयान-3 पर स्पेक्ट्रो-पोलारिमेट्री ऑफ़ विजेटेबल प्लैनेट अर्थ (एसएचएपीई) भी लगा होगा, जिससे हमारे वैज्ञानिकों को चंद्रमा की कक्षा के छोटे ग्रहों और हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित ऐसे अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए महत्वपूर्ण डेटा हासिल हो सकेगा जहां जीवन संभव है.
Chandrayaan-3 mission:
The ‘Launch Rehearsal’ simulating the entire launch preparation and process lasting 24 hours has been concluded.Mission brochure: https://t.co/cCnH05sPcW pic.twitter.com/oqV1TYux8V
— ISRO (@isro) July 11, 2023
मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं. एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है. जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है. इस बार स्पेसशिप में ज्यादा फ्यूल और कई सेफ्टी मेजर्स किए गए हैं, ताकि मिशन (Lunar Mission) नाकाम न हो. साथ ही इस बार लैंडिंग साइट भी बड़ी होगी. सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के चलते सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 की क्रैश-लैंडिंग हो गई थी. इसरो ने कहा कि इस बार इसने ‘विफलता-आधारित डिज़ाइन’ का विकल्प चुना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ चीजें गलत होने पर भी लैंडर चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतर सके. लैंडिंग साइट को 500 मीटर x 500 मीटर से बढ़ाकर 2.5 किलोमीटर कर दिया है. यह कहीं भी उतर सकता है, इसलिए किसी खास जगह पर नहीं उतरना पड़ेगा.
#WATCH | School children who had arrived at the Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota, Andhra Pradesh express their delight following the successful launch of #Chandrayaan3 into orbit.
"I feel very proud that our scientists & country are doing so good. It was a… pic.twitter.com/IkJpKlW6mg
— ANI (@ANI) July 14, 2023
चंद्रयान-2 में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर था. चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर के बजाय स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल है. जरूरत पड़ने पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर की मदद ली जाएगी. प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर को चंद्रमा की सतह पर छोड़कर चांद की कक्षा में 100 किलोमीटर ऊपर चक्कर लगाता रहेगा. यह कम्युनिकेशन के लिए होगा. वहीं, विक्रम लैंडर के साथ तीन और प्रज्ञान रोवर के साथ दो पेलोड होंगे. पेलोड को हम आसान भाषा में मशीन भी कह सकते हैं. रोवर भले ही लैंडर से बाहर आ जाएगा, लेकिन ये दोनों आपस में कनेक्ट होंगे. रोवर को जो भी जानकारी मिलेगी, वो लैंडर को भेजेगा और लैंडर इसे इसरो को कन्वे करेगा.
दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट के जरिए चंद्रयान को स्पेस में भेजा गया है.16 मिनट बाद रॉकेट ने इसे पृथ्वी की ऑर्बिट में प्लेस किया. चंद्रयान-3 का बजट लगभग 615 करोड़ रुपये है. इससे 4 साल पहले भेजे गए चंद्रयान-2 की लागत भी 603 करोड़ रुपये थी. हालांकि, इसकी लॉन्चिंग पर भी 375 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन का तीन अहम लक्ष्य बताया है:-
1-चंद्रयान- 3 के लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग.
2.इसके रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना.
3.वैज्ञानिक परीक्षण करना.
किसी स्पेसक्राफ्ट के चांद पर दो तरह से लैंडिंग हो सकती है. एक- सॉफ्ट लैंडिंग, जिसमें स्पेसक्राफ्ट की गति कम होती जाती है और वो धीरे-धीरे चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतर जाता है. दूसरी- हार्ड लैंडिंग, इसमें स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह से टकरा कर क्रैश हो जाता है. चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई थी. इसलिए ये मिशन फेल हो गया. चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम के आज से लगभग 40 दिन बाद यानी 23 या 24 अगस्त की शाम करीब 5.47 बजे चांद के साउथ पोल पर लैंड करने की उम्मीद है. हालांकि, कई फैक्टर्स के चलते इसमें बदलाव हो सकता है. चंद्रयान-3 के लैंडर को चांद के साउथ पोल पर उतारा जाएगा. चांद को फतह कर चुके अमेरिका, रूस और चीन ने अभी तक इस जगह पर कदम नहीं रखा है. चांद के इस भाग के बारे में अभी बहुत जानकारी भी सामने नहीं आ पाई है. चंद्रयान-1 मिशन के दौरान साउथ पोल में बर्फ के बारे में पता चला था. साउथ पोल काफी रोचक है. इसकी सतह का बड़ा हिस्सा नॉर्थ पोल की तुलना में ज्यादा छाया में रहता है. यहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती. तापमान -230 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा सकता है. संभावना इस बात की भी जताई जाती है कि इस हिस्से में पानी भी हो सकता है. चांद के साउथ पोल में ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में शुरुआती सौर प्रणाली के लुप्त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हो सकते हैं.
ISRO के एक सीनियर साइंटिस्ट ने बताया कि बेंगलुरु में ISRO के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (Istrac) स्टेशन से चंद्रयान-3 के हर मूवमेंट पर नजर रखी जाएगी. चंद्रयान- 3 का मिशन न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है. लैंडर चांद की उस सतह पर जाएगा, जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी मौजूद नहीं है. इसलिए इस मिशन से हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चांद के विषय में जानकारी और बढ़ेगी. इससे न केवल चांद के बारे में, बल्कि अन्य ग्रहों के विषय में भी भविष्य के अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता विकसित होगी.