मज़हब और धर्म एक ऐसी बहस है, जो न ख़त्म हुई और न जब तक दुनिया है, यह ख़त्म होने वाली नहीं है. कौन का धर्म पुराना है, किसका बड़ा है, अपने-अपने तर्क हैं. कभी यह शोर तेज़ तो कभी थोड़ा कम हो जाता है लेकिन धर्म के अगुवा जब कभी मौक़ा मिलता है, अपनी बात अपने अंदाज़ में रख देते हैं. जैसा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद के 34वें सम्मेलन में मौलाना अरशद मदनी ने रखी. वो पहले ऐसा कहते रहे हैं. इस्लाम और हिंदू धर्म की समानता को बताकर जोड़ने की बात करते हैं. वो इसके लिए साधु-संतों के बीच अकसर दिखाई देते रहते हैं. ऐसे में मौलाना अरशद मदनी की बात पर आचार्य लोकेश मुनि का ग़ुस्से से तमतमा जाना और मंच पर आकर असहमति जताकर चले जाना थोड़ा अचरज में डालता है. ख़ैर सबको अपनी बात कहने और सुनने वालों का उस पर सहमति या असहमति जताने का हक़ है. उसी हक़ का इस्तेमाल आचार्य लोकेश मुनि ने भी किया.
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अब जहां तक मौलाना अरशद मदनी के तक़रीर और उस पर विवाद का सवाल है तो उन्होंने मौलाना महमूद मदनी की बात को ही आगे बढ़ाया है. दिल्ली के रामलीला मैदान में अधिवेशन के पहले दिन मौलाना महमूद मदनी ने कहा था कि इस्लाम सबसे पुराना मज़हब है. इस्लाम सबसे पुराना मज़हब क्यों है, मौलाना अरशद मदनी ने अपने तर्क और रिसर्च से यह साबित करने की कोशिश की. जब उन्होंने कहा कि अल्लाह के पहले नबी आदम अलैहिस्सलाम ही मनु और ओइम, अल्लाह है, बस यहीं से आचार्य लोकेश मुनि के नाराज़गी भरे अंदाज़ की इंट्री होती है. मैन मीडिया में बहस शुरू हो जाती है. कहीं हल्ला बोल तो कहीं दंगल के नाम से मौलाना अरशद मदनी और आचार्य लोकेश मुनि की तरफ़ादारी करने वाली गर्मागर्म महफ़िलें सज जाती हैं.
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आचार्य लोकेश मुनि के शास्त्रार्थ यानी मुनाज़रे के एलान को मौलाना अरशद मदनी के क़ुबूल करने से पहले ही ऐसा चैनलों पर शुरू हो जाता है. अब अगर हम मौलाना अरशद मदनी या महमूद मदनी के इस बयान के निहितार्त तलाशें कि इस्लाम सबसे पुराना मज़हब है तो ऐसा कहने के पीछे की मंशा के पीछे वो बातें हैं. जो आरएसएस और हिंदू संगठनों की तरफ से बारहा कही जाती रही हैं. वह यह कि मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे. कभी उनसे घरवापसी के लिए सहमति की बुनियाद पर तो कभी ज़बर्दस्ती ऐसा कराने की धमकियां सुनने में आती हैं. अधिवेशन के पहले दिन मौलाना महमूद मदनी के बयान पर ग़ौर करें कि भारती जितना पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का है, उतना महमूद का भी है. एक उनका एक इंच ज़्यादा और न मेरा एक इंच ज़्यादा. इस बयान का तात्पर्य यही लगता है कि कहीं न कहीं वो आहत हैं. उसकी वजह मुसलमानों की घरवापसी या फिर पाकिस्तान चले जाने को लेकर गाहे-बगाहे गूंजने वाली धमकियां हैं.
मौलाना महमूद मदनी अब से पहले यह भी कह चुके हैं कि जिन्हें हमारा रहन-सहन, खानपान अच्छा नहीं लगता वो कहीं और चले जाएं. यह देश हमारा है, हम तो यहीं रहेंगे. ख़ैर मज़हब-धर्म को लेकर शिद्दत पकड़ रही बहस में शास्त्रार्थ (मुनाज़रा) होगा या फिर बात उससे पहले ही ख़त्म हो जाएगी, यह मौलाना अरशद मदनी पर है. वो आचार्य लोकेश मुनि के चैलेंज पर शास्त्रार्थ करने के लिए जाते हैं या फिर उन्हें सहारनपुर में देवबंद जहां कि उनका दारुल उलूम है, वहां बुलाते हैं.
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