द लीडर : त्रिपुरा सांप्रदायिक हिंसा को ढकने वाली झूठ की चादर फट गई है. दंगों का भयावह सच सामने आ गया है. मस्जिदें जलाई गई हैं. दुकान और मकानों में आग लगाई गई. अल्पसंख्यक मुसलमानों पर टारगेट करके हमले किए गए. पुलिस हिंसा को कंट्रोल करने के बजाय, इसे छिपाने में एनर्जी खपाए रही. अब, जब सच सामने आ चुका है, तो बाहरी लोगों पर माहौल बिगाड़ने का आरोप मढ़ा जाने लगा है. इसी कड़ी में दिल्ली से त्रिपुरा हिंसा कवर करने पहुंचे पत्रकार मसीहुज्जमा को पुलिस ने रोक लिया. 2 घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ा गया. (Tripura Violence Truth Police)
मसीहुज्जमा की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक, 26 अक्टूबर को पानी सागर में हिंदुत्ववादी भीड़ ने मस्जिद और दुकानों पर हमला किया. इसमें दो मस्जिदों को नुकसान पहुंचाया गया. चाम टीला की जामा मस्जिद का गेट, खिड़की, पंखा और लाइटें तोड़ डालीं. 8 दुकानें में आग लगाई गई. जिसमें मुहम्मदद सनोहर अली, आमिर हुसैन, आमिलुद्दीन, निजामुद्दीन, यूसुफ अली, जमालुद्दीन, मुहम्मद अली और सुल्तान हुसैन की दुकानें जलकर खाक हो गईं.
सनोहर अली की दुकान में 17 लाख का सामान था, जो भस्म हो गया. वे अपनी दुकान की राख पर खड़े होकर इंसाफ की मांग कर रहे हैं. लेकिन क्या सनोहर को न्याय मिलेगा? वहां, जहां की पुलिस ही हिंसा को सिरे से नकार रही है. (Tripura Violence Truth Police)
इसलिए, क्योंकि इसी पानीसागर को लेकर पुलिस ने दावा किया था कि किसी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है. और इलाके में पूरी तरीके से अमन कायम है.
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त्रिपुरा के सिपाहिजाला जिले का एक गांव है नरौरा टीला. यहां 23 अक्टूबर को दो अज्ञात लोगों ने मस्जिद में आग लगा दी थी. एफआइआर तो दर्ज हो गई, लेकिन आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
गोमती जिले में दरगाह बाजार की एक मस्जिद को 19 अक्टूबर को जला दिया गया था. इसमें रखी कुरआन भी जल गई. तस्वीरें झूठ नहीं बोलती हैं. वे खुद हिंसा की पूरी दास्तां बयान करती हैं. (Tripura Violence Truth Police)
राज्य के ग्रामीण इलाकों में जहां अल्पसंख्यकों की तादाद सीमित थी, वहां उनके धार्मिक स्थल और आवासों को निशाना बनाया गया है. सीपीआइएम के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने घटना पर अफसोस जताया है. उन्होंने कहा कि, ये पहला मौका है, जब राज्य के हिंदू-मुसलमानों के बीच हिंसा भड़की है. और ये भाजपा के शासन में हुआ, जो शर्मनाक है.
त्रिपुरा की हिंसा बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पर बवाल का रिवेंज है. जहां 13 अक्टूबर को अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया था. त्रिपुरा, बांग्लादेश की सीमा से सटा है. खास बात ये है कि 2023 में यहां विधानसभा का चुनाव होना है. इसी 20 नवंबर को राज्य के 20 शहरों में नगर निकाय चुनाव हैं.
त्रिपुरा के आइजी कानून व्यवस्था सौरभ त्रिपाठी का एक बयान है कि, राज्य में हिंसा की भ्रामक खबरें फैलाई जा रही हैं. और कुछ देशविरोधी आसामाजिक तत्व ये शरारत कर रहे हैं. लेकिन हिंसा शांत होने के बाद, अब जो तस्वीरें सामने आ रही हैं. उन पर सन्नाटा है. सोमवार को ही पुलिस ने हिंसा को लेकर अफवाह फैलाने के आरोप में 5 केस दर्ज किए हैं. (Tripura Violence Truth Police)
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सुप्रीमकोर्ट के वकीलों की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम, एडवोकेट एहतिशाम हाशमी के नेतृत्व में राज्य के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा कर चुकी है. जिसा दावा है कि पुलिस की मौजूदगी में हिंसा होती रही, लेकिन उसे रोकने की कोशिश नहीं की गई. इस टीम ने भी मस्जिद, मकान और दुकानें जलाए जाने के सबूत जुटाए हैं.
जमीयत उलमा-ए-हिंद की भी एक टीम हिंसा के फैक्ट जुटा रही है. और नुकसान का आकलन करने में जुटी है. जमीयत ने ऐलान भी किया है कि हिंसा में जिन भी मस्जिद, मकान और दुकानों को क्षतिग्रस्त किया गया है. जमीयत उनकी मरम्मत कराएगा. (Tripura Violence Truth Police)
करीब दो सप्ताह तक राज्य में हिंसा की लपटें उठती रहीं. अल्पसंख्यक अपनी जान-माल की हिफाजत के लिए छटपटाते रहे. लेकिन पुलिस तमाशबीन की भूमिका में रही. एक महिला पुलिस अफसर जरूर एक्टिव रहीं. स्थानीय लोगों ने उनके प्रयासों की सराहना भी की है.
बहरहाल, अब इस मामले में त्रिपुरा हाईकोर्ट स्वता संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है. सरकार से हिंसा की रिपोर्ट मांगी गई है. लेकिन हिंसा पर सरकार की खामोशी शर्मनाक है.
वहीं, त्रिपुरा पुलिस ने राज्य को बदनाम करने के लिए हिंसा की अफवाहें फैलाने का आरोप लगाया है. इस मामले में पांच केस दर्ज किए गए हैं, जिनमें 75 लोगों को भड़काऊ-फेक पोस्ट शेयर करने का आरोपी बनाया है. पुलिस का दावा है कि सरकार को बदनाम करने के लिए ये किया गया है. पुलिस ने कहा कि काकड़ावन में किसी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है. ये सुरखित है.