द लीडर हिंदी : कोई यूं ही शाह मुहम्मद सिब्तैन नियाज़ी शब्बू मियां नहीं हो जाता. वो बतौर ख़ानक़ाह नियाज़िया प्रबंधक पहचाने ही नहीं जाते बल्कि वाक़ई में प्रबंधक थे. 45 साल तक ख़ानक़ाह नियाज़िया का निज़ाम बेहद शानदार तरीक़े से चलाया. सबको जोड़े रहे. छोटों से मोहब्बत का इज़हार और और बड़ों को बेपनाह इज़्ज़त देते थे. कभी किसी विवाद में नहीं कूदे. विवादित मुद्दों पर बोलने तक से गुरेज़ करते थे. यही वजह थी ख़ानक़ाह नियाज़िया में सभी धर्म, वर्ग और विचार से जुड़ी शख़्सियत की आमद-ओ-रफ़्त बनी रहती थी. यूपी के ज़िला बरेली ही की बात करें तो झारखंड के राज्यपाल संतोष गंगवार, भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री राजेश अग्रवाल सरीखे बहुत से नेता ख़ानक़ाह नियाज़िया पहुंचते रहे हैं. मेहमानों की क़द्र कोई शब्बू मियां से सीखे. अक्सर और बेशतर उनके पास बड़ी शख़्सियत बैठी दिखाई देती थीं.
मौसिक़ी के बड़े नाम उनसे मशवरा किया करते थे. जब वो साथ बैठी शख़्सियत का परिचय कराते तो बहुत देर तक यक़ीन नहीं होता, शब्बू मियां जिनका नाम ले रहे, क्या वाक़ई हम उनसे मिल रहे हैं. एक दिन ऐसे ही उन्होंने महान संगीतकार नौशाद साहब का बतौर जूनियर काम कर चुके म्यूज़ीशियन से मिलवाया. वो अपने बेटे के साथ तशरीफ़ लाए थे. तब हमने ज़ुहेब नियाज़ी का इंटरव्यू भी किया था. ऐसे ही हांगकांग से आए ग़ुलाम सिराज हुसैन नियाज़ी से मुलाक़ात कराई थी. तब वो हमसे संगीत को लेकर बहुत बड़ी बात कह गए थे. शब्बू मियां को ख़ानक़ाह पर बड़ी शख़्सियत के तशरीफ़ लाने के बहुत पुराने और यादगार क़िस्से लफ़्ज़ ब लफ़्ज़ याद थे. वो बताते थे कि किस तरह मशहूर गज़ल गायिका बेगम अख़्तर अपनी मां मुशतरी बेगम के साथ 11 साल की उम्र में ख़ानक़ाह नियाज़िया आईं तो उनके पीर अज़ीज़ मियां ने उन्हें कौन सी गज़ल गाने के लिए कहा था. यह तब कि बात है, जब बेगम अख़्तर अख़्तरी कहलाती थीं.
बेगम अख़्तर पीर से मुलाक़ात को साथ में एक नोटबुक भी लाई थीं, जिसमें तमाम ग़ज़लें लिखी हुई थीं. अज़ीज़ मियां ने एक पन्ने पर हाथ रखा और कहा कि था इस ग़ज़ल को पढ़ो तब अख़्तरी ने बहज़ाद लखनवी की ग़ज़ल, दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे.. वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे. ऐ देखने वालों, मुझे हंस-हंस के न देखो.. तुमको भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे..बाद में इसी गज़ल की रिकॉर्डिंग उस वक़्त के कलकत्ता में हुई. बेग़म अख़्तर इस गज़ल के साथ ही फ़लक पर छा गईं. ख़ानक़ाह नियाज़िया का जश्न-ए-चिराग़ां देखने इवा इटली से आई थीं. शब्बू मियां ने उनसे मिलवाते वक़्त कहा था, यह उर्दू और हिंदी में भी बोल लेती हैं. गुज़रे दिन शब्बू मियां नियाज़ी अपने चाहने वालों को ग़मज़दा करके दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़्सत हो गए.
उन्हें दोपहर पौन बजे नमाज़-ए-जनाज़ा के बाद उन्हें ख़ानक़ाही कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा. बतादें बरेली में सूफिज्म के नाम से मशहूर खानकाहे नियाजिया के प्रबंधक हाजी शब्बू मियां का मंगलवार की शाम इंतकाल हो गया. उनकी उम्र 64 साल थी. हाजी शब्बू मियां दिल और मधुमेह के रोगी थे और लंबे समय से इलाज करवा रहे थे.उनके इंतकाल की खबर फैलते ही अकीदतमंदों में गम की लहर दौड़ गई और लोग जनाजे को देखने के लिए खानकाहे की तरफ बढ़ चले. बता दें देश विदेश से उनके मानने वालों ने कॉल करके गम जताया. बुधवार को दोपहर 12:45 बजे जनाजे की नमाज अदा की जाएगी. इसके बाद उनको सुपुर्द ए खाक किया जाएगा.
ख़ैर शब्बू मियां की शख़्सियत को बयां करने वाली बातें बहुत हैं, जिन्हें बताते और सुनाते वक़्त कम पड़ जाएगा. फ़िलहाल इतना ही इंशा अल्लाह आगे किसी मौक़े पर शब्बू मियां नियाज़ी से जुड़ी कुछ नई यादों के साथ आपसे रूबरू होऊंगा.