साहिर लुधियानवी ताउम्र अविवाहित रहे, जानिए क्यों हुआ ऐसा

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साहिर लुधियानवी जन्म दिवस


गीतकार साहिर लुधियानवी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जितना ध्यान औरों पर दिया उतना खुद पर नहीं। वे एक नास्तिक थे तथा उन्होंने आजादी के बाद अपने कई हिन्दू तथा सिख मित्रों की कमी महसूस की, जो लाहौर में थे। उनको जीवन में दो प्रेम असफलताएं मिलीं – पहला कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम के साथ, दूसरी सुधा मल्होत्रा से। (Sahir Ludhianvi Remained Unmarried)

वे आजीवन अविवाहित रहे तथा उनसठ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनके जीवन की तल्ख़ियां (कटुता) उनके लिखे शेरों में झलकती है। परछाईयाँ नामक कविता में उन्होंने अपने गरीब प्रेमी के जीवन का चित्रण किया है।


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साहिर लुधियानवी (असली नाम अब्दुल हयी साहिर) का जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। हालांकि इनके पिता बहुत धनी थे, लेकिन माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुज़र हुई। शिक्षा लुधियाना के खा़लसा हाई स्कूल में हुई।

सन् 1939 में जब वे गवर्नमेंट कालेज के विद्यार्थी थे। कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेरों के लिए मशहूर हो गए थे और अमृता इनकी प्रशंसक बनी। लेकिन अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया, क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियां कीं। (Sahir Ludhianvi Remained Unmarried)

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sahir ludhiyanvi and amrita preetam

सन् 1943 में साहिर लाहौर आ गए और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह तल्खियां छपवाई। ‘ तल्खियां ‘ के प्रकाशन के बाद वे मशहूर होने लगे। सन् 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के संपादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने और इस पत्रिका में उनकी किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया।

उनके विचार साम्यवादी थे। सन् 1949 में वे दिल्ली आ गए। कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बंबई (मुंबई) आ गए, जहां उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के संपादक बने। (Sahir Ludhianvi Remained Unmarried)

फिल्म आजादी की राह पर (1949) के लिए उन्होंने पहली बार गीत लिखे, लेकिन प्रसिद्धि उन्हें फिल्म नौजवान, जिसके संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे, के लिखे गीतों से मिली। बाद में साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिए गीत लिखे।

59 वर्ष की अवस्था में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।

बॉलीवुड फ़िल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस कदर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हों। उनका नाम जीवन के विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जग़ह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और शायरों में शुमार है। (Sahir Ludhianvi Remained Unmarried)

साहिर पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी।

कुछ चुनिंदा शेर

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें

वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

———

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

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अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं

तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी

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हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही

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तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँडो

चाहा था तुम्हें इक यही इल्ज़ाम बहुत है

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औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया

जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया

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गजल

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है

ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है

ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है

इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया

इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पर क्या बीते

इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है

हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का

जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है

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नज्म

ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया

ये इंसाँ के दुश्मन समाजों की दुनिया

ये दौलत के भूके रिवाजों की दुनिया

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

हर इक जिस्म घायल हर इक रूह प्यासी

निगाहों में उलझन दिलों में उदासी

ये दुनिया है या आलम-ए-बद-हवासी

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

यहाँ इक खिलौना है इंसाँ की हस्ती

ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती

यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

जवानी भटकती है बद-कार बन कर

जवाँ जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर

यहाँ प्यार होता है बेवपार बन कर

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है

वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है

जहाँ प्यार की क़द्र ही कुछ नहीं है

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया

मिरे सामने से हटा लो ये दुनिया

तुम्हारी है तुम ही सँभालो ये दुनिया

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

(इनपुट: रेख्ता व मुक्त ज्ञान कोश से साभार)

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