लीडर नैनीताल।
उत्तराखंड में बेकाबू कोरोना के लगातार बढ़ते खतरे को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश की जेलों में 7 साल से कम सजा पाने वाले कैदियों को पैरोल पर रिहा करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने कैदियों से उनके परिवार और वकीलों से मिलने के लिए ई-मुलाकात की व्यवस्था करने के निर्देश भी दिए हैं।
यह फैसला एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है देहरादून निवासी ओमवीर सिंह ने नैनीताल उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर कहा था कि वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से हाई पावर कमेटी का गठन करने को कहा था। कोर्ट ने देश की सभी राज्य सरकारों को आदेश दिए थे कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान जेल में बंद उन कैदियों को पैरोल पर या जमानत पर रिहा कर दिया जाए, जिनके अभी ट्रायल चल रहे हैं। या जिन को कोर्ट ने 7 साल तक की सजा सुनाई है।
न्यायालय में तर्क दिया गया था कि कैदियों में संक्रमण फैलने का खतरा है। अगर जनहित में ऐसा किया जाता है तो राज्य की जेलों में फैलने वाले संक्रमण को रोका जा सकता है। याचिकाकर्ता का कथन था कि उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं हुआ है, जबकि प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई पावर कमेटी का गठन किया गया था। उस कमेटी में राज्य विधिक प्राधिकरण के वरिष्ठ जज तथा प्रदेश के गृह सचिव और डीजीपी शामिल थे। राज्य में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश लागू नहीं किए गए और ना ही राज्य सरकार ने इन पर ध्यान दिया।
याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने राज्य के आईजी जेल से न्यायालय में प्रदेश की जेलों की स्थिति से संबंधित स्पष्टीकरण देने को कहा था। आईजी जेल ने अपने जवाब में न्यायालय को अवगत करवाया कि उत्तराखंड की जेल में करीब 6000 कैदी हैं। इनमें से 4000 कैदियों की सजा विचाराधीन है और 2000 कैदियों को सजा मिल चुकी है। सरकार ने सभी कैदियों को संक्रमण मुक्त रखने के लिए पूरी व्यवस्था की है।
आईजी जेल का कहना था कि सरकार ने प्रदेश भर के जिला अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कैदियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दिलवाई जाए। उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उपरोक्त मामले में निर्देश दिए हैं कि 7 साल से कम सजा वाले कैदी और जिन आरोपितों के मामले न्यायालयों में विचाराधीन हैं, उनको कोरना संक्रमण काल में विधिवत नियम कानूनों का पालन करते हुए पैरोल पर रिहा किया जाए।