द लीडर : नौ साल के दलित छात्र इंद्र मेघवाल ने स्कूल में मास्टर की मटकी से पानी पी लिया. जिस पर ग़ुस्साए मास्टर ने इंद्र मेघवाल को इस क़दर पीटा कि इलाज़ के दौरान 23वें दिन उनकी मौत हो गई. घटना राजस्थान के जालौर के सुराणा गांव की है. 20 जुलाई को टीचर छैल सिंह ने मेघवाल को बेरहमी से पीटा था. लेकिन कोई एक्शन नहीं हुआ. अब छात्र की मौत के बाद हंगामा बरपा है. दलित संगठन, एक्टिविस्ट, शिक्षाविद सब एक सिरे से देश में जातिवाद के ख़िलाफ आक्रोशित नज़र आ रहे हैं. Rajasthan Indra Meghwal Dalit)
पहली नज़र में ये घटना जातिवाद से जुड़ी दिखाई देती है. वरना तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे से मास्टर छैल सिंह की क्या दुश्मनी हो सकती है? भारत में जातिवाद की जड़ें कितनी गहरी हैं. 9 साल का कोई बच्चा शायद ही इसे समझ पाए. मेघवाल जिस उम्र में मारे गए हैं. उसी 9 साल की उम्र में डॉ. भीमराव आंबेडकर को भी स्कूल में पानी पीने की इजाज़त नहीं थी. अपनी आत्मकथा ”वेटिंग फॉर वीज़ा” में डाॅ. आंबेडकर अपने साथ की जातिवादी घटनाओं का सिलसिलेवार तरीक़े से ज़िक्र करते हैं.
डॉ. आंबेडकर के साथ भेदभाव की घटनाओं पर हम बात करेंगे. और इंद्र मेघवाल के साथ स्कूल में क्या हुआ, 23 दिन तक कोई क़ानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हुई. ये भी बताएंगे. लेकिन इससे पहले ऐसी ही एक घटना पर नज़र डाल लेते हैं. यूपी के ज़िला कन्नौज में छात्र दिलशाद को उनके टीचरों ने घड़ी चुराने के आरोप में बेरहमी से पीटा था. बाद में इलाज़ के दौरान दिलशाद की भी मौत हो गई. दिलशाद के पिता जहांगीर दिव्यांग हैं. उन्होंने मास्टरों पर बेटे की हत्या का आरोप लगाया था. जुलाई में जब दिलशाद की मौत हुई, उसी के इर्द-गिर्द राजस्थान में मेघवाल को पीटा गया था.
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इंद्र मेघवाल जालौर के सुराणा गांव के एक निजी विद्यालय में तीसरी कक्षा में पढ़ते थे. उनके पिता देवराम का आरोप है कि 20 जुलाई की सुबह क़रीब 10:30 बजे बेटे को प्यास लगी. तो उसने स्कूल में रखी मटकी से पानी पी लिया. बेटे को ये नहीं पता था कि पानी की मटकरी स्कूल के टीचर छैल सिंह के लिए रखी गई थी, जिससे सिर्फ़ वही पानी पिया करते थे. मेघवाल को पानी पीने पर छैल सिंह ने बेरहमी से पीटा. इलाज़ के लिए अहमदाबाद के अस्पताल ले गए, बाद में उदयपुर रेफ़र किया. जहां 13 अगस्त को बेटे की मौत हो गई. Rajasthan Indra Meghwal Dalit)
मेघवाल की मौत के बाद पुलिस ने मास्टर छैल सिंह को हिरासत में लिया है. और इस मामले की पुलिस, शिक्षा विभाग दोनों जांच कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मेघवाल के परिवार को 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी. लेकिन इस घटना पर दलित संगठनों की बेहद कड़ी प्रतिक्रिया आई है. जालोर के एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा कि मास्टर पर हत्या और एससी-एसटी एक्ट में मामला दर्ज किया गया है. मटकी वाली बात अभी पुष्ट नहीं हुई है. स्कूल में पानी की एक बड़ी टंकी है, उसी का पानी पिया जाता है.
मेघवाल की मौत पर वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद दिलीप मंडल ने कहा-बाबा साहब ने अपनी आत्मकथा “वेटिंग फ़ॉर ए वीज़ा” में लिखा कि वे जब तक स्कूल में रहे, उन्हें क्लास में रखे घड़े का पानी पीने की इजाज़त नहीं थी. महाराष्ट्र बदल गया. लेकिन लगभग सौ साल बाद राजस्थान में आज भी यही चल रहा है.
भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्र शेखर आज़ाद ने ने कहा कि देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. वहीं दूरी तरफ़ पानी के मटके को छूने पर इतना पीटा गया कि जान चली गई. आज़ादी के 75 साल बाद भी 9 साल के दलित बच्चे को जालोर मे जातिवाद का शिकार होना पड़ा. हमे पानी के मटके को छूने की भी आज़ादी नहीं! फिर क्यों आज़ादी का झूठा ढिंढोरा पीट रहे हैं?
दिलीप मंडल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार को भी निशाने पर लिया है. उदयपुर में कन्हैयाला हत्याकांड का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस केस में परिजनों को 50 लाख का मुआवजा और इंद्र मेघवाल हादसे में महज 5 लाख का. दिलीप मंडल ने अपने ट्वीटर हैंडल पर बेहद तल्ख़ लहज़े में आक्रोश ज़ाहिर किया है. Rajasthan Indra Meghwal Dalit)
जब आंबेडकर को दलित होने की वजह से पानी नहीं मिला
‘हम भूखे थे और खाना, खाना चाहते थे. लेकिन पानी नहीं था. हमने बैलगाड़ी वाले से पूछा, कहीं पानी मिल जाएगा. उसने चेताया, चुंगीवाला हिंदू है. और तुमने सच बोल दिया कि हम महार हैं तो पानी नहीं मिलेगा. उससे मुसलमान बताकर अपनी तकदीर आजमा लो. प्यास से तड़पते 9 साल के भीमराव आंबेडकर अपनी आत्मकथा ‘वेटिंग फॉर वीजा’ में ये लिखते हैं.
गाड़ीवाले की सलाह पर आंबेडकर चुंगी वाली झोपड़ी में जाकर पूछते हैं-थोड़ा पानी मिल जाएगा. अंदर वाला शख्स सवाल करता है-कौन हो. ‘आंबेडकर कहते हैं, हम मुसलमान हैं.’ आंबेडकर लिखते हैं, ‘मैंने उससे उर्दू में बात की, जो मुझे अच्छी आती थी. लेकिन ये चालाकी काम नहीं आई. उसने इतने रुखे अंदाज में कहा, ‘तुम्हारे लिए यहां पानी किसने रखा है? पहाड़ी पर जाओ और वहां से ले आओ. मैं अपना सा मुंह लेकर गाड़ी के पास लौट आया. मेरे भाई ने सुना तो कहा चलो अब सो जाओ.’
आंबेडकर अपनी आत्मकथा में लिखते भी हैं कि इस घटना की मेरी जिंदगी में काफी अहमियत है. तब मैं नौ साल का था. मेरे दिमाग पर घटना की अमिट छाप पड़ी. इसके पहले भी मैं जानता था कि मैं अछूत हूं और अछूतों को कुछ अपमान, भेदभाव सहन करना पड़ता है. मसलन, स्कूल में, मैं अपने बराबरी के साथियों के साथ नहीं बैठ सकता था. मुझे एक कोने में अकेले बैठना पड़ता था. Rajasthan Indra Meghwal Dalit)
मैं यह भी जानता था कि मैं अपने बैठने के लिए एक बोरा रखता था और स्कूल की सफाई करने वाला नौकर तक वह बोरा नहीं छूता था. क्योंकि मैं अछूत हूं. हालांकि आंबेडकर को हैदराबाद के दौलताबाद के एक किले में पानी को लेकर मुसलमानों से भी भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इस तरह दोनों मायनों में आंबेडकर के अनुभव कड़े रहे.
डॉ. भीमराव आंबेडकर की वेटिंग फॉर वीजा कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है. जबकि भारत में ये किताब नहीं पढ़ाई जाती. यह किताब हर छात्र, देशवासी को पढ़नी चाहिए. ताकि वो जातिगत भेदभाव को लेकर आंबेडकर के अनुभव जान और समझ सके. Rajasthan Indra Meghwal Dalit)
आज देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. अलग-अलग राज्यों में जश्न के कार्यक्रम भी हो रहे हैं. लेकिन एक सवाल बरकरार है. क्या देश को धर्म-जाति और नफरत की कैद से आजादी मिल पाएगी? क्योंकि इससे उबरने के बजाय समाज इसमें और गहरा धंसता जा रहा है. आज तो बड़े फख्र के साथ हिंसा को जायज ठहराया जाने लगा है. और तो और महिला, दलित और अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा करने वालों की जयकार हो रही है. (Rajasthan Indra Meghwal Dalit)