नजवान दरवेश की कविताएं, जो तालिबानियों को कभी पसंद नहीं आएंगी

0
426

-नजवान दरवेश की कविताएं-

नरक में

सन् 1930 के आसपास
ऐसा नाज़ियों द्वारा किया जाता था
अपने शिकारों को वे गैस चैम्बर के भीतर रखते थे
आज के जल्लाद कहीं अधिक पेशेवर हैं :
वे गैस चैम्बर को रखते हैं
अपने शिकारों के भीतर ही

उड़ान

कितनी ही दूर चले जाओ पृथ्वी से
पर दुबारा नीचे गिरने से
कोई तुम्हें बचा नहीं सकता
तुम्हें पृथ्वी पर उतरना ही पड़ेगा
चाहे पांवों के बल उतरो या सिर के
उतरना तो पड़ेगा
यदि विस्फोट भी हो जाये विमान में
तुम्हारे पुर्ज़ों, तुम्हारे परमाणुओं तक को
आना ही होगा पृथ्वी पर
तुम ठुंके हुए हो कील की तरह इसमें :
यह पृथ्वी है, तुम्हारा अदना-सा सलीब

एक स्पष्टीकरण

जूडस का कोई इरादा नहीं था
मुझसे “विश्वासघात” करने का-
उसे तो पता तक नहीं था किसी इतने बड़े शब्द के बारे में
वह तो “बाज़ार का एक आदमी” भर था
और उसने यह किया- कि जब ख़रीदार आये-
उसने मुझे बेच दिया
क्या क़ीमत बहुत कम थी?
हरगिज़ नहीं। चांदी के तीस सिक्के
कोई कम तो नहीं होते
कचरे से बने किसी इन्सान के लिये
मेरे सारे प्रिय मित्र जूडस ही तो हैं
सब के सब
बाज़ार के आदमी

विलम्बित स्वीकृति

मैं पत्थर था जिसे निर्माणकर्ता प्राय: नकारते आये
पर जब वे आये, थकान और ग्लानि से लथपथ होकर
विध्वंस के बाद
और कहा, “तुम ही थे नींव के पत्थर”
तब कुछ बचा ही नहीं था निर्माण के लिये
उनका तिरस्कार कहीं अधिक सहनीय था
उनकी इस विलम्बित स्वीकृति से

फंदे में

फंदे में फंसे चूहे ने कहा
इतिहास मेरे पक्ष में नहीं है :
सारे सरीसृप इन्सानों के एजेन्ट हैं
और सारी मानव-जाति मेरे विरोध में है
परन्तु हां, इन सबके बावज़ूद
मुझे विश्वास है कि
मेरी सन्तति क़ायम रहेगी

बेआवाज़ कोठरियां

वह टंगी है अब भी काठ की एक टिकठी पर
और मैं कुल मिला कर महज चीख़ ही सकता हूं
इन कोठरियों को कोई आवाज़ बेध नहीं पाती

रात-दिन

सर्दी और गर्मी में
वायु, अग्नि, पृथ्वी और जल में
अन्धेरे और उजाले में
अब भी टंगी है वह :
यह दुनिया टंगी हुई है काठ की एक टिकठी पर

जागो

चिरकाल तक नहीं बल्कि देर तक जागो
और अब से अनन्तकाल के पहले तक
मेरी जागृति एक लहर है फेनिल और झागदार
जागो ऋचाओं में और डाकिये के जुनून में जागो
जागो उस घर में जिसे कर दिया जायेगा मटियामेट
उस कब्र में, मशीन जिसे खोदने वाले होंगे :
मेरा देश एक लहर है फेनिल और झागदार
जागो कि उपनिवेशवादियों को जाना ही पड़े
जागो कि लोग सो सकें
“हर किसी को कुछ देर सोना चाहिये”
वे कहते हैं
मैं जाग रहा हूं
और तैयार हूं मरने के लिये

 

(अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र)


यह भी पढ़ें: जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएंगे


(आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here