दि लीडर : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नजीब अहमद को लापता हुए चार साल बीत चुके हैं. देश की शीर्ष जांच एजेंसी-सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई) उन्हें तलाशने में असफल रही और थककर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी. Najeeb Knock Everyday Home
मगर एक मां हैं-फातिमा नफीस, जिनका हौसला अब भी बरकरार है. वो, हर रोज घर की चौखट पर नजीब की दस्तक की आहट महसूस करती हैं. इस उम्मीद के साथ कि, “नजीब नेक बच्चा है. वो जहां भी है, रब की पनाह में हैं. मेरा भरोसा है कि एक दिन जरूर वापस आएगा.’
इस हौसले को वो हर रोज अपने आंसुओं से सींचकर जिंदा रखे हैं. बातचीत के बीच उनकी कर्कश होती आवाज इसका एहसास कराती है. उनके दामन में केवल नजीब ही नहीं बल्कि देश के हर नौजवान के लिए बेशुमार दुआएं हैं.
दि लीडर से खास बातचीत में फातिमा नफीस कहती हैं, “मेरा नजीब तो दूर हो गया. अब हर दिन यही दुआ मांगती कि किसी और मां के साथ ऐसा न हो.’ वो 14-15 अक्टूबर की दरम्यिानी रात थी, जब नजीब जेएनयू हॉस्टल से गायब हो गए थे। इससे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े छात्रों से उनका विवाद हो गया था.
नजीब के हक में पूरी दुनिया से उठीं आवाजें
-15 अक्टूबर को फातिमा नफीस ने नजीब के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसके बाद जेएनयू, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय-दिल्ली, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) समेत देशभर के तमाम शिक्षण संस्थानों के छात्रों ने नजीब के लिए आवाज उठाई.
सामाजिक संगठन और बुद्धिजीवी भी समर्थन में उतरे. आंदोलन हुए। बाद में सीबीआइ ने प्रकरण की जांच की, जिसमें वो किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई.

मैं नहीं चाहती थी कि जेएनयू में पढ़ें
-नजीब ने पांच विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा दी थी. इसमें एएमयू, जामिया समेत अन्य शामिल थे. सभी में उसका नंबर आ. पर नजीब को जेएनयू भाया. मैंने, जेएनयू में एडमिशन लेने से मना किया, क्योंकि उस समय कन्हैया कुमार और उमर खालिद का विवाद चल रहा था. इस शर्त पर इजाजत दी कि हॉस्टल नहीं लोगे और मैं साथ में रहूंगी।
दिल्ली के जाकिर नगर में किराये पर मकान लिया. 20 सितंबर तक मैं नजीब के साथ दिल्ली रही. चूंकि 2016 में मेरे चारों बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, जिसका खर्च अधिक आ रहा था. इस कारण नजीब ने हॉस्टल लेने का मन बनाया, जो मिल भी गया. काश! मैंने हॉस्टल ज्वाइन न करने दिया होता.
भजन-नमाज एक संग देख पैदा हुआ भरोसा
हॉस्टल लेने से पहले नजीब 15 दिन डोरमैट्री में रहे. मैं वहां गई. देखा, कोई छात्र भजन गा रहा है तो कोई नमाज पढ़ रहा. दाढ़ी वाले छात्र भी हैं तो तिलक लगाने वाले लड़के भी. ये नजारा देखकर मुझे काफी अच्छा लगा। तसल्ली हो गई कि यहां वैसा कुछ भी नहीं जैसी बाहर अफवाह फैली
नजीब के बिछड़ने से समाज में इंकलाब
-दि लीडर से बातचीत में फातिमा नफीस बताती हैं-नजीब मुझसे दूर जरूर चले गए, मगर उनके जाने से नौजवानों में इंकलाब आ गया. छात्र हों या कामकाजी युवा-सब निडरता से बोलने लगे हैं. हालांकि धीरे-धीरे अभिव्यक्ति के अधिकार को कमजोर किया जा रहा है. नए-नए कानून इसी की बानगी हैं. मेरा मानना है कि गांधी के रास्ते पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति देशद्रोही तो कतई नहीं हो सकता.
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देश को सांप्रदायिक खांचे में बांटने की साजिशें भारतीयता के सामने बौनी हैं. नजीब की लड़ाई इसका प्रमाण है, जिसमें सभी धर्म-जाति के छात्र, नौजवान और न्यायप्रिय लोगों ने मेरा साथ दिया. इस्लामिक स्टूडेंट ऑग्रेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआइओ) भी साथ रही. अभी भी जब कोर्ट की तारीख होती है तो हिंदू समाज के लड़के-लड़कियां मुझे फोन करके याद दिलाते हैं. यही भारत है और मानवता इसकी ताकत. Najeeb Knock Everyday Home
तुम ही मेरी दुनिया, तुम ही मेरी जन्नत
मां अपने सभी बच्चों को बेपनाह मुहब्बत करती हैं. वैसे ही मैं भी करती। मगर नजीब की बात अलग थी. वो सूफिज्म का अक्स है. घर पर रहता तो मस्जिद में नमाज पढ़ाता। बीएससी में शिक्षक नहीं होते स्वयं ही कक्षा में पढ़ाने लग जाता था। घर पर भी खूब मन लगाकर पढ़ता. हालांकि नजीब के जाने के बाद से कोई खुशी रास नहीं आ रही. अगर वो घर होते, तो अब तक शादी कर देती.