बड़ी खोज: नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर बनाया ऑक्सीजन

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वाशिंगटन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पर्सिवरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर उस वक्त इतिहास रच दिया जब उसने लाल ग्रह के वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड को शुद्ध करके सांस लेने योग्य ऑक्सीजन में बदल दिया।
नासा ने बताया यह पहला मौका है जब किसी दूसरे ग्रह पर यह कामयाबी हासिल की गई। यह सफलता भविष्य में मंगल पर मानवीय जरूरतों के लिए रास्ता खोल सकती है। धरती से सात माह की यात्रा कर 18 फरवरी को मंगल ग्रह पर पहुंचे पर्सिवरेंस रोवर ने यह अभूतपूर्व खोज करते हुए टोस्टर के आकार के मॉक्सी उपकरण ने 5 ग्राम ऑक्सीजन का उत्पादन किया।


नासा के मुताबिक यह ऑक्सीजन एक अंतरिक्ष यात्री के 10 मिनट के सांस लेने के बराबर है। नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो पहली बार किसी अन्य ग्रह पर हुआ ऑक्सीजन उत्पादन मामूली है लेकिन यह प्रयोग दिखाता है कि प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल से दूसरे ग्रह के वातावरण का इस्तेमाल मनुष्यों द्वारा सीधे सांस लेने के लिए किया जा सकता है।


नासा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मिशन निदेशालय में प्रौद्योगिकी मामलों की निदेशक ट्रुडी कोर्ट्स ने इसे भविष्य की तकनीक बताया जिसमें जमीन से दूर रहने में मदद हासिल हो सकती है। मॉक्सी नामक उपकरण इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से अत्यधिक गर्मी का इस्तेमाल सीओ-2 के अणुओं से ऑक्सीजन कण को अलग करने के लिए करता है। इस यंत्र का पूरा नाम है मार्स ऑक्सीजन इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन एक्सपेरीमेंट। मंगल के वायुमंडल में 95 फीसदी सीओ-2 ही है। यहां बाकी पांच फीसदी हिस्सा नाइट्रोजन और आर्गन का है। मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन नाम मात्र मौजूद है। इससे मंगल पर बसने वाली पहली कॉलोनी को ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है।
नासा का मकसद 2033 तक मंगल पर मानव को पहुंचाने का है और वह यहां आने वाली इससे संबंधित तमाम चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रहा है। इनमें से एक चुनौती मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन का निर्माण करना होगा क्योंकि पृथ्वी से आठ माह के सफर में मंगल ग्रह तक इतनी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन ले जाना संभव नहीं होगा।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में मॉक्सी नामक उपकरण को डिजाइन किया गया है। इसे तैयार करने लिए गर्मी प्रतिरोधक सामग्री जैसे निकल अलोय जैसी धातु से तैयार किया गया है। यह उपकरण 800 सेल्सियस के तापमान को भी बर्दाश्त कर सकता है।
नासा ने 19 अप्रैल को मंगल ग्रह पर इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर उड़ाने के बाद 20 अप्रैल को रोवर के पेट से मॉक्सी को बाहर निकाला। मॉक्सी ने बाहर आने के बाद मंगल ग्रह के वायुमंडल से ऑक्सीजन को कलेक्ट किया। मंगल के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा है।
अगर इस यंत्र से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन निकाला जा सकता है तो भविष्य में मंगल ग्रह पर इंसानों की बस्ती बनाई जा सकती है। साथ ही इसका उपयोग वहां से लौटने वाले रॉकेट के ईंधन के रूप में किया जा सकता है।अगर भविष्य में नासा और स्पेसएक्स कुछ दिनों के लिए मंगल ग्रह पर एस्ट्रोनॉट्स को भेजेंगे तो इस तकनीक से उनके लिए कम से कम सांस लेने भर का ऑक्सीजन निकाला जा सकता है।
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्टोरेट के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जिम रियूटर ने बताया कि मंगल का वायुमंडल बेहद हल्का और पतला है। इसमें से ऑक्सीजन निकालना एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है। लेकिन मॉक्सी ने पहली बार ये कर दिखाया।
जिम ने बताया इतना ही नहीं अगर इस ऑक्सीजन का उपयोग एस्ट्रोनॉट्स नहीं करते हैं तो इसका उपयोग रॉकेट में बतौर ईंधन होगा। आमतौर पर रॉकेट में ऑक्सीजन का उपयोग फ्यूल की तरह किया जाता है। रॉकेट में 7000 किलोग्राम ईंधन और 25 हजार किलोग्राम ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इसलिए इतना ऑक्सीजन बनाने के लिए मॉक्सी (MOXIE) का एक बड़ा यंत्र मंगल ग्रह पर लगाना पड़ेगा. जबकि, एस्ट्रोनॉट्स को सांस लेने के लिए इतने ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर कोई एस्ट्रोनॉट मंगल ग्रह पर एक साल बिताता है तो उसे मात्र 1000 किलोग्राम ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी।
मॉक्सी 6 ग्राम प्रति घंटे की दर से ऑक्सीजन पैदा किया है। बीच में इसकी प्रक्रिया को धीमा करना पड़ा था।

मॉक्सी को मंगल ग्रह के वायुमंडल में ऑक्सीजन बनाने के लिए बहुत ज्यादा तापमान की जरूरत होती है। ये तरीब 800 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये। इसलिए नासा ने मॉक्सी को ऊष्मारोधी (Heat Tolerant) पदार्थों से बनाया गया है। इसमें थ्रीडी प्रिंटेड निकल एलॉय शामिल है। इसके अलावा एयरोजेल और सोने की कोटिंग लगाई गई है।
निकल एलॉय से गर्म और ठंडी गैसें निकलती है. एयरोजेल गर्मी को रोकने में मदद करता है. वहीं सोने की कोटिंग की वजह से मॉक्सी रेडियोएक्टिव किरणों से बचा रहता है. साथ ही इससे मार्स पर्सिवरेंस रोवर के अन्य हिस्से सुरक्षित रहते हैं।


नासा ने 19 अप्रैल को दोपहर करीब 4 बजे किसी दूसरे ग्रह पर हेलिकॉप्टर भी उड़ाया। इस हेलिकॉप्टर का नाम है इंजीन्यूटी हेलिकॉप्टर पहले यह तय हुआ था कि ये 14 अप्रैल 2021 को उड़ान भरेगा लेकिन NASA ने कहा है कि हेलिकॉप्टर की टेस्ट उड़ान के दौरान टाइमर सही से काम नहीं कर रहा था, इसलिए उड़ान को टाल दिया गया था।