नासिर काज़मी की पांच चुनिंदा शायरी

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-जन्मदिन-

मशहूर उर्दू शायर नासिर काज़मी उर्दू का जन्म 8 दिसंबर 1925 को पंजाब में हुआ। बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान जाकर बस गए। बंग-ए-नौ, पहली बारिश आदि इनके प्रमुख संग्रह हैं। दो मार्च 1972 को उनका निधन हुआ। (Poetry of Nasir Kazmi)

चुनिंदा शायरी

होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी

होती है तेरे नाम से वहशत कभी-कभी

बरहम हुई है यूं भी तबीयत कभी-कभी

 

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब

मिलती है ज़िंदगी में ये राहत कभी-कभी

 

तेरे करम से ऐ अलम-ए-हुस्न-ए-आफ़रीन

दिल बन गया है दोस्त की ख़िल्वत कभी-कभी

 

दिल को कहां नसीब ये तौफ़ीक़-ए-इज़्तिराब

मिलती है ज़िंदगी में ये राहत कभी-कभी

 

जोश-ए-जुनूं में दर्द की तुग़यानियों के साथ

अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी-कभी

 

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमईन न था

गुज़री है मुझ पे भी ये क़यामत कभी-कभी

 

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था

यूं भी गुज़र गई शब-ए-फ़ुर्क़त कभी-कभी

 

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मुहब्बत के बावजूद

महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी-कभी


दिल में इक लहर सी उठी है अभी

दिल में इक लहर सी उठी है अभी

कोई ताज़ा हवा चली है अभी

 

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में

कोई दीवार सी गिरी है अभी

 

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी

और ये चोट भी नई है अभी

 

भरी दुनिया में जी नहीं लगता

जाने किस चीज़ की कमी है अभी

 

तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या

हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी

 

याद के बे-निशाँ जज़ीरों से

तेरी आवाज़ आ रही है अभी

 

शहर की बेचिराग़ गलियों में

ज़िन्दगी तुझ को ढूंढती है अभी

 

सो गये लोग उस हवेली के

एक खिड़की मगर खुली है अभी

 

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे

शहर में रात जागती है अभी

 

वक़्त अच्छा भी आयेगा ‘नासिर’

ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी (Poetry of Nasir Kazmi)


करता उसे बेकरार कुछ देर

करता उसे बेकरार कुछ देर

होता अगर इख्तियार कुछ देर

 

क्या रोएं फ़रेब-ए-आसमां को

अपना नहीं ऐतबार कुछ देर

 

आंखों में कटी पहाड़ सी रात

सो जा दिल-ए-बेक़रार कुछ देर

 

ऐ शहर-ए-तरब को जाने वालों

करना मेरा इंतजार कुछ देर

 

बेकैफी-ए-रोज़-ओ-शब मुसलसल

सरमस्ती-ए-इंतज़ार कुछ देर

 

तकलीफ-ए-गम-ए-फिराक दायम

तकरीब-ए-विसाल-ए-यार कुछ देर

 

ये गुंचा-ओ-गुल हैं सब मुसाफिर

है काफिला-ए-बहार कुछ देर

 

दुनिया तो सदा रहेगी नासिर

हम लोग हैं यादगार कुछ देर (Poetry of Nasir Kazmi)


नीयत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं

नीयत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं

तू भी दिल से उतर न जाए कहीं

 

आज देखा है तुझे देर के बाद

आज का दिन गुज़र न जाए कहीं

 

न मिला कर उदास लोगों से

हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं

 

आरज़ू है के तू यहां आए

और फिर उम्र भर न जाए कहीं

 

जी जलाता हूं और ये सोचता हूं

रायेगां ये हुनर न जाए कहीं

 

आओ कुछ देर रो ही लें “नासिर”

फिर ये दरिया उतर न जाए कहीं


तेरे मिलने को बेकल हो गए हैं

तेरे मिलने को बेकल हो गए हैं

मगर ये लोग पागल हो गए हैं

 

बहारें लेके आए थे जहां तुम

वो घर सुनसान जंगल हो गए हैं

 

यहां तक बढ़ गए आलाम-ए-हस्ती

कि दिल के हौसले शल हो गए हैं

 

कहां तक ताब लाए नातवां दिल

कि सदमे अब मुसलसल हो गए हैं

 

निगाह-ए-यास को नींद आ रही है

मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गए हैं

 

उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना

यहाँ जो हादसे कल हो गए हैं

 

जिन्हें हम देख कर जीते थे “नासिर”

वो लोग आंखों से ओझल हो गए हैं (Poetry of Nasir Kazmi)


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