अतीक खान
-इस दौर का मीडिया जब किसानों में खालिस्तानी, मुसलमानों में आतंकवादी और बुद्धिजीवियों में नक्सलवादी, नोटों में चिप की खोज में जुटी रहती है. सारा दिन टीवी चैनलों की जहरीली डिबेट की खुराक तलाशती रहती. अखबारों के पन्ने एकपक्षीय कंटेंट से रंगे होते हैं. उस वक्त में दानिश सिद़दीकी ((Danish Siddiqui ) की आंख और कैमरे के लैंस दुनिया के किसी भी हिस्से में आम इंसान पर हुए जुल्म, दर्द और बेबसी को दिखाने का काम कर रहे होते हैं. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
दानिश सिद्दीकी अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर के भारत में फोटो प्रमुख थे. वह अब हमारे बीच नहीं हैं. अफगानिस्तान में सेना और तालिबान के बीच जारी युद्ध कवर करने गए थे. जहां कंधार प्रांत के स्पिन बोल्डकर इलाके में हुई गोलीबारी से उनकी मौत हो गई. समूची विश्व बिरादरी ने पत्रकार दानिश की मौत पर रंजो-गम का इजहार किया है.
दानिश ने दिल्ली की प्रतिष्ठित जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से पत्रकारिता की पढ़ाई की है. यहीं से स्नातक किया. वह 2005-2007 बैच के पासआउट हैं. जामिया की कुलपति प्रोफेसर नज्मा अख्तर ने उनके इंतकाल (निधन) पर गहरा दुख जताया है. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
@jmiu_official condoles tragic death of its alumnus award-winning photojournalist @dansiddiqui in Afghanistan.@Reuters @PTI_News @ANI pic.twitter.com/b75KFZBRna
— Jamia Millia Islamia (NAAC A++ Grade Central Univ) (@jmiu_official) July 16, 2021
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जामिया से दानिश का दोहरा रिश्ता है. उनके पिता अख्तर सिद्दीकी जामिया के एजुकेशन विभाग के डीन रहे हैं. और नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्ज एजुकेशन (NCTE)के पूर्व चेयरमैन भी. दानिश जामिया की ही आबोहवा में पले-बढ़े. जिसके गौरवशाली अतीत ने दानिश की जिंदगी पर गहरा असर डाला. इसका अंदाजा आप उनके काम से लगा सकते हैं. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
देश ही नहीं दुनिया में जहां कहीं भी जुल्म होता. दानिश का कैमरा, उसे धर्म-जाति, नस्लवाद, क्षेत्रवाद, ऊंच-नींच, पूंजीपति बनाम गरीब-मजदूर, न जाने कितने ही टुकड़ों में टूटी, मानव बिरादरी के सामने लाने को हाजिर रहता. एक अजीब से चुंबकीय शक्ति थी उनमें, जो समाज में रिसते जुल्म, शोषण को भांपकर पहले ही वहां पहुंच जाया करते. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
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41 साल के दानिश सिद़दीकी पहले भारतीय हैं, जिन्हें 2018 की एक तस्वीर के लिए प्रतिष्ठित पुल्तिजर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. साल 2010 में रॉयटर्स में बतौर इंटर्न फोटोग्राफर अपने करियर की शुरुआत करने वाले दानिश ने अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई और पुरस्कार भी हासिल किए हैं.
लेकिन महज 8 साल के करियर में पुल्तिजर पुरस्कार लेने वाले शायद वह इकलौते पत्रकार हैं. अपने काम से वे वैश्विक मीडिया के हीरो बन गए. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
जिस तस्वीर के लिए दानिश को पुल्तिजर पुरुस्कार मिला. वो म्यांमार के रोहिंग्या नरंसहार से जुड़ी है. 2017 में जब म्यांमार में कत्लेआम के बाद लाखों रोहिंग्या मुसलमान देश छोड़कर बांग्लादेश के लिए भाग रहे थे. उस वक्त दानिश खतरनाक इलाकों में रोहिंग्या पर हुए जुल्म और दर्द की तस्वीरों को अपने कैमरों में कैद कर रहे थे.
उनकी तस्वीरें इस बात का प्रमाण हैं. इसके लिए वे अपनी जिंदगी को दांव पर लगाए रहते. अफगानिस्तान जहां वह मारे गए हैं. दानिश जीवित आते तो केवल तालिबान के दहशत की तस्वीरें ही नहीं होतीं. बल्कि वहां के बच्चे, महिलाओं, समाज में बैठे खौफ की तमाम कहानियां बाहर लेकर आते. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
वरिष्ठ पत्रकार आशीष आनंद कहते हैं कि दानिश सिद़दीकी में जो दिलेरी और साहस था. उसे केवल पेशेवर जुनून तक समझना शायद उचित नहीं होगा. बल्कि दानिश एक विचार को जीते थे. वो विचार-जो मनुष्यों द्वारा मनुष्यों पर किए जाने वाले जुल्म के खिलाफ है. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
सीएए प्रोटेस्ट से दिल्ली दंगों तक, बोलती तस्वीरें
दिल्ली के शाहीनबाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) प्रोटेस्ट पर हजारों कैमरों की नजर थी. इसकी असंख्यक तस्वीरें सामने आईं. लेकिन दानिश सिद़दीकी की तस्वीरें सब कुछ बोलती हैं. इसी तरह पिछले साल फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों में दानिश ने जो तस्वीरें लीं, वो अंतरराष्ट्रीय मीडिया के पहले पन्ने पर छाई रहीं. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
पिछले साल लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन का दर्द-बेबसी हो या फिर इस बार सुलगती चिताओं के ढेर. दानिश ने अव्यवस्था को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया.
यूपी के हालिया ब्लॉक प्रमुख चुनाव में एक वीडियो काफी वायरल हुई थी. जिसमें सीडीओ पत्रकार को पीटते नजर आते हैं. हल्ला मचने के अगले दिन सीडीओ पत्रकार के घर जाते हैं. और मिठाई खिलाकर मामला रफा-दफा करा लेते हैं. इस घटना का दानिश से सिर्फ इतना वास्ता है कि ये दोनों पत्रकार थे. (Danish Siddiqui Brave Journalist )
इसलिए जनपक्षीय पत्रकारिता की शून्यहीनता के बीच दानिश उम्मीद की एक लौ थे. जो जुल्म को दिखाते हुए बुझ गई. पत्रकारिता जगत के साथ भारतीय समाज का ये बड़ा नुकसान है. खासकर उनका, जिनकी आवाजें सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने से पहले ही गुम हो जाया करती हैं. दानिश एक जांबाज, दिलेर और बहादुर पत्रकार थे. उनका काम और यादें हमेशा जिंदा रहेंगी. (Danish Siddiqui Brave Journalist )