बरेली मंडल में नई डगर पर भाजपा, रोतीं संघमित्रा, रुठे-रुठे वरुण, संतोष गंगवार के लिए असंतोष

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द लीडर हिंदी : यूपी में बरेली मंडल के अपने मज़बूत गढ़ की भारतीय जनता पार्टी ने नये सिरे से क़िलेबंदी की है. तीन सांसदों के टिकट काटकर नये क्षत्रप को आगे लाया गया है. इन तीनों के लिए ये सूर्योदय है तो जिनके टिकट कटे हैं, उनके लिए इसे फ़िलहाल सूर्यास्त माना जा रहा है. यही वो कसक है, जिसका इज़हार कहीं आंसू करा रहे हैं तो कहीं रुठना तो कहीं सहज दिखने की नाकाम कोशिश से हो रहा है. बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य के आंसू बेसबब नहीं हैं. रुठे-रुठे से पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और बरेली के सांसद संतोष गंगवार के लिए सोशल मीडिया पर असंतोष बहुत कुछ कह रहा है.

पहले आप बदायूं से जिन संघमित्रा मौर्य का टिकट कटा है, उनके तीन रंग ग़ौर से देखिए-हंसते, रोते और सफ़ाई देते. फिर अंदाज़ा लगाइए कि वो इनमें से सही रंग में कौन सा है. जब से भाजपा ने टिकट काटा है, वरुण गांधी पीलीभीत नहीं आए हैं. उस लोकसभा क्षेत्र में जहां से 35 साल उनकी मां मेनका गांधी या फिर वो ख़ुद सांसद चुने जाते रहे. वरुण तब भी नहीं आए, जब गुज़रे दिन मंगलवार को सीएम योगी आदित्यनाथ प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को संबोधित करने के लिए आए थे. पीलीभीत में वरुण गांधी को छोड़कर बरेली में सांसद संतोष गंगवार और बदायूं में सांसद संघमित्रा मौर्य ने सीएम के साथ मंच साझा किया.

वरुण गांधी की चिट्ठी की वो इबारत अब भी चर्चा का विषय बनी है, जिसमें उन्होंने अपना दर्द बयां किया है. यह कहते हुए कि राजनीति में आम आदमी की आवाज़ उठाने आया था और आपसे यही आशीर्वाद मांगता हूं कि सदैव यह कार्य करता रहूं, भले ही उसकी कोई क़ीमत चुकानी पड़े. मैं आपका था, हूं और रहूंगा. वरुण गांधी का टिकट क्यों कटा है, वो अपनी इस चिट्ठी में इशारातन कह गए हैं. जहां तक संतोष गंगवार का सवाल है तो उनकी उम्र सक्रिय राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाने में बैरियर बन गई.

75 साल पार होने पर उन्हें भाजपा ने इस बार टिकट नहीं दिया, तब जबकि वो आठ बार के सांसद हैं. उनकी विरासत को आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी बहेड़ी के पूर्व विधायक छत्रपाल सिंह गंगवार को मिली है. उनकी दावेदारी सोशल मीडिया पर बहस का सबब बनी है. तमाम तरह के क़यास और संभावनाओं के दरमियान संतोष गंगवार सीएम योगी के साथ प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में मौजूद रहे. संतोष गंगवार सही में कितने सहज हैं, यह तो वही जानें लेकिन तीनों टिकट काटने के बावजूद भाजपा असहज नहीं है. तीनों में से एक भी लोकसभा क्षेत्र में बग़ावत जैसा कोई स्वर नहीं है. अब बदलाव के नतीजे भाजपा के लिए कितने सुखद रहेंगे, उसके लिए मतगणना तक इंतज़ार करना होगा.