तहजीब का ये निसाब जिसे लखनऊ कहते हैं, उसे आबाद रखने को कैसे पूरा शहर डटकर खड़ा हो गया

सुना बुज़ुर्गों से की लखनऊ की तमाम ख़ूबियों में इसकी क़ौमी यकजहती (सामाजिक एकता) सरे फ़ेहरिस्त है. फरमाया जान-ए-आलम ने कि इंसान की शिनाख़्त सिर्फ़ इंसानियत से होती है. दीपू दद्दा कहते थे और हम भी मानते हैं कि अगर इंसान लखनऊ में रहा और उसमें साम्प्रदायिक भावना रही तो दरअस्ल लखनऊ का मर्म उसपे खुला नहीं. इस शहर ने जिससे रिश्ता जोड़ लिया फिर उसको यकजहती का चस्का लग जाएगा.

कोरोना ने लखनऊ के ख़ूबसूरत दामन को तार-तार कर डाला है. आहिस्ता-मिज़ाजी से भरा ये शहर मरघटिया उठा-पटक का शिकार हो गया है. मगर इस तमाम अंधेरे में भी उजाले की एक किरन दिखाई देती है. लखनऊ पर बुरा वक़्त है. तो लखनऊ ज़ोर लगा रहा है. अपने आप को बचाने में. इस कोशिश में हम पर इसकी पोशीदा मजबूती, अंदरूनी रंगत फिर से अयां हो रही है, और इसमें सबसे खिला-खिला है उसी मेल मिलाप का रंग.


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आज इस महामारी में अलग अलग धर्मों के बेशुमार नौजवान एक होकर बेशुमार कोरोना पीड़ितों की मदद कर रहे हैं. बिना उनके मज़हब को दीवार बनाए. इसमें सबूर जैसा दीवाना भी है जो दिन रात एक किए देता है. इसमें शुभम भी है जो हर वक़्त एक्शन को तैयार रहता है. इसमे उमर भी है जो किसी और मरीज़ की जान बचाने को अपने वालिद का सिलेंडर दे देता है. इसमें उपासना भी हैं, जो मदद की डोर टूटने नहीं देतीं.

इसमे आशुतोष हैं जो पेशेंट्स को मुफ्त खाना पहुचाते हैं. इसमे हफ़ीज़ हैं जो हर दिल अज़ीज़ हैं. भारतेंदु, सानिध्य, रेहान, अंकित, शुभी, विक्रम, सना उम्मीद, प्रज्ञा मिश्रा भी तो हैं… और फिर इसमें लखनऊ के सब मदद करने वालों के पीर-ए-मुगां चिर-मददगार दीपक कबीर भी हैं. कितने नाम गिनाए जाएं. एक पूरी कहकशां है खूबसूरत लोगों की. और जानते हैं इन सब दीवानों में कॉमन क्या है ? लखनवियत !


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जी हां लखनऊ से इनका रिश्ता इनमें कॉमन है. तहज़ीब का ये निसाब जिसे लखनऊ कहते हैं. उसे इन सबने पढ़ा है. इन्हीं के दम से इस अंधेरे में लखनवी यकजहती का ये चिराग़ झमझमा रहा है. अब कोई अगर ये कहे कि लखनऊ में कम्युनल लोग भी तो हैं तो सिर्फ इनका चर्चा क्यों? तो हम ये कहेंगे कि वो लखनऊ में हैं लेकिन लखनऊ उनमें नहीं है.

लखनऊ जो उनमें होता तो वो ऐसे न होते. वो लखनऊ को और लखनऊ उन्हें जानता ही कहां है. इसीलिए हम कहते हैं कि लखनऊ के बारे में सबको पढ़ना समझना चाहिए. सबको बड़े अदब से इस शहर के क़रीब आना चाहिए. इस शहर में हो तो इस शहर को जान लो. अपने घर में भी सराय की तरह रहे तो क्या रहे.

(हिमांशु वाजपेयी के फेसबुक वॉल से, साभार.)

Ateeq Khan

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