रमजान में इबादत में खोई बुजुर्ग शख्सियत। 85 साल की उम्र। उन्हें पलकें समेटकर कुरआन पढ़ते देखा जाता है या फिर लाेगों से गुजरे वक्त की बातों को बताते हुए। मस्जिद में ही सुकून मिलता है उन्हें, ज्यादातर वक्त वहीं गुजरता है, जरूरी कामों के लिए परिवार को समय देने के अलावा। (Old Muezzin Gaza Strip)
यह शख्सियत हैं फिलीस्तीनी अबू हुसम हनीयेह। गाजा शहर की ओमारी मस्जिद के मुअज्जिन। उस मस्जिद के, जो यरूशलम में अल-अक्सा मस्जिद के बाद फिलिस्तीन की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद है।
इजरायल की कब्जेदारी के चलते इस इलाके में युद्ध के हालात हमेशा ही बने रहते हैं, बम-गोले, रॉकेट, गोलीबारी आम है। लेकिन इबादत की पुकार कभी थमी नहीं। इस पुकार का ही नाम है हनीयेह, जिससे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक पहचानते हैं, क्योंकि बरसों से यही आवाज मस्जिदों की ओर खींचती आई है।
85 वर्षीय हनीयेह ने एक वालंटियर के तौर पर अज़ान देने का सफर शुरू किया था, लेकिन यहां के वक्फ व धार्मिक मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से वह गाजापट्टी के सबसे पुराने मुअज्जिन हैं।
वह कहते हैं, जब मैंने मुअज़्ज़िन के तौर पर शुरुआत की थी, तब उम्मीद नहीं थी कि मेरी जिंदगी इतनी लंबी हो सकती है और मेरा नाम इस महान प्राचीन मस्जिद से जुड़ जाएगा। (Old Muezzin Gaza Strip)
वह याद करते हैं, कई दशक पहले, पहली बार पूर्व अधिकृत मुअज्जिन अबू अल-सईद से मंजूरी लेकर ओमारी मस्जिद में माइक्रोफोन लिया था और अजान दी थी।
“यह एक अद्भुत अनुभव था जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा, अबू अल-सईद के इंतकाल के बाद मुझे अधिकृत मुअज्जिन बनने का मौका मिला।”
हनीयेह 1994 में फिलीस्तीनी प्राधिकरण की स्थापना तक वालंटियर बने रहे। फिर वक्फ मंत्रालय में मुअज्जिन बतौर रोजाना पांच वक्त की नमाज से पहले अजान के लिए 155 डॉलर प्रति महीने मानदेय मिलने लगा।
हनीयेह कहते हैं, “मैं इस जिंदगी के एवज में इनाम की तलाश में नहीं रहा, क्योंकि मुअज्जिन का इनाम तो अल्लाह के पास है, जो जिंदगी देता है। . . हम मुअज्जिन हैं, धरती पर अल्लाह के हुक्म से आवाज देने वाले, हम लोगों को इबादत करने और इस जिंदगी के सुखों को छोड़ने के लिए कहते हैं।”
मुअज्जिन हनीयेह शरणार्थी परिवार से आते हैं, जिन्हें 1948 में नकबा के दौरान जाफ़ा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। नकबा के बाद वह नहीं लौटे और उनके परिवार ने गाजा शहर में पनाह ली। फिर हनीयेह ने बढ़ई का काम किया, शादीशुदा हुए और उनके तीन बेटे और तीन बेटियां हुए।
बुजुर्ग मुअज्जिन हनीयेह एक हसरत बाकी है, कहते हैं, “मैं जाफ़ा लौटना चाहता हूं, और अल-अक्सा मस्जिद में अज़ान देना चाहता हूं।”
“मुझे उन दिनों का सब कुछ याद है जब मैं जाफ़ा में था, वह घर जिसमें हम रहते थे, मेरे पिता का ट्रेन से मिस्र का सफर और वहां से हज करने को सऊदी अरब, इफ्तार तोप, कई दोस्त जो साथ रहते थे, जिनके साथ खूब मस्ती की और गलियों से लेकर समुद्र तट पर साथ-साथ खेले।”
कई दशकों से ओमारी मस्जिद से हनीयेह के जुड़ाव ने उन्हें मस्जिद के इतिहास का विशेषज्ञ बना दिया है। यह ऐतिहासिक अल-अक्सा मस्जिद के बाद फिलिस्तीन में दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद है और आकार में अल-अक्सा और अहमद पाशा अल-जज्जर मस्जिद के बाद तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है। (Old Muezzin Gaza Strip)
ओमारी मस्जिद का क्षेत्रफल 4100 वर्ग मीटर है। इस जगह एक मूर्तिपूजक मंदिर के रूप में बनी पहली इमारत लगभग 3700 साल पुरानी है। यह स्थान तब तक वजूद में रहा, जब तक रोमनों ने 407 ईस्वी में लेवेंट के कब्जे के बाद इसके खंडहरों पर “पोर्फिरियोस चर्च” की स्थापना नहीं की।
चर्च 634 ईस्वी में गाजा पर इस्लामी विजय तक अस्तित्व में रहा। उसके बाद ज्यादातर गाज़ान ने इस्लाम कबूल लिया, कुछ ईसाई बने रहे। उसके बाद निवासियों के बीच साइट के बड़े क्षेत्र में मस्जिद बनाने और एक छोटे से क्षेत्र में ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए चर्च बनाने पर सहमति बनी, जो आज भी मौजूद है और सेंट पोर्फिरियोस ऑर्थोडॉक्स चर्च के नाम से ही जाना जाता है। (Old Muezzin Gaza Strip)
ओमारी मस्जिद में लगभग 5000 लोग एक वक्त में नमाज अदा कर सकते हैं। रमजान में यह तादात चरम पर पहुंच जाती है, खासतौर पर रमजान के आखिरी 10 रातों के दौरान, जिसमें एतिकाफ की रस्म को लोग मस्जिद में ठहरकर ही इबादत करते हैं।
Source: Arabian Media