राष्ट्रपति चुनने के लिए श्रीलंका में मतदान शुरू, दुलस अल्हाप्परुमा का पलड़ा भारी, रानिल विक्रमसिंघे हो सकते हैं आउट

श्रीलंका में 44 साल बाद सीक्रेट वोटिंग हो रही है|
रिपोर्ट्स की माने तो राष्ट्रपति के साथ साथ प्रधानमंत्री की भी घोषणा हो सकती है।माना जा रहा है दुलस अल्हाप्परुमा राष्ट्रपति और सजिथ प्रेमदासा प्रधानमंत्री चुने जा सकते हैं।
1978 के बाद पहली बार देश में जनादेश के से नहीं, बल्कि राष्ट्रपति का चुनाव सांसदों के सीक्रेट वोट के माध्यम से हुआ। इसके बाद स्पीकर नए प्रेसिडेंट की घोषणा करेंगे।
सभी समीकरणों को ध्यान से समझे तो श्रीलंकाई नेता एक बार फिर वही ‘मैच फिक्सिंग’ करने जा रहे हैं, जिसके चलते देश इस बदतरीन दौर तक पहुंचा।मंगलवार तक राष्ट्रपति की रेस में चार मुख्य नाम थे। रानिल विक्रमसिंघे, दुलस अल्हाप्परुमा, अनुरा कुमारा और सजिथ प्रेमदासा। इनमें से भी दो नाम सबसे ऊपर थे। दुलस अल्हाप्परूमा और सजिथ प्रेमदासा लेकिन साजिथ ने अपना नाम वापस ले लिया और वो प्रेसिडेंट पद की रेस से बाहर हो गए।यहीं पर सेटिंग देखी जा सकती है।

श्रीलंका मिरर की रिपोर्ट बताती है कि सजिथ ने नाम वापस इस शर्त पर लिया कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। इसके लिए दुलस की पार्टी पूरा सपोर्ट करेगी। रानिल विक्रमसिंघे सबसे काबिल होते हुए भी इस सियासी खेल में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। अनुरा कुमारा के पास जरूरी समर्थन नजर नहीं आता। आखिरी वक्त पर कोई चमत्कार हो जाए तो अलग बात है।

मजे की बात यह है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री चुने जाने के इस खेल में जनता से कुछ छिपाया भी नहीं जा रहा। दुलस अभी अपोजिशन लीडर हैं। उनकी पार्टी SJB के जनरल सेक्रेटरी रंजिथ बंदारा ने मंगलवार को साफ कहा कि अगर दुलस प्रेसिडेंट बनते हैं तो सजिथ को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा।
इतना ही नहीं, नई सरकार की तस्वीर भी साफ होती नजर आ रही है। जैसे रंजिथ ने बिना कुछ छिपाए ये भी कहा कि अगर दुलस राष्ट्रपति और सजिथ प्रधानमंत्री बनते हैं तो सरकार में सभी सहयोगी पार्टियों को जगह मिलेगी।
दूसरे शब्दों में कहें तो सत्ता की मलाई फिर वही नेता खाएंगे, जो किसी न किसी वक्त राजपक्षे परिवार के करीबी रहे या उनका खुला समर्थन करते रहे। इससे भी बड़ा खतरा ये है कि ये नेता राजपक्षे परिवार के खिलाफ किसी तरह का एक्शन नहीं होने देंगे। मामला ठंडे बस्ते में जाने का खतरा है।2 जुलाई को जापान की तरफ से एक बयान जारी किया गया था। इसको बहुत गौर से देखने की जरूरत है। जापान सरकार ने श्रीलंका को ‘कैश रिलीफ’ देने से इनकार कर दिया था। इस कदम के मायने समझने की जरूरत है।
इसकी वजह वहां के करप्ट नेता और करप्ट सिस्टम है। इन देशों को लगता है कि कैश रिलीफ का फायदा अवाम को नहीं मिलेगा।
IMF और वर्ल्ड बैंक को आगे किया जा रहा है। यही फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन श्रीलंका को सख्त शर्तों पर बेलआउट पैकेज देंगे। इनकी लीगल बाउंडेशन होगी और श्रीलंका की किसी भी सरकार को यह शर्तें माननी होंगी।श्रीलंका में बहुत बड़ा तबका मानता है कि मुल्क के दिवालिया होने के पीछे अगर राजपक्षे परिवार है तो इस फैमिली के पीछे भी चीन ही खड़ा था। करीब 30 साल तक राजपक्षे फैमिली और चीन के सीक्रेट रिलेशन रहे।
जब राजपक्षे परिवार के के तौर पर देखा जा रहा था। अब चीन बिल्कुल चुप है।
अमेरिका, जापान और भारत के साथ उनका चौथा क्वॉड साथी ऑस्ट्रेलिया। ये चारों देश अब चीन को श्रीलंका में पैर पसारने का कोई मौका नहीं देना चाहते। लिहाजा, कोशिश ये हो रही है कि मदद का वो तरीका अपनाया जाए, जिसका फायदा श्रीलंकाई नेताओं के बजाए सीधे जनता को मिले।

Abhinav Rastogi

पत्रकारिता में 2013 से हूं. दैनिक जागरण में बतौर उप संपादक सेवा दे चुका हूं. कंटेंट क्रिएट करने से लेकर डिजिटल की विभिन्न विधाओं में पारंगत हूं.

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