द लीडर टीम, देहरादून : क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) अभी तो अपने शैशवकाल में है. यहां से निकलने वाले क्रिकेटर जब भी नाम कमाएं लेकिन सीएयू के ओहदेदारों ने जरूर इसका नाम सुर्खियों में ला दिया है. जिले से राष्ट्रीय स्तर तक के क्रिकेट से जुड़े संघों में सियासत तो होती ही रहती है, यहां सियासी दलों से जुड़े लोग भी गैरसियासी बन कर अपनी कुर्सी बड़ी जोर से पकड़े रहते हैं, लेकिन उत्तराखंड में जो हो रहा है, उसे मौजूदा दौर की सियासत ने अपने खेल के लिए पकड़ लिया है.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI)में कांग्रेसी राजीव शुक्ला अरसे से हैं, अब भी उपाध्यक्ष हैं . जाहिर है अनुराग ठाकुर और जय शाह का यहां होना एक सियासी खेल का हिस्सा है, लेकिन इससे बड़े लोग असहज नहीं हैं.
उत्तराखंड में भी वैसा ही चल रहा था लेकिन वसीम जाफर को टारगेट किए जाने और उनके इस्तीफे के बाद राहुल गांधी के एक ट्वीट ने खेल को नया रंग दे दिया है.
सूत्र बताते हैं कि जब बात प्रधानमंत्री तक पहुंची तो इस मामले से मुंह फेरे बैठे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी मोर्चे पर आना पड़ा. रविवार को उन्होंने एसोसिएशन के कुछ ओहदेदारों को बुला कर चर्चा की.
बता रहे हैं कि अब राज्य सरकार अपने दायरे में इस प्रकरण की जांच करने जा रही है. और अगर ऐसा होता है, तो ये खेल कोई नया रूप ले सकता है. संभव है कि इससे दिल्ली वाले भी प्रभावित हों.
वसीम जाफर पर सांप्रदायिक दाग लगाकर उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन को आखिर क्या हासिल हुआ
सीएयू के उपाध्यक्ष संजय रावत, कोषाध्यक्ष पृथ्वी सिंह, संयुक्त सचिव अवनीश वर्मा, और सदस्य रोहित चौहान को बुलाकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने उनसे रिपोर्ट ली.
पूर्व हेड कोच पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वाले सचिव माहिम वर्मा बैठक में नहीं थे. सीएम अब तक शायद इसलिए भी चुप थे कि उनकी अपनी संस्था यूनाइटेड क्रिकेट एसोसिएशन का भी सीएयू को समर्थन है.
चयनकर्ता, मनोज मुद्गल और अकरम सैफी के इस्तीफे पर भी बवाल नहीं हुआ था. इनका भी वही आरोप है कि एसोसिशेन के पदाधिकारी चयन में धांधली के लिए दबाव बनाते हैं.
वसीम जाफर का भी यही मुद्दा था और अब ये लगभग साफ हो चला है कि उनकी आपत्तियों की वजह से उन्हें सांप्रदायिक होने का इल्जाम देकर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया.
अगर नमाज पढ़ाने के लिए मौलवी बुलाना सांप्रदायिक कृत्य है तो पिच पर नारियल फोड़ना भी तो ऐसा ही काम माना जा सकता है. ये बेवजह का मुद्दा बनाया गया.
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खास बात ये है कि एसोसिशेन के ये बड़े लोग कांग्रेस नेता और बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला के करीबी हैं. सीएयू के अध्यक्ष जोत सिंह गुनसोला भी कांग्रेस से हैं और पक्षपात के खेल की खिचड़ी कुछ तरह है कि पदाधिकारियों की मांग पर उन्होंने भी इस मामले में जांच कराना उचित नहीं समझा.
इस खेल के पीछे माहिम वर्मा के पिता पीसी वर्मा भी हैं जो राजीव शुक्ता के करीबी हैं. अब सवाल उठ रहा है कि मुख्यमंत्री किन मुद्दों पर जांच कराने जा रहे हैं. अगर पक्षपात जांच का विषय है, तब तो नीचे से ऊपर कई लोगों पर सवाल उठेंगे.
सवाल तो यह भी उठेगा कि अगर कुछ गलत हो रहा था तो अखबारीबाजी कर माहौल बिगाड़ने की बजाए, जिम्मेदार लोगों ने तब एक्शन क्यों नहीं लिया? अगर नमाज को ही क्यों मुद्दा बनाया गया?