द लीडर : उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी अब जितेंद्र नारायण हो गए हैं. सोमवार को गाजियाबाद के डासना मंदिर पहुंचकर रिजवी ने महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती की मौजूदगी में सनातन धर्म अपना लिया. वसीम रिजवी ने पिछले करीब 3 साल से जिस तरीके से इस्लाम के खिलाफ आतंरिक युद्ध छेड़ रखा था. आखिर उसकी वजह क्या है? उन्हीं पहलुओं पर आज हम बात करेंगे. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan)
इसी साल मार्च में वसीम रिजवी ने कुरान की 26 आयतों को सुप्रीमकोर्ट में चैलेंज किया था. इस तर्क के साथ कि ये आयतें कट्टरपंथ को बढ़ावा देती हैं. इससे पहले 2018 से कहते आ रहे हैं कि मदरसों में आतंकवाद की शिक्षा दी जाती है. इन्हें बंद किया जाए. इसके लिए उन्होंने पीएम मोदी को भी पत्र लिखा. और हाल ही में पैगंबर-ए-इस्लाम के नाम पर एक किताब लिखकर, उनके किरदार पर तमाम लालछन जड़े हैं.
इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ खड़े-वसीम रिजवी के बयानों को देखकर ऐसा लग सकता है कि, उन्हें कट्टरपंथ से तकलीफ है. और वो प्रेम-शांति के हिमायती हैं. जैसा कि अक्सर वो जाहिर भी करते रहे हैं. लेकिन इस अरसे में वसीम रिजवी खुद कब कट्टरपंथी हो गए. इस हकीकत को कभी जान नहीं पाए. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan)
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कट्टरपंथी कैसे बन गए. इसे उनके धर्म परिवर्तन और किताब के विमोचन की, इन दो घटनाओं से समझ सकते हैं. धर्म परिवर्तन और किताब का विमोचन, दोनों डासना मंदिर में किए हैं. इसके लिए महंत नति नरसिंहानंद सरवस्वती को चुना, जो खुद मुसलमानों से नफरत को लेकर विवादों में हैं.
या यूं कहें कि मुसलमानों से नफरत के प्रयाय बन चुके हैं. नरसिंहानंद के इस्लाम और मुसलमानों को लेकर पूर्व में दिए गए बयान-सब पब्लिक डोमेन में है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि रिजवी जिस धर्म पर कट्टरता का लेवल चस्पा कर रहे थे. ऐसा करते-करते वो खुद कट्टरता विचार के साथ जा खड़े हुए हैं. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan)
रिजवी लखनऊ के पुराना शहर, कश्मीरी मुहल्ले में एक रेलवे कर्मचारी के घर पैदा हुए. राजनीतिक सफर कोई 20 साल का है. साल 2000 में पहली बार कश्मीरी मुहल्ला से सभासद चुने गए. 2008 में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष बने. पहले, समाजवादी पार्टी में थे. 2012 में शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के खिलाफ गलतबयानी के चलते सपा ने 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था.
लेकिन फिर सपा के ही कुछ नेताओं के रहमो-करम पर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष बन गए. 2017 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता पर भाजपा काबिज हुई. बस, यहीं से वसीम के तेवर बदलने शुरू हुए. और सत्तापक्ष का संरक्षण पाने की ललक में वो इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ लगातार आक्रमक होते चले गए.
कभी मुसलमानों को बढ़ती आबादी का जिम्मेवार ठहराते, तो कभी मदरसों को आतंक का अड्डा बताते. विवादित बयानबाजी और आरोप का अंतहीन सफर उन्हें इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म कूबूल करने की मंजिल तक ले गया. हालांकि जितेंद्र नारायण बनने के बाद भी इस बात की गुंजाइश कम ही है कि इस्लाम के खिलाफ उनकी जुबान से जहर निकलना बंद होगा. (Waseem Rizvi Jitendra Narayan)
दिलचस्प बात ये है कि पिछले महीने ही यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का चुनाव हुआ था. और 15 सालों से बोर्ड पर कायम रिजवी राज का अंत हो गया. मौलाना कल्बे जव्वाद के खेमे से ताल्लुक रखने वाले अली जैद बोर्ड के नए अध्यक्ष चुने गए हैं. इस तरह रिजवी की चौथी बार बोर्ड का अध्यक्ष बनने की हसरत कभी पूरी नहीं हो सकी.