‘निर्वासन में तिब्बती संसद’ ने कहा- तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए मिल रहे समर्थन से भयभीत है चीन

द लीडर। एक तरफ कोरोना से जहां देश-दुनिया में लोग भय के माहौल में जीने को मजबूर है तो वहीं चीन इस समय बौखलाया हुआ तो है ही साथ ही भयभीत भी है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि निर्वासन में तिब्बती संसद ने ये कहा है। उनका कहना है कि, चीन तिब्बत की स्वतंत्रता के समर्थन से भयभीत है। “निर्वासित तिब्बती संसद” ने उन रिपोर्टों के जवाब में कहा है कि, भारत में चीन के दूतावास ने उन सांसदों को लिखा था जिन्होंने 22 दिसंबर की बैठक में भाग लिया था। तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच।

चीन के साथ तिब्बत के भविष्य पर बातचीत का स्वागत

एक बयान में, संगठन ने कहा कि, वह चीन के साथ तिब्बत के भविष्य पर बातचीत का “खुले तौर पर स्वागत” करता है। शुक्रवार को जारी बयान में ये कहा गया है कि, भारतीय संसद के माननीय सदस्यों को पत्र भेजने से यह स्पष्ट हो जाता है कि, चीन दुनिया भर में तिब्बत आंदोलन के बढ़ते समर्थन से भयभीत है। स्वतंत्र देशों के नेताओं के पास तिब्बत के न्यायसंगत मुद्दे का समर्थन करने के अपने सभी अधिकार और जिम्मेदारियां हैं और हम चीन के इस कदम की कड़ी निंदा करते हैं।


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2011 के बाद सक्रिय नहीं था एपीआईपीएफटी

ऑल-पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत (APIPFT) का पुनर्गठन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रीमियरशिप के दौरान किया गया था। वहीं प्रख्यात वकील और पूर्व मंत्री एम.सी. छागला 1970 के दशक के दौरान समूह के सदस्यों में से एक थे। तिब्बती सूत्रों के अनुसार, एपीआईपीएफटी 2011 के बाद सक्रिय नहीं था और दिसंबर 2014 में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के नेतृत्व में इसे पुनर्जीवित किया गया था। एपीआईपीएफटी की कोर कमेटी में 33 सांसद शामिल थे।

आगे का रास्ता तय करने के लिए 22 दिसंबर को बुलाई थी बैठक

2019 में सक्रिय राजनीति छोड़ने वाले श्री कुमार की सेवानिवृत्ति के बाद आगे का रास्ता तय करने के लिए 22 दिसंबर की बैठक बुलाई गई थी और फोरम के संयोजक का पद खाली हो गया था। रात्रि भोज के दौरान बीजू जनता दल के सुजीत कुमार को सर्वसम्मति से एपीआईपीएफटी का संयोजक चुना गया। बैठक में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और राजीव चंद्रशेखर, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री और भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सहित कई अन्य लोग शामिल हुए। वहीं “निर्वासित तिब्बती संसद” ने कहा कि, यह “दुनिया भर में तिब्बत और तिब्बतियों का एकमात्र वैध प्रतिनिधि है” और घोषणा की थी कि, यह तिब्बत के भविष्य के बारे में “चीनी सरकार के साथ एक समान और बिना शर्त बातचीत का स्वागत करता है”।

भोज कार्यक्रम में भारतीय नेताओं के पहुंचने से तिलमिलाया चीन

हाल ही में तिब्बती निर्वासित संसद ने एक भोज का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में कई भारतीय नेता भी पहुंचे। चीन इस बात से तिलमिला गया है। दिल्ली स्थित चीनी एंबेसी ने भारतीय नेताओं के इस कार्यक्रम में शामिल होने पर चिंता जताई है और कहा है कि, तिब्बत की आजादी चाहने वालों को किसी तरह की कोई मदद न की जाए। चीनी डिप्लोमैट ने इन नेताओं को एक चिट्ठी भी भेजी है और कहा है कि इस तरह के कार्यक्रम से दूर रहा जाए। चीनी डिप्लोमैट द्वारा भेजे गए इस चिट्ठी को गैर-राजनयिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है।


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चिट्ठी में क्या था?

पॉलिटिकल काउंसलर झोउ योंगशेंग ने लिखा है कि, आपने तथाकथित तिब्बत के लिए अखिल भारतीय संसदीय मंच द्वारा एक कार्यक्रम में भाग लिया है और तथाकथित निर्वासन में तिब्बती संसद के सदस्यों के साथ बातचीत की है। मैं उस पर अपनी चिंता व्यक्त करना चाहता हूं। उन्होंने कहा है कि, जैसा कि सभी जानते हैं कि निर्वासन में तिब्बती सरकार एक बाहरी अलगाववादी राजनीतिक समूह है और यह चीनी संविधान और कानूनों का उल्लंघन करने वाला एक अवैध संगठन है। दुनिया के किसी देश ने इसे मान्यता नहीं दी है। तिब्बत ऐतिहासिक काल से चीन का अविभाज्य अंग रहा है। ऐसे में हम तिब्बत से संबंधित और चीन के आंतरिक मामले में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देते हैं।

चिट्ठी में कहा गया है कि, भारत सरकार तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को चीन का हिस्सा मानती है और तिब्बतियों को चीन विरोधी राजनीतिक गतिविधियों को करने की इजाजत नहीं देता। चिट्ठी में लिखा है कि, आप एक सीनियर नेता हैं जो चीन-भारत संबंधों को अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे में आप इस मसले की संवेदनशीलता को समझ सकते हैं और तिब्बत की आजादी चाहने वालों को समर्थन देने से परहेज कर सकते हैं।

तिब्बत के लिए भारत की निरंतर एकजुटता से चीन असहज 

वहीं निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रवक्ता तेनजि‍न लेक्षय ने चीन की खिंचाई करते हुए कहा कि, तिब्बत के लिए भारत की निरंतर एकजुटता चीन को असहज करती रही है। तिब्बत के लिए आल पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम की शुरुआत 1970 में एमसी छागला ने की थी। कई महान भारतीय नेताओं ने अतीत में तिब्बत का समर्थन किया था। मौजूदा वक्‍त में भी अधिकांश भारतीय नेता इसका समर्थन करते हैं। यदि चीन वाकई तिब्बत और तिब्बती लोगों की भलाई के बारे में गंभीर हैं तो उसे बातचीत के माध्यम से इस मसले को सुलझाने के लिए काम करना चाहिए।


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indra yadav

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