द लीडर : उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में गुरुवार (जुमेरात) को ईद-उल-फित्र मनाई गई. इसमें गाजीपुर, बनारस, मऊ, आजमगढ़ आदि जिले शामिल हैं. हालांकि देश के दूसरे राज्य-जिलों में शुक्रवार (जुमा) को ईद होगी. बुधवार को आजमगढ़ के घोसी से चांद की शहादत सामने आई थी. लेकिन दरगाह आला हजरत ने इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि बरेली के आस-पास या देश के किसी अन्य भाग में चांद नहीं देखा गया. वहीं, देवबंद समेत अन्य मसलकों ने भी जुमा को ही ईद मनाए जाने का का ऐलान किया था.
दरगाह के इनकार के बावजूद पूर्वांचल के इन हिस्सों में चांद देखे जाने को सामने रखकर ईद मनाई गई. दरगाह आला हजरत, जोकि सुन्नी-बरेली मुसलमानों का मरकज (केंद्र) है-इसी मसलक से जुड़े मुसलमानों ने घोसी में चांद देखने की सूचना दरगाह भेजी थी. जिस पर देर रात तक दरगाह की रुअते हिलाल कमेटी के बीच चर्चा चलती रही. आखिर में तय हुआ कि जब देश में घोसी के सिवा कहीं भी चांद नहीं देखा गया है. तब जुमा को ईद मनाई जाए. रात करीब 10 बजे दरगाह से ये लिखित संदेश भी जारी हुआ था.
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उलमा के मुताबिक ईद के चांद की शहादत जरूरी होती है. मसलन, जिस शख्स ने चांद देखा है, उसे उलमा के सामने इसकी गवाही देनी होती है. दरगाह की रुअते हिलाल कमेटी हर साल इसके लिए मोबाइल नंबर जारी करती है. इस बार भी नंबर जारी किए गए थे. घोसी, जोकि बरेली से करीब 250-300 किलोमीटर दूर है. वहां से चांद की शहादत देने कोई बरेली आता-तब तक सुबह हो जाती. ये शहादत काजी-ए-हिंदुस्तान मुफ्ती असजद मियां के सामने देनी होती. वहीं, अगर दरगाह से कोई उलमा घोसी जाते, उसके लिए भी वक्त कम था.
ये कोई पहला मौका नहीं है, जब अलग-अलग दिनों में ईद मनाई गई हो. एक बार रामपुर के कस्बा टांडा में इसी तरह का मामला सामने आया था. जब पूरे देश में चांद नहीं दिखा था, तब टांडा से चांद देखे जाने का दावा किया गया था. और इसी आधार पर टांडा के कुछ क्षेत्रों में ईद मनाई गई. जबकि बरेली समेत देश के अन्य जगहों पर इसके दूसरे दिन ईद की नमाज अदा की गई थी.
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मुसलमानों के सभी त्योहार चांद के आधार पर होते हैं. चांद के अलावा कोई तरीका नहीं है, जिससे एक तय तारीख पर त्योहार मनाया जाए. चांद को ही सबसे ज्यादा मान्यता है, जोकि तार्किक भी माना जाता है. खाड़ी देशों में भारत की अपेक्षा हर साल एक दिन पहले ईद मनाई जाती है.