द लीडर। अब अफगानिस्तान में तालिबान राज कर रहा है। बता दें कि, अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद तालिबान के अभी दो महीने भी नहीं हुए हैं कि, उसने अपना रंग दिखाना और भारत के खिलाफ अपने नापाक मंसूबों को जाहिर करना शुरू कर दिया है। तालिबान सरकार में शामिल और हक्कानी नेटवर्क का सरगना अनस हक्कानी मंगलवार को भारत पर 17 बार हमला करने वाले महमूद गजनवी की कब्र पर पहुंचा और फिर उसने भारत विरोधी बातें कहीं। पाकिस्तान के इस पिट्ठू ने अपने ट्वीट में सोमनाथ मंदिर गिराए जाने और मूर्तियां तोड़े जाने का फक्र के साथ जिक्र किया।
सोमनाथ मंदिर तोड़ने का जिक्र किया
अपने इस ट्वीट में अनस ने कहा कि, हम 10वीं सदी के मुस्लिम योद्धा एवं मुजाहिद सुल्ताम महमूद गजनवी की कब्र पर गए। गजनवी ने गजनी से क्षेत्र में एक मजबूत मुस्लिम शासन की नीव रखी और सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ा। इसके पहले एक इंटरव्यू में हक्कानी भारत के खिलाफ अपने इरादों को जाहिर कर चुका है। अनस ने हाल के अपने इस इंटरव्यू में कहा कि, अफगानिस्तान, भारत का सच्चा दोस्त नहीं है। इस इंटरव्यू में उसने भारत सरकार और भारतीय मीडिया की आलोचना की।
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‘भारत को अपनी अफगान नीति बदलने की जरूरत’
उसने कहा कि, भारत को अफगानिस्तान को लेकर अपनी नीति में बदलाव करने की जरूरत है। साथ ही उसने तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में किसी तरह की अनबन एवं गुटबाजी होने से इंकार किया। अनस ने कहा कि तालिबान नेतृत्व में कोई मतभेद नहीं है। उसने आरोप लगाया कि अशरफ गनी सरकार से जुड़े लोग तालिबान नेतृत्व को लेकर इस तरह की बातें फैला रहे हैं।
Today, we visited the shrine of Sultan Mahmud Ghaznavi, a renowned Muslim warrior & Mujahid of the 10th century. Ghaznavi (May the mercy of Allah be upon him) established a strong Muslim rule in the region from Ghazni & smashed the idol of Somnath. pic.twitter.com/Ja92gYjX5j
— Anas Haqqani(انس حقاني) (@AnasHaqqani313) October 5, 2021
‘तालिबान की गलत छवि पेश करता है भारतीय मीडिया’
भारत के साथ अफगानिस्तान के संबंधों के बारे में उसने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नई दिल्ली का रुख पूर्वाग्रह से युक्त है। पाकिस्तान के इस पिट्ठू ने आरोप लगाया कि भारत ने पिछले 20 वर्षों में भारत ने हालात बिगाड़ने में मदद की है। उसने भारतीय मीडिया पर तालिबान की गलत छवि पेश करने का आरोप लगाया। अनस ने कहा कि अफगानिस्तान के प्रति भारत को अपनी नीति में बदलाव करने की जरूरत है। भारत ने अभी तक शांति के लिए कुछ नहीं किया है।
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तालिबान सरकार में गुटबाजी की खबर
इस बीच, अफगानिस्तान में तालिबान नेतृत्व में गुटबाजी एवं अनबन होने की खबरें भी आ रही हैं। रिपोर्टों की मानें तो सरकार में अहम पदों को लेकर हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच मतभेद पैदा होने लगे हैं। बताया जा रहा है कि, तालिबान के टॉप लीडरशिप में अनबन की इन खबरों के बीच पाकिस्तान और कतर ने यहां अपने ‘दूत’ भेजे हैं। बताया जा रहा है कि सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालयों और शीर्ष पदों को हक्कानी नेटवर्क और कंधार के तालिबान समूह को दिए जाने पर गुटबाजी तेज हो गई है।
क्या है हक्कानी नेटवर्क?
हक्कानी नेटवर्क की शुरुआत अफगानिस्तान के जादरान पश्तून समुदाय से आने वाले जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी। हक्कानी की पहचान पहली बार 1980 के दशक में मुजाहिद्दीनों के सोवियत सेना के खिलाफ लड़े जा रहे युद्ध के दौरान हुई थी। जलालुद्दीन तब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के संपर्क में आया था। यहीं से हक्कानी नेटवर्क की शुरुआत हुई। बताया जाता है कि 1979 में सोवियत सेना के जाने के बाद इस संगठन ने अफगानिस्तान में गृहयुद्ध भी लड़ा। हक्कानी नेटवर्क हमेशा से तालिबान के संपर्क में नहीं रहा, लेकिन कहा जाता है कि, 1995 वह दौर था, जब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने पहली बार अफगानिस्तान में दो आतंकी संगठनों को साथ लाने में भूमिका निभाई। इसी के बाद से हक्कानी नेटवर्क और तालिबान साथ बने हुए हैं। इस बीच, यह समझना अहम है कि आखिर पाकिस्तान ने एक पड़ोसी देश में दो आतंकी संगठनों को क्यों मिलाया और हक्कानी नेटवर्क के उससे क्या संबंध हैं?
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हक्कानी नेटवर्क का सीधा संबंध पाकिस्तान से है
हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक जलालुद्दीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालीम ली। हक्कानी शब्द भी पाकिस्तान की दारुल-उलूम हक्कानिया मदरसा से आया, जहां उसने पढ़ाई की। अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ जंग हो या गृहयुद्ध, हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान से लगातार मदद मिलती रही। कुछ खाड़ी देश भी इस क्रूर संगठन की फंडिंग में शामिल रहे। इसका बेस पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान स्थित मिरानशाह शहर में है। बताया जाता है कि सोवियत सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध के दौरान ही हक्कानी ने अल-कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन के साथ करीबी रिश्ते बनाने में कामयाबी हासिल की।
अमेरिकी हमले के बाद पाकिस्तान ने दी मदद
अफगानिस्तान में 1995 से लेकर 2001 तक तालिबान की सत्ता में शामिल रहे हक्कानी नेटवर्क को अमेरिकी सेना के आने के बाद भागना पड़ा। उस दौरान इस संगठन के आतंकियों को पाकिस्तान में शरण मिली। ज्यादातर आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छिप गए। हालांकि, बाद में पाकिस्तान की मदद से ये आतंकी दोबारा अफगानिस्तान में दाखिल हुए और अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना पर हमले करने लगे। हक्कानी नेटवर्क पर इस दौरान कई बार अल-कायदा की मदद करने और पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान स्थित अपने बेस को सौंपने के आरोप लगे।
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अफगान सरकार पर हमलों का मास्टरमाइंड रहा हक्कानी नेटवर्क
अफगानिस्तान में सरकार के खिलाफ हमलों में एक समय तालिबान से ज्यादा हक्कानी नेटवर्क का नाम सामने आने लगा। ये वो समय था, जब भारत ने भी अफगानिस्तान की हामिद करजई सरकार से नजदीकी बढ़ाना शुरू की। सरकार के खिलाफ हक्कानी नेटवर्क के ऑपरेशन की कमान जलालुद्दीन हक्कानी के बेटे सिराजुद्दीन ने संभाली, जो कि अपने पिता से भी खतरनाक माना जाता था। इसके बाद 2008 से लेकर 2020 तक अफगानिस्तान में कई बड़े हमलों में हक्कानी नेटवर्क का नाम सामने आया। मौजूदा समय में इस संगठन में 10 हजार से लेकर 15 हजार आतंकी होने का अनुमान है।
कौन से बड़े हमलों में शामिल रहा हक्कानी नेटवर्क?
हक्कानी नेटवर्क का नाम अफगानिस्तान में कई बड़े हमलों में शामिल रहा है। इनमें सैकड़ों की संख्या में अफगान नागरिक, अमेरिका और अन्य देशों की सेनाओं के जवानों और सरकारी अफसरों की मौत हुई। इस संगठन के तीन सबसे बड़े हमलों में एक हमला 27 अप्रैल 2008 में हुआ था, जब हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों ने तालिबान के साथ मिलकर तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई पर ही हमला कर दिया। यह हमला एक हाई-प्रोफाइल मिलिट्री परेड के दौरान हुआ था, जिसमें अमेरिकी राजदूत भी शामिल हुए थे। इस घटना को आत्मघाती हमलावरों के साथ बंदूकधारियों ने अंजाम दिया था। हमले में अफगानिस्तान के एक सांसद समेत तीन लोग मारे गए थे। बताया जाता है कि यह अफगान राजधानी पर इस क्षमता का पहला बड़ा हमला था।
भारत इसके हमले का शिकार बना
अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क के एक और बड़े हमले का शिकार भारत बना था। 7 जुलाई 2008 को हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास को निशाना बनाया। कहने को तो दूतावास की इमारत अफगानिस्तान के सबसे सुरक्षित इलाके में थी, लेकिन आतंकियों ने सुरक्षा में सेंध लगाते हुए कार के जरिए ब्लास्ट किया। इस हमले में छह भारतीयों समेत 58 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे।
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इतना ही नहीं, 2009 में भी इस आतंकी संगठन ने फिर काबुल स्थित भारतीय दूतावास को निशाना बनाया। आत्मघाती हमले में 17 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 63 लोगों की जान गई थी। बताया जाता है कि, भारत ने तब अफगानिस्तान में 5280 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स शुरू करने का वादा किया था। इसी के चलते पाकिस्तान की आईएसआई ने इन दो हमलों में हक्कानी नेटवर्क की पूरी मदद की थी। इसके अलावा 2011 में हक्कानी नेटवर्क के आत्मघाती हमलावरों और बंदूकधारियों ने काबुल के इंटर-कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला कर दिया। इस पूरी घटना में 21 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें नौ हमलावर शामिल थे।
अभी कौन है हक्कानी नेटवर्क का सरगना?
हक्कानी नेटवर्क के सरगना जलालुद्दीन हक्कानी के खराब स्वास्थ्य के बाद उसके बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी ने इस संगठन की कमान संभाली। बताया जाता है कि जलालुद्दीन हक्कानी की 2015 में मौत हो गई थी, लेकिन इसका खंडन करती कई रिपोर्ट्स भी सामने आईं। आखिरकार 2018 में तालिबान ने ट्विटर पर ऐलान किया था कि सिराजुद्दीन की मौत हो गई। हालांकि, उसकी मौत की वजह कभी सामने नहीं आ पाई। मौजूदा समय में हक्कानी नेटवर्क को सिराजुद्दीन संभाल रहा है।
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अटकलें हैं कि, अगर अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनती है, तो सिराज को उपराष्ट्रपति भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा सिराज के छोटा भाई अनस हक्कानी को काबुल की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अनस को 2014 में एक बार पकड़ा जा चुका था। इसके बाद 2016 में उसे कई हत्याओं, अपहरण और अन्य अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में विदेशियों की रिहाई के बदले अनस कैद से बाहर आ गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसके साथ हक्कानी नेटवर्क के छह हजार आतंकियों को काबुल में रखा गया है। अफगानिस्तान में अगली सरकार बनाने के लिए भाई अनस हक्कानी ही अमेरिकी और अफगान अफसरों से मुलाकात कर रहा है।