द लीडर। देश जहां आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना से जंग में भी देश ने एक नया इतिहाज आज रच है है. लेकिन आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे इस देश में आज भी कई ऐसी जिंदगियां हैं जो अंधेरों में रहने को मजबूर हैं। बता दें कि, आज भी कई ऐसे गांव है जहां अंधेरा पसरा हुआ है. आजादी के 75 साल बाद भी राजस्थान के करीब 300 राजस्व गांवों और एक हजार से ज्यादा दाणियों में बिजली नहीं पहुंच पाई है। उर्जा विभाग के अधिकारियों के अनुमान के मुताबिक, करीब 13 लाख लोग आज भी अंधेरे में जी रहे हैं।
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आजादी के 75 साल बाद भी अंधेरे में कई गांव
जब सरकार सत्ता में आई थी तब उन्होंने हर घर को रोशन करने का वादा किया था। लेकिन आज आजादी के कई सालों बाद भी लोग अंधेरा सन्नाटे में जीने को मजबूर हैं। बता दें कि, हर घर तक बिजली पहुंचाने के केंद्र और राज्य सरकार के दावों के विपरीत प्रदेश के आदिवासी बहुल उदयपुर प्रतापगढ़, बांसवाड़ा और डुगरपुर जिलों के साथ ही यूपी एवं मध्य प्रदेश से सटे धोलपुर जिले के भी कई गांवों में आज भी अंधेरा है। यहां तक कि, बंदी के कोचरिया गांव में लोकसभा अध्यक्ष की तमाम कोशिशों के चलते 75 साल बाद बिजली पहुंच सकी है।
कई गांवों का सिर्फ कागजों में हुआ विद्युतिकरण
प्रदेश की राजधानी जयपुर जिले की फागी तहसील की दो दर्जन ढाणियों (मजरे) में अब तक बिजली नहीं पहुंची है, हालांकि खंभे लगे एक साल हो गया। वहीं राज्य के उर्जा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला का दावा है कि, खेतों में बने घरों को छोड़ दें तो शत प्रतिशत विद्युतकरण हो चुका है। उन्होंने कहा कि, ढाणी की कोई परिभाषा नहीं है। सरकार हर घर में बिजली पहुंचाने की कोशिश कर रही है। गांव और घर ही यूनिट है। उधर, सामाजिक संगठनों के अध्ययन और विद्युत निगम के अधिकारियों से अनौपचारिक बातचीत में सामने आया कि, सरकार ने हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा तो किया, लेकिन 10 हजार से अधिक ऐसे गांव और दाणियों की गणना ही नहीं की, जिनकी आबादी 100 से 250 तक है। हालात यह है कि, 300 की आबादी वाले भी कई गांव अभी भी अंधेरे में है। कई गांवों को सरकार ने विद्युतिकृत भी तो घोषित कर दिया, लेकिन आधे से अधिक घरों को कनेक्शन नहीं मिला।
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आज भी बिजली का सपना देख रहे आदिवासी
प्रदेश के आदिवासी बहुल उदयपुर, प्रतापगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों के गांवों में रह रहे आदिवासियों के लिए बिजली आजादी के 75 साल बाद भी एक सपने की तरह है। यहां हालात यह है कि, जिला मुख्यालयों से कुछ दूर चलने के बाद अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। राजस्थान ही नहीं गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासियों के धार्मिक स्थल बेणेश्वर धाम से 30 किलोमीटर दूर चलने पर अंधेरा नजर आता है। बांसवाड़ा खेराडाबरा, खरेरी, डोकर, छाजा, भुकनिआ, मोर, सरनपुर, दलपुरा, टिमटिआ, शेरगढ़, अरथुना, सरेरी, दुक्कारा सहित कई गांवों के आदिवासियों ने आज तक बिजली नहीं देखी है। उदयपुर जिले के नयाखोला, मगराफला, फला, गागलिया, खेराड़ा, कातरा, जामबुआफला, छालीबोकड़ा, अबादी, रेबाड़ी, दाडमीया, पीलक, सेरा, माल, सरवण, जेर फला, अहारी फला, निचली करेल, उपली बस्सी, निचली सिगरी, पाठीया, नया खोला, सोम कुडाफला, बवाई फला, खल, दीवाली घाटी, ईटो का खेत साकरिया सिली पांच बोर बीडाफला छोकरवाडा पापडदा सहित करीब तीन दर्जन गांवों में अंधेरा है।
शिकायत के बावजूद नहीं सुनते नेताजी
प्रतापगढ़ और डूंगरपुर जिलों के आदिवासी बहुल गांवों में भी बिजली नहीं पहुंचने की शिकायत लोग हमेशा राजनेताओं और अफसरों से करते हैं, लेकिन अब तक उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से सटे धोलपुर जिले के पांच गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची है। दौसा जिले में तीन गांव, बारां जिले के सात और चित्तोड़गढ़ के तीन गांवों के लोगों को तक बिजली का इंतजार है। इनके अतिरिक्त अधिकांश जिलों में एक से तीन या चार गांव अंधेरे में है। ढाणियों की संख्या तो काफी अधिक है।
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आज भी हालात जस के तस…
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे इस देश में आज भी कई ऐसी जिंदगियां अंधेरों में रहने को मजबूर हैं। बता दें कि, पिछले दो सप्ताह के दौरान भारत में कोयले को लेकर गहन चर्चा हो रही है। कोयले की कमी की वजह से कई स्थानों पर बिजली संकट भी पैदा हो रहा है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि, कोयला संकट के पीछे की असल वजह पावर प्लांट की माली हालत और ढुलाई से जुड़ी दिक्कतें हैं। वे मानते हैं कि, देश के ऊर्जा क्षेत्र में कोयले की कमी कोई नई बात नहीं है। वहीं दूसरी तरफ पर्यावरणविद् चिंता जताते हैं कि, कोयला संकट का बहाना कर कोयला क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले, पर्यावरण और जंगल की रक्षा करने वाले कानूनों को कमजोर किया जा सकता है। जबकि, कोयला संकट उत्पादन में कमी की वजह से नहीं, बल्कि अन्य वजहों से आया है। लेकिन इन लोगों पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है कि, इन्हें उजाले में रहने को कब मिलेगा। न नेता न अधिकारी और न ही सरकार, इन पीड़ितों की तो कोई सुनता ही नहीं। बहरहाल, सरकार ने सत्ता पर काबिज होने के लिए कई वादे कि, जिससे भोली भाली जनता ने उन पर भरोसा जताया। लेकिन सरकार आज तक जनता के भरोसे पर कभी खरी नहीं उतरी। और यही कारण है कि, आज कई गांव अंधेरे में रहने को मजबूर हो रहे हैं।