तस्लीमा नसरीन का ट्वीट पढ़ा. इंग्लैंड के क्रिकेटर मोइन अली को सिर्फ इसलिये ISIS जॉइन करने को कह रहीं कि उन्होंने शराब का “लोगो” न लगाने के लिए बोर्ड से रिकवेस्ट की. इस पर इंग्लैंड के बोर्ड को दिक्कत नही हुई और न यहां के बोर्ड को, पर नफ़रत से भरी इस लेखिका को ये सहन नहीं हुआ.
मोइन अली, आदिल राशिद, हाशिम अमला को कभी देखिए, कितने सुलझे हुए हैं. दिल पर हाथ रखकर बताइये कि ये तीनों लोग कितने सभ्य और सौम्य हैं. इनके व्यवहार में ही सादगी झलकती है.
कभी हाशिम अमला, मोइन अली को गाली देते, लड़ाई करते देखा है? नीचे तस्वीरों में आप देखिए कि पहले ये लोग बिना मूंछो के थे, पर बाद में इन्होंने मूंछे रख लीं. ताकि आप इन्हें उस चेहरे के साथ तुलना न करें जो न्यूज़ चैनल्स और फिल्मो ने गढ़े हैं.
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डिविलियर्स ने तो अपने इंटरव्यू में कहा कि मैंने अमला जैसा शरीफ़ आदमी नही देखा. हमारी पूरी टीम उनकी इज़्ज़त करती है. आईंन मॉर्गन, मोइन अली के व्यक्तित्व की बहुत बार तारीफ़ कर चुके हैं.
तस्लीमा नसरीन को समझ लेना चाहिए कि अब वो दौर नही रहा कि इस्लामोफोबिया की बात करके आप इज़्ज़त पा जाएंगी. वो वक़्त गया. यूरोप अब इन बातों को समझने लगा है. इसी वजह से जोफ़रा आर्चर, रेयान साइडबॉटम, बेन डकेट, सैम बिलिंग्स जैसे लोगो ने खूब लताड़ा.
तसलीमा नसरीन जैसों को समझना चाहिए कि क्रिकेट ही नहीं दुनिया के हर खेल में मुस्लिम अपने व्यक्तित्व अपनी सादगी की वजह से फेमस हैं. फीफा 2018 वर्ल्ड कप जीतने वाली फ्रांस टीम में 7 खिलाड़ी मुस्लिम थे. जिसमे एक खिलाड़ी की सादगी की मिसाल आज भी दी जाती है.
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इजिप्शियन स्टार, और मेसी रोनाल्डो के स्तर का खिलाड़ी मुहम्मद सलाह के बारे में तो दुनिया जानती है. पवेलियन की तरफ से खाकर फेका गया बर्गर का झूठा टुकड़ा भी सलाह उठाकर खा लेता है. ये लोग अपने किरदार से दुनिया का दिल जीत रहे और नसरीन जैसे लोग अपनी वैचारिक दरिद्रता का फूहड़ प्रदर्शन कर रहे हैं.
आपको याद होगा डीन जोन्स ने लाइव कमेंट्री मे अमला को आतंकवादी कह दिया था. पूरी दुनिया मे फ़ज़ीहत हुई, पर अमला की ज़ुबाँ से एक लफ़्ज़ नही निकला. सब्र देखिए. उदारता देखिए.
वही डीन जोन्स पाकिस्तान सुपर लीग में कराची के कोच बन गए. उसके बाद उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें मुस्लिमों के बारे पता ही नहीं था. यूरोप के पूर्वाग्रहों की वजह से सच जान ही नहीं पाए. उनकी सोच उनका नज़रिया पूरी तरह से बदल गया. उसके बाद जब उनकी डेथ हुई तो कराची टीम ने उन्हें स्पेशल ट्रिब्यूट दिया.
महान बॉक्सर मुहम्मद अली को रोम अलोम्पिक में गोल्ड जीतने के बावजूद रेस्तरां में सिर्फ इसलिए खाने नहीं दिया गया कि उसकी चमड़ी स्याह है. फेंक दिया नदी में मेडल और एक दिन मुस्लिम बन गए. उन्हें अपने नाम कैशियस क्ले से नफरत हो गई, पर उन्हें चिढ़ाने वाले जानबूझकर क्ले कहते थे और वो चीखकर कहते कि वो क्ले नही मुहम्मद अली हैं.
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पर उनके विरोधी यहां तक जो खुद स्याह जिल्द का था ज्यो फ़्रेजियर, चिढ़ाने के लिए क्ले कहता और एक दिन अली ने रिंग में खूब धुलाई की और हर पंच पर बोलते जाते “मुहम्मद अली” मानो फ्रेज़ियर को सिर्फ़ हराना मतलब नही था.
तस्लीमा को सोचना चाहिए कि मोइन अली, आदिल राशिद, अमला लोग सीधे हैं. वो मुहम्मद अली नहीं हैं.
खैर, तसलीमा ने बिल्कुल वैसी ही बात की है, जैसे फेसबुक पर कोई नया-नया सेकुलर बनता है. और जल्दी-जल्दी सर्टिफिकेट बांटने लगता है. पांच सालों में दुनिया बहुत बदल गई है. अब वो प्रोपेगैंडा नहीं चल पाएगा, जो चल जाता था.
(साभार, फाइक अतीक किदवई की फेसबुक.)