खुर्शीद अहमद
-सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी मुसलमानों के हीरो हैं. हर कोई एक सुल्तान के बारे में जानता और पढ़ता है. लेकिन उनकी दो बहनों ने भी इतिहास रचा है. उनके बारे में हम कम ही जानते हैं. उन दोनों में बड़ी लेकिन सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी से छोटी बहन फातिमा खातून के बारे में बात कर रहा हूं. दूसरी बहन और एक फूफी के बारे में फिर कभी. (Fatima Khatoon Syria Darkness)
यूं तो फातिमा खातून एक बड़े सुल्तान की बहन , हमस ( सीरिया ) के गवर्नर की बेगम और नाबिलस के गवर्नर की मां थीं. लेकिन इतना भर इनका सही परिचय नहीं है. इनका व्यक्तित्व और काम खुद, इनकी पहचान हैं. ये वह महिला हैं जिन्हें आज आठ सौ साल बाद भी सीरिया ( शाम ) के लोग इनके नाम से नहीं बल्कि इन्हें सित्तु अल शाम ( ست الشام ) कह कर याद करते हैं. अर्थात मुल्क शाम की सैयदा व मालकिन. इनके भाई, बाप, शौहर और बेटा बहुत बड़े योद्धा थे. उन्होंने देशों और शहरों पर विजय पाई थी.लेकिन फातिमा खातून ने दिलों को जीता था.
फातिमा जिन्हें मशहूर इतिहासकार ज़हबी मालिकाओं की मलिका के नाम से याद करते थे. वह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी से कुछ ही छोटी थीं.दोनों भाई बहन में आपस में बहुत मुहब्बत थी. एक साथ शिक्षा हासिल की. सुल्तान इन्हें बेपनाह चाहते थे. इनकी पैदाइश की तारीख मुझे इतिहास की किताबों में नहीं मिली पर इनका इंतकाल 23 जनवरी सन् 1220 में दमिश्क में हुआ और वहीं इनकी कब्र है. (Fatima Khatoon Syria Darkness)
जब वह बड़ी हुईं तो इनकी शादी उमर बिन लाजीन से हुई. एक बेटे का जन्म हुआ. जिन्हें इतिहास महान योद्धा हुसामुद्दीन के नाम से जानता है. बेटे की पैदाइश के कुछ दिनों बाद इनके पति का इंतकाल हो गया. फिर इनकी दूसरी शादी मोहम्मद बिन शेरकोह से हुई, जो सीरिया के शहर हमस के गवर्नर थे. वह दमिश्क से पति के पास हमस आ गईं. लेकिन 11 साल बाद सन् 1186 में उनका भी इंतकाल हो गया. फिर इन्होने शादी नहीं की. और हमस से दमिश्क आ गईं. दमिश्क में इन्होंने एक मकान खरीदा जो शहर के जनरल हास्पिटल नूरी के ठीक सामने था. (Fatima Khatoon Syria Darkness)
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अपने घर को इन्होंने महिला शिक्षा का केंद्र बना दिया. जहां खुद भी पढ़ाती थीं. वह रोज़ाना अस्पताल जातीं. वहां गरीब मरीजों की मदद करतीं. उनके खाने-पीने गर्म कपड़ों का इंतजाम करतीं. कुछ दिनों में यह इतनी मशहूर हो गईं कि दूसरे अस्पताल के मरीज नूरी अस्पताल में इनकी मदद की उम्मीद में आने लगे. गरीब-बेसहारा लोगों की मदद के लिए अपने घर भी दरवाजे खोल रखे थे.
इन्होंने देखा कि कई वर्षों से युद्ध के कारण अस्पताल में दवाओं की कमी है. सरकार दवा उपलब्ध नहीं करा पा रही है. इसके लिए एक दवा फैक्ट्री खोल दी. जहां काम करने के लिए सिर्फ महिलाओं को नियुक्त किया. और उनके लिए शर्त थी कि उन्होंने कुरान याद कर रखा हो और घुड़सवारी जानती हों. जो घोड़े की सवारी नहीं जानती थीं. उन्हें ट्रेनिंग दी जाती.
लोगों ने पूछा दवा फैक्ट्री में काम करने के लिए घोड़े की सवारी की क्या जरूरत है. तो कहा युद्ध का समय है मैं चाहती हूं कि हम में से हर कोई इतना तैयार रहे कि जरूरत पड़ने पर युद्ध मैदान में जा कर सैनिकों का ईलाज कर सकें.
इतिहास में शायद यह पहली ऐसी दवा फेक्ट्री होगी जिसकी स्थापना व संचालन महिलाओं द्वारा किया गया
शहर के बाहरी इलाके में एक बहुत बड़ा स्कूल खोला.जिसका नाम अल मदरसा अल शामिया था. घर वाले स्कूल को मदरसा अलशामिया अल जव्वानिया ( अंदरूनी ) कहते थे और बाहर वाले को अल कुबरा व बर्रानिया ( बाहरी ) कहते थे. जो आज तक मौजूद है. शिक्षा का काम होता है. अपनी स्थापना के 200 साल तक वो दमिश्क का सबसे बड़ा मदरसा रहा. एक तरह की इस्लामिक यूनिवर्सिटी जहां पढ़ना लोगों के लिए गर्व की बात हुआ करती. अब वह शान नहीं है. लेकिन पढ़ाई अभी होती है. (Fatima Khatoon Syria Darkness)
फातिमा खातून अपने कामों की वजह से काफी मशहूर थीं. जब इनका इंतकाल हुआ तो जनाजे में चार लाख से अधिक लोग इकट्ठा हुए. जो आज के आठ सौ साल पहले अचंभे की बात है. लेकिन आज भी शाम के लोग उन्हें जिस तरह चाहते हैं. उसे देखकर बड़ी बात नहीं लगती. (Fatima Khatoon Syria Darkness)
(लेखक खुर्शीद अहमद इस्लामिक स्टडीज के छात्र रहे हैं. ये लेख उनके ब्लॉग से यहां प्रकाशित है.)