ईद-मिलादुन्नबी : ऐ ईमान वालो… अफवाहों से बचों ! शहर काजी इमाम अहमद बोले- एक मुसलमान को अफवाह फैलाने से बचना चाहिए

द लीडर। देशभर में एक तरफ जहां नवरात्री और दशहरा पर्व की धूम है तो वहीं दूसरी तरफ पैंगबर-ए-इस्लाम के जन्म दिन की तैयारियां जोरों पर हैं। ईद-मिलादुन्नबी इस बार 19 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हालांकि इसको लेकर धार्मिक स्थलों कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं। इसी कड़ी में मेरठ के किठौर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें मुस्लिम धर्म गुरुओं ने पैगंबर-ए-इस्लाम की शान में खिताब कहे और लोगों को अमन में शांति का पैगाम दिया।

ऐ ईमान वालो… अफवाहों से बचों !

कार्यक्रम में उलमा सैयद ने कहा कि, पैगंबर-ए-इस्लाम के जन्मदिवस की खुशी में जश्न-ए-चिरागां होता है। उन्होंने कहा कि ‘ऐ ईमान वालो! अगर कोई झूठा-दुष्ट व्यक्ति आपके पास कोई खबर लेकर आए, तो उसकी पुष्टि कर लें, ऐसा न हो कि, आप लोगों को अज्ञानता में नुकसान पहुंचाएं और बाद में आपको अपने किए पर पछतावा हो।’ उन्होंने कहा कि, जब पैगंबर मुहम्मद के साथियों ने एबिसिनिया में शरण ली, वे सुरक्षित थे। हालांकि, किसी ने झूठी खबर फैला दी कि, मक्का में कुरैशी को मानने वाले मुसलमान हो गए हैं। नतीजतन, कुछ साथी मक्का लौट आए, जहां उन्होंने पाया कि, रिपोर्ट सही नहीं थी। नतीजतन, उन्हें कुरैशी द्वारा सताया गया था। यह सब अफवाहों की वजह से हुआ।


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एक मुसलमान होने के नाते हमेशा किसी भी व्यक्ति द्वारा लाई गई खबर को सत्यापित और तौलना चाहिए। नकली समाचारों का प्रसार कभी भी आकस्मिक नहीं होता है जो मनोरंजन के लिए किया जा सकता है, बल्कि यह हमेशा गंभीर होता है और इसके दूरगामी प्रभाव होते हैं। इस्लाम इससे घृणा करता है।

एक मुसलमान को अफवाह फैलाने से बचना चाहिए…

शहरकाजी इमाम अहमद ने इस दौरान कहा कि, एक मुसलमान को अफवाह फैलाने से बचना चाहिए, जो केवल तभी किया जा सकता है जब कोई मुसलमान किसी समाचार को सुनकर पहले उसकी पुष्टि कर ले। पैगंबर ने वास्तव में क्या कहा, इसे प्रमाणित करने के लिए बहुत अधिक प्रयास किया। इमाम मुस्लिम ने प्रामाणिक हदीस के अपने संकलन को एक अध्याय के साथ पेश किया, जिसका शीर्षक था, “सत्यापन की श्रृंखला जिसमें कथन केवल भरोसेमंद स्रोतों से स्वीकार किए जाते हैं। इस दौरान मुसलमानों को मीडिया से जुड़ने का भी संदेश दिया गया। जिससे कि लोग मुख्यधारा में अपने अच्छे और बुरे की समझ रख सकें।


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जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. शमीम अहमद ने कहा कि, सूचना के स्रोत के रूप में जो काम करता है वह है मीडिया और विशेष रूप से साहित्य के बजाय सोशल मीडिया (प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों) में लाखों लोगों तक पहुंचने की ताकत है। अधिकांश लोग, विशेष रूप से जिनके पास ज्ञान की कमी है, वे मीडिया पर उपलब्ध हर चीज पर विश्वास करते हैं और इसकी जांच की परवाह नहीं करते हैं। और यह निहित स्वार्थ वाले लोग मुसलमानों या हिंदुओं पर नकली समाचार बनाते हैं और प्रसारित करते हैं और राजनीतिक लाभ के लिए उनके बीच नफरत पैदा करने के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं।

फेक खबरों के प्रचार-प्रसार पर लगे रोक

लोग इन खबरों पर विश्वास करते हैं और धीरे-धीरे दूसरे समुदाय से नफरत करने लगते हैं, जिसका परिणाम अंततः एक घृणास्पद, निर्णयात्मक मानसिक है। इस्लाम ने अपने शुरुआती दिनों से ही फेक न्यूज के प्रसार पर हमेशा रोक लगाई है। शांति और सुरक्षा का आनंद लेना किसी भी समाज का निर्विवाद अधिकार है। सामाजिक शांति भंग करने वाली किसी भी चीज को तत्काल हटाया जाना चाहिए। मुसलमानों को अफवाहों को फैलने से रोकना चाहिए, क्योंकि अफवाहें शांति और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं और भय को बढ़ावा देती हैं।

ईद मिलादुन्नबी : पैगम्बर मोहम्मद सहिष्णुता के प्रतीक

पैगम्बरे- इस्लाम हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक और सौहार्द के संदेशवाहक थे। इंसानियत के तरफदार और परस्पर प्यार के पैरोकार थे, इसलिए आपने मोहब्बत का पैगाम दिया तथा बुग्ज (कपट) और गीबत (चुगली) से सख्त परहेज किया। इन पंक्तियों के लेखक के मत में मानवता की मिसाल और मोहब्बत की महक का नाम है मोहम्मद (सल्लाल्लाहु अलैहि व सल्लम)। एक वाक्य में कह सकते हैं कि, हजरत मोहम्मद की सीरते-पाक (पवित्र-चरित्र-गुण) दरअसल सहिष्णुता की सरिता है जिसमें सौहार्द का सतत प्रवाह है।


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हजरत मोहम्मद का व्यक्तित्व सत्य और सद्भावना का संस्कार है तो कृतित्व इस संस्कार के व्यवहार की विमलता का विस्तार। आप चूंकि धार्मिक सहिष्णुता के पक्षधर थे, लिहाजा किसी भी किस्म के फसाद (दंगा/झगड़ा) को, जो सामाजिक सौहार्द के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देता है, नापसंद फरमाते थे। आप अम्नो-सुकून (शांति और चैन) के हिमायती थे और मानते थे कि, समाज की खुशहाली की इमारत बंधुत्व की बुनियाद पर ही निर्मित हो सकती है।

फसाद एकता के लिए कहर और सौहार्द के लिए जहर होता है। पवित्र ग्रंथ कुरआन में अल्लाह का फरमान है ‘ला यु हिबुल्लाहिल मुफसेदीन’ अर्थात्‌ अल्लाह फसाद करने वालों से मोहब्बत नहीं करता। इसी कुरआने पाक की एक और आयत है जिसमें फरमाया गया है ‘व मय्युहिब्बुल्लाहिल मोहसेनीन’ अर्थात्‌ अल्लाह अहसान करने वालों यानी सौहार्द बढ़ाने वालों से मोहब्बत करता है।


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