दिल्ली : शाही जामा मस्जिद के गुंबद का कलश टूटा, 366 साल के इतिहास में ये पहला हादसा

द लीडर : मुग़ल सल्तनत में तामीर दिल्ली की शाही जामा मस्जिद के गुंबद पर रखा सुनहरा कलश 366 साल बाद आंधी के थपेड़ों से टूटकर नीचे गिर गया. जिसने मुस्लिम समुदाय में बेचैनी और फ़िक़्र पैदा कर दी है. इस हालत पर इमाम अहमद बुखारी ने ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI)को ख़त लिखकर मदद मांगी है. दिल्ली वक़्फ बोर्ड के अध्यक्ष और ओखला से विधायक अमानतुल्लाह ख़ान ने मस्जिद का दौरा किया. और जल्द मरम्मत कराने की बात कही है. (Shahi Jama Masjid Delhi)

ताजमहल और लाल क़िला जैसी ख़ूबसूरत इमारतें बनवाने वाले मुग़ल बादशाह शाहजहां ने 1656 में जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. 1650 में इसकी बुनियाद रखी गई. 5000 हज़ार मज़दूरों ने छह साल की मेहनत से इसे तैयार किया था, जिसमें उस वक़्त 10 लाख रुपये का खर्च आया था.

तीन सदी पुरानी ये जामा मस्जिद जो ख़ुद में एक इतिहास है. मुग़लों की हुक़ूमत से लेकर अंग्रेज़ों के राज तक, इसने कई तारीख़ें बनती-बिगड़ती देखी हैं. ये दौर भी, जो भारत में एक नई तारीख़ गढ़ रहा है. जहां मस्जिदों के नीचे या उनके अहाते में मंदिरों के दावे किए जा रहे हैं. और तो और, जब जामा मस्जिद का कलश टूटा तो उसे भी मंदिरों से जोड़कर, खुदाई की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. लेकिन जामा मस्जिद की बुनियाद इतनी कमज़ोर नहीं है, न ही उसका इतिहास, जहां ये शोर पहुंच सके. (Shahi Jama Masjid Delhi)


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मस्जिद की एक तारीख़ ये भी है कि जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था. और मुसलमान देश छोड़कर पाकिस्तान का रुख कर रहे थे. तो मौलाना मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर खड़े होकर ऐतिहासिक तक़रीर की थी. जिसमें उन्होंने मुसलमानों को भारत में मौजूद दरगाह, खानकाह, उनके इतिहास और वजूद की याद दिलाते हुए वतन न छोड़ने की अपील की थी.

सोमवार को दिल्ली में भारी आंधी-बारिश आई थी. जिसमें जामा मस्जिद के गुंबद का कलश टूट गया. संग-मरमर के गुंबद पर सुनहरे कलश हैं, जो पीली धातु के हैं. इसमें दो लोगों को चोटें भी आईं. हालांकि मस्जिद और किसी हिस्से को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने केंद्र और दिल्ली सरकार पर मस्जिद की अनदेखी का इल्ज़ाम लगाया है. एआईएमआईएम के एक डेलिगेशन ने इमाम बुखारी के साथ मस्जिद का मुआयना किया. (Shahi Jama Masjid Delhi)

लाल क़िले से महज 500 मीटर की दूरी पर आबाद जामा मस्जिद की मरम्मत के लिए 1948 में हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान ने 3 लाख रुपये दिए थे. दरअसल उस वक़्त निज़ाम से मस्जिद के कुछ हिस्से की रिपेयर के लिए 75 हज़ार रुपये इमदाद की गुजारिश की गई थी. जब ये पैग़ाम उन तक पहुंचा तो निज़ाम ने कहा कि कुछ हिस्सा नहीं बल्कि पूरी मस्जिद की रियेयर कराई जाए. इसके लिए उन्होंने 3 लाख रुपये मंज़ूर किए थे.

सफेद संगमरमर और बालुआ पत्थरों से तामीर जामा मस्जिद देश की बड़ी मस्जिदों में शामिल हैं. जिसमें तीन गुंबद और 41 मीटर ऊंचाई की दो मीनारें हैं. 11 मेहराब हैं. मस्जिद की ख़ूबसूरती सैलानियों को भी खूब आकर्षित करती है. चूंकि जामा मस्जिद वैश्विक धरोहर है और इसका संरक्षण एएसआई के अधीन है तो यहां मरम्मत कार्य उसकी की मंज़ूरी से होगी. दिल्ली वक़्फ बोर्ड एक्टिव हुआ है तो इसकी प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद है. मुस्लिम समाज कलश टूटने के बाद से लगातार इसकी मरम्मत और मस्जिद के संरक्षण को लेकर ठोस क़दम उठाने की मांग कर रहा है. (Shahi Jama Masjid Delhi)


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Ateeq Khan

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