खेल में जीत-हार के जश्न पर राजद्रोह, जिनमें बाल गंगाधर तिलक मामले की तरह उदारता नहीं

मोईन खान


 

-भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा का अधिकार हासिल है, जिसमें हर किसी को अपने विचार रखने, भाषण देने की आजादी शामिल है. लेकिन ये अधिकार असीमित नहीं है. संविधान में इसकी सीमाओं का जिक्र है. ये भी कहा गया है कि इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. लेकिन ठोस वजह होनी चाहिए. भारतीय दंड संहित (IPC) की धारा-124-ए (रोजद्रोह) उसी उचित प्रतिबंध का अंग माना जा सकता है. जिसके इस्तेमाल को लेकर आजकल विवाद छिड़ा है. (Sedition Students Pakistan Cricket)

आगे की बात शुरू करने से पहले ये जान लेना जरूरी है कि, संविधान सभा में भी 124-ए पर काफी हंगामा मचा था. केएम मुंशी और सरदार भूपेंद्र सिंह मनन के कड़े विरोध के चलते 124-ए को संविधान से हटा दिया गया था. केएम मुंशी का मानना था कि राजद्रोह (124-A) लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है.

राजद्रोह का इतिहास भी जान लें. आइपीएस 1860 में आई. तब राजद्रोह, उसमें शामिल नहीं था. 1870 में (Exciting Dissatisfaction) को आइपीसी में जोड़ा गया. उस वक्त, जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के स्वर बुलंद थे. क्रांतिकारियों पर शिकंजा कसने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1896 में आइपीसी के (Exciting Dissatisfaction)में संशोधन करके उसे राजद्रोह में बदल दिया. इसकी उप-धाराएं सख्त कर दी गईं.

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अंग्रेजी हुकूमत, राजद्रोह का इस्तेमाल स्वतंत्रा सेनानियों के भाषण, लेख और जागरुकता कार्यक्रमों को दबाने के लिए किया करती थी. वैसा ही सिलसिला आज चल पड़ा है. लोकतंत्र में जनता की चुनी हुई सरकारें, राजद्रोह का इस्तेमाल उसकी नीतियों से असंतुष्ट लोगों के खिलाफ करने लग गईं. (Sedition Students Pakistan Cricket)

जिसकी कई मिसालें सामने हैं. असम के आरटीआइ एक्टिविस्ट अखिल गोगोई, लेखकर हिरण गोहिन, सीएए-एनआरसी एक्टिविस्ट. झारखंड में 10,000 से ज्यादा आदिवासियों के खिलाफ राजद्रोह लगाया गया. दिलचस्प बात ये है कि, इसमें केवल 132 लोगों को ही नामजद किया गया. बाकी के हजारों आरोपी अज्ञात हैं.

अभी राजद्रोह इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि, टी-20 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने वालों के खिलाफ राजद्रोह के अंतर्गत कार्रवाई की जा रही है. यूपी के आगरा में तीन कश्मीरी छात्रों को गिरफ्तार किया गया है. उनके खिलाफ राजद्रोह लगाया गया. बदायूं में भी एक के खिलाफ धारा-124-ए लगाई गई है. बरेली में 2 और लखनऊ में एक के खिलाफ कार्रवाई की गई. (Sedition Students Pakistan Cricket)

क्रिकेट की जीत-हार पर राजद्रोह के मुकदमे लिखे जाने के पीछे मुझे दो वजहें नजर आती हैं. पहली-ये जनता के मूल मुद्​दों, जिसमें बेरोजगारी, महंगाई और घोर गरीबी शामिल है. उससे ध्यान भटकाने की कोशिश हो सकती है. दूसरी वजह चुनाव है. आगे कई राज्यों में चुनाव होने हैं तो उसका माहौल बनाना भी एक वजह हो सकती है.

क्योंकि किसी टीम के समर्थन में नारे भर लगाना या दूसरे तरीके से समर्थन-खुशी जताना-अपराध तो नहीं हो सकता. जिसके लिए पुलिस उसे गिरफ्तार कर ले. और मुकदमा लिखकर जेल में डाल दे. कानून की नजर में भी नहीं. इसे समझने के लिए अदालत के ही दो फैसलों का सहारा लेते हैं. (Sedition Students Pakistan Cricket)


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1-जब, बॉम्बे हाईकोर्ट जांच कर रहा था कि, बाल गंगाधर तिलक का भाषण राजद्रोह के दायरे में आता है या नहीं. तब हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की थी. वो ये कि, किसी भी भाषण का विश्लेषण निष्पक्ष, स्वतंत्र और उदार भाव से किया जाना चाहिए. इस सिद्धांत के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि, तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. इसी तरह खिलाड़ियों के प्रशंसक कहीं भी हो सकते हैं. खेल सीमाओं में कैद नहीं है. खेल ही है जो, तमाम देशों की दूरियों को पाट रहा है. फिर जीत-हार पर राजद्रोह क्यों?

भारत-पाकिस्तान के बजाय अगर ये मैच किसी दूसरे देश के साथ होता. क्या तब भी यही कार्रवाई होगी, जो अभी हो रही है? या फिर अल्पसंख्यक समुदाय की जगह बहुसंख्यक समुदाय के लोग किसी दूसरे देश की जीत पर खुशी मनाएं? क्या उन पर भी राजद्रोह लगाया जाएगा? बाल गंगाधर तिलक के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणी के संदर्भ में ताजा मामले को देख सकते हैं. क्या इन कार्रवाईयों में निष्पक्षता, स्वतंत्र और उदार भाव नजर आता है?

2-बलवंत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब, जिसमें सुप्रीमकोर्ट ने कहा था-मात्र खालिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा देना, जिसमें उससे कोई अपराध न हो. वो राजद्रोह नहीं है. यहां मैं यह नहीं कह रहा कि, ऐसा करना चाहिए. मैं बस ये कह रहा हूं कि, ये अपराध नहीं है. कई बार पुलिस तर्क देती है कि, हिंसा होने की आशंका थी. इसलिए राजद्रोह लगाया. लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने राम मनोहर लोहिया केस में स्पष्ट कहा-भाषण और हिंसा में निश्चित रूप से घटित होने वाला संबंध होना चाहिए, न कि परिकल्पना पर आधारित. (Sedition Students Pakistan Cricket)

आखिर में हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि, राजद्रोह उन लोगों पर लग सकता है, जिनके लेख, भाषण से हिंसा, उकसावा हो. जैसा कि कुछ नेताओं का भरी सभा में गोली मारने के नारे लगवाना. और बाद में उस आंदोलन में शामिल आंदोलनकारियों पर गोली चल जाना. ये राजद्रोह हो सकता है.

लेकिन नेताजी पर तो कोई मुकदमा लिखा जाता है. दूसरी तरफ मात्र नारा लगा देने से, जिससे किसी तरह की कोई हिंसा नहीं हुई.उस पर मुकदमे लिखे जा रहे हैं. इससे सवाल तो खड़े ही होते हैं. 2018 में लॉ कमीशन ने अपने संवैधानिक पेपर में कहा था कि, अब वक्त आ गया है. हमें इस राजद्रोह को हटाने के बारे में सोचना चाहिए.

 

(लेखक विधि के छात्र हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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Ateeq Khan

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