द लीडर हिंदी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 40 साल बाद भी ठोस कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण में नाकाम रहने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई। एनजीटी ने कहा, ऐसा लगता है कि राज्य के अफसर खुद को कानून से ऊपर मानते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। उसने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है और इसमें ठोस कार्रवाई की जरूरत है।
एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल की पीठ ने वायु गुणवत्ता और जन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले ठोस कचरे के वैज्ञानिक निस्तारण में नाकामी का उल्लेख किया। यूपी निवासी अरविंद कुमार और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा नियम बनने के पांच साल बाद और वायु प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम-1981 के 40 साल बाद भी अधिकारी ठोस कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण करने में असफल रहे हैं।
निर्देश का पालन नहीं हुआ तो करेंगे दंडात्मक कार्रवाई
पीठ ने कहा कि उसके निर्देश के अनुरूप अगर संतोषजनक कदम नहीं उठाए गए तो वह संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करेगी। एनजीटी ने कहा कि ठोस कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण की योजना शहरी विकास सचिव द्वारा तैयार राज्य नीति के नियम 11 के अनुरूप बनाई जानी चाहिए।
एनजीटी ने वरुणा व अस्सी नदी के पुनरुद्धार के लिए बनाई समिति
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वाराणसी में गंगा से जुड़ने वाली दो सहायक नदियों वरुणा और अस्सी के पुनरुद्धार के लिए एक समिति का गठन किया है। एनजीटी ने यह कदम इन दोनों नदियों में बिना शोधित सीवेज का कचरा डालने के मामले में एक याचिका का संज्ञान लेते हुए उठाया। याचिका में कहा गया है कि कचरे के अलावा नदियों में अवैध निर्माण भी हो रहे हैं।