पेगासस मामले पर 10 अगस्त को अगली सुनवाई, जानें कैसे एक क्लिक पर आपका डेटा होता है हैक ?

द लीडर हिंदी, नई दिल्ली। पेगासस इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है. जिस वजह से संसद का सत्र भी नहीं चल पा रहा है. क्योंकि विपक्ष लगातार पेगासस के मुद्दे पर संसद में चर्चा कराने की मांग कर रहे है. लेकिन संसद में पेगासस के मुद्दे पर कोई बात नहीं हो रही है. जिस कारण लगातार संसद स्थगित कर दिया जा रहा है. वहीं अब इस पेगासस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. इस दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्य कांत की बेंच ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी और मामले पर अगली सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तारीख तय कर दी.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीर बताते हुए याचिकाकर्ताओं को याचिकाओं की प्रति केंद्र सरकार को सौंपने को कहा है. उच्चतम न्यायालय ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि, अगर इसके बारे में रिपोर्ट सही हैं तो जासूसी के आरोप गंभीर हैं.

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मामले की सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस से याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि, आपकी याचिका में अखबार की कतरन के अलावा क्या है? हम क्यों इसे सुनें? इस पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि, यह टेक्नोलॉजी के जरिए निजता पर हमला है. सिर्फ एक फोन की जरूरत है और हमारी एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है. यह राष्ट्रीय इंटरनेट सुरक्षा का भी सवाल है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि, हम मानते हैं कि यह एक गंभीर विषय है. लेकिन एडिटर्स गिल्ड को छोड़कर सारी याचिकाएं अखबार पर आधारित हैं. जांच का आदेश देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिख रहा. यह मसला 2019 में भी चर्चा में आया था. अचानक फिर से गर्म हो गया है. आप सभी याचिकाकर्ता पढ़े लिखे लोग हैं. आप जानते हैं कि कोर्ट किस तरह के मामलों में दखल देता है.

सिब्बल ने कहा कि, यह सही है कि हमारे पास कोई सीधा सबूत नहीं है. लेकिन एडिटर्स गिल्ड की याचिका में जासूसी के 37 मामलों का जिक्र है.’ सिब्बल ने व्हाट्सऐप और एनएसओ के बीच कैलिफोर्निया की कोर्ट में चले एक मुकदमे का हवाला दिया. कहा कि पेगासस जासूसी करता है, यह साफ है. भारत में किया या नहीं, इसका सवाल है.

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सरकार को नोटिस जारी करने की अपील

चीफ जस्टिस ने कहा कि, हमने पढ़ा है कि NSO सिर्फ किसी देश की सरकार को ही स्पाईवेयर देता है. कैलिफोर्निया केस का अभी क्या स्टेटस है? हमें नहीं लगता कि वहां भी यह बात निकलकर आई है कि भारत में किसी की जासूसी हुई. सिब्बल ने जवाब दिया कि, संसद में असदुद्दीन ओवैसी के सवाल पर मंत्री मान चुके हैं कि भारत मे 121 लोगों को निशाने पर लिया गया था. आगे की सच्चाई तभी पता चलेगी जब कोर्ट सरकार से जानकारी ले. कृपया नोटिस जारी करें.

पेगासस जासूसी मामला देशभर में छाया हुआ है. यहां तक की सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में लगातार कार्रवाई कर रहा है. लेकिन क्या आप जानते है पेगासस है क्या, और ये कैसे काम करता है. इस पेगासस स्पाईवेयर से किसी का फोन कैसे हैक हो सकता है.

पेगासस स्पाइवेयर क्या है और कैसे काम करता है ?

पेगासस स्पाइवेयर इजरायली साइबर इंटेलिजेंस फर्म NSO ग्रुप द्वारा बनाया गया है, जो निगरानी रखने का काम करता है. कंपनी का दावा है कि, इस फर्म का काम इसी तरह के जासूसी सॉफ्टवेयर बनाना है और इन्हें अपराध और आतंकवादी गतिविधियों को रोकने और लोगों के जीवन बचाने के एकमात्र उद्देश्य के लिए सरकारों की खुफिया एजेंसियों को बेचा जाता है. यानि की पेगासस एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो बिना सहमति के आपके फोन तक आसानी से पहुंच सकता है. और आपकी व्यक्तिगत से लेकर संवेदनशील जानकारी इकट्ठा कर जासूसी करने वाले यूजर को दे सकता है.

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क्या कर सकता है पेगासस स्पाइवेयर?

पेगासस स्पाइवेयर यूज़र के एसएमएस मैसेज और ईमेल को पढ़ने, कॉल सुनने, स्क्रीनशॉट लेने, कीस्ट्रोक्स रिकॉर्ड करने और कॉन्टेक्ट्स व ब्राउज़र हिस्ट्री तक पहुंचने में सक्षम है। एक अन्य रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि, एक हैकर फोन के माइक्रोफोन और कैमरे को हाईजैक कर सकता है, इसे रीयल-टाइम सर्विलांस डिवाइस में बदल सकता है। यह भी ध्यान देना चाहिए कि पेगासस एक जटिल और महंगा मैलवेयर है, जिसे विशेष रुचि के व्यक्तियों की जासूसी करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसलिए औसत यूज़र्स को इसका टार्गेट होने का डर नहीं है।

पेगासस को पहली बार कब खोजा गया था?

पेगासस स्पाइवेयर को पहली बार 2016 में iOS डिवाइस में खोजा गया था और फिर Android पर थोड़ा अलग वर्ज़न पाया गया। Kaspersky का कहना है कि शुरुआती दिनों में, इसका अटैक एक एसएमएस के जरिए होता था। पीड़ित को एक लिंक के साथ एक SMS मिलता था। यदि वह उस लिंक पर क्लिक करता है, तो उसका डिवाइस स्पाइवेयर से संक्रमित हो जाता था।

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पेगासस स्पाइवेयर फोन को कैसे संक्रमित करता है?

संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (OCCRP) की रिपोर्ट है कि, आखिरकार, जैसे-जैसे जनता इन तरीकों के बारे में अधिक जागरूक हो गई है और गलत स्पैम को बेहतर ढंग से पहचानने में सक्षम हो गई, ज़ीरो-क्लिक एक्सप्लॉइट्स से बचने के समाधान भी खोजे जा चुके हैं। बता दें कि पेगासस आपके डिवाइस का एक्सेस इस तरह लेता है कि आपको इसकी भनक तक नहीं पड़ेगी। ज़ीरो-क्लिक एक्सप्लॉइट्स iMessage, WhatsApp और FaceTime जैसे लोकप्रिय ऐप में मौजूद बग्स पर निर्भर करते हैं, जो यूज़र के डेटा को प्राप्त और सॉर्ट करने का काम करते हैं और कभी-कभी ऐसा अज्ञात स्रोतों के जरिए होता है।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी के एक पूर्व साइबर इंजीनियर टिमोथी समर्स का कहना है कि, यह Gmail, Facebook, WhatsApp, FaceTime, Viber, WeChat, Telegram, Apple के इनबिल्ट मैसेजिंग और ईमेल ऐप के साथ-साथ कई अन्य ऐप्स से जुड़ता है। इस तरह के ऐप्स के साथ जुड़ने के बाद लगभग पूरी दुनिया की आबादी की जासूसी की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि NSO एक इंटेलिजेंस-एजेंसी-ऐज़-ए-सर्विस की तरह काम कर रहा है।

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