द लीडर : हाशिमपुरा नरसंहार, जिसमें प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (PAC) ने 42 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया था. वो वारदात आज ही के दिन 22 मई 1987 को हुई थी. मेरठ में दंगें भड़के थे. जिसमें शहर और नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारी संख्या में पुलिस, सशस्त्र बलों की तैनाती की गई थी. लेकिन पीएसी ने जो कारनामा किया, उसने न सिर्फ आम मुसलमानों में असुरक्षा का खौफ पैदा कर दिया. बल्कि पीएसी के ऐसे जवानों का आपराधिक और सांप्रदायिक चेहरा भी बेनकाब किया. हाशिमपुरा की घटना से लेकर अब तक के तमाम मामलों में पुलिस बलों में प्रोफेशनालिज्म की कमी को लेकर सवाल उठते रहते हैं. (Hashimpura Massacre 42 Muslim Killed)
हाशिमपुरा मेरठ का एक इलाका है. रमजान के महीने में शहर में हिंसा भड़क गई थी. जिसने बाद में दंगों का रूप ले लिया. पुलिस, पीएसी की तैनाती और सेना के फ्लैगमार्च के बाद शहर शांत हुआ. लेकिन 19 मई को फिर दंगों की हवा फैली. जिसमें दस नागरिक मारे गए. शहर में सीआरपीएफ की 7 और पीएसी की 30 कंपनियां भेजी गईं थीं.
प्लाटून कमांडर सुरिंदर पाल सिंह के नेतृत्व में 22 मई को पीएसी के 19 जवान हाशिमपुरा पहुंचे. यहां लोगों को घरों से बाहर निकाला. इसमें बूढ़े-बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं. बच्चे और महिलाओं को अलग कर दिया. और करीब 50 युवाओं को ट्रक में भरकर गाजियाबाद के मुरादनगर की ओर ले गए.
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जहां इन्हें एक-एक करके गोली मारी गई. और लाशें नहर में फेंकी जाती रहीं. कुछ लोगों को हिंडन नदी में मारकर फेंका था. इसमें दो-तीन घायल बच गए थे. जिन्हेांने मुरादनगर थाने में पूरे मामले की प्राथमिकी दर्ज कराई थी.
इस नरसंहार को लेकर अल्पसंख्यक अधिकार संगठन, मानवाधिकार संगठनों ने कड़ा विरोध-प्रदर्शन कर अपनी नाराजगी जाहिकर की थी. जब यह मुद्दा देश-दुनिया में छाया, तब 30 मई को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यूपी के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के साथ दंगा प्रभावित शहर का दौरा किया था.
तब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने एक जांच समिति का गठन किया. जिसमें पीयूसीएल के अध्यक्ष (पूर्व न्यायाधीश) राजिंदर सच्चर और इंद्रकुमार गुजराल शामिल थे. बाद में गुजराल भारत के प्रधानमंत्री भी बने. समिति ने 23 जून 1987 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. (Hashimpura Massacre 42 Muslim Killed)
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अगले दिन नदी में पीएसी के हाथों कत्ल किए गए लोगों की लाशें तैरती पाई गई थीं. इस घटना ने दंगों में झुलसे मेरठ के आम मुसलमानों को हिलाकर कर रख दिया था और उनमें खौफ पैदा किया था. बाद में ये इस नरसंहार में पीएसी के 19 जवानों को आरोपी बनाया गया. मुकदमा चला. साल 2000 में 16 आरोपियों ने सरेंडर कर दिया था. बाद में वे जमानत पर रिहा हो गए थे. इस बीच 3 आरोपियों की मौत हो गई थी.
सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर इस केस का ट्रायल गाजियाबाद जिला अदालत से दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट स्थानांतरित किया गया. 21 मार्च 2015 को तीस हजारी कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 16 आरोपियों को बरी कर दिया था. इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. 31 अक्टूबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएसी के 16 जवानाों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. (Hashimpura Massacre 42 Muslim Killed)