किसानों के गुस्से का ‘MSP’ चुका पाएगी सरकार या फिर सपा को मालामाल करेगी विरोध की ये ‘फसल’

द लीडर : संयुक्त किसान मोर्चा ने लखनऊ में ऐलान कर दिया. ”अगले साल 2022 में उत्तर प्रदेश समेत पांचों राज्यों में होने वाले चुनावों में, जनता के बीच जाएंगे. सरकारी नीतियां बताएंगे. ठीक वैसे-जैसे बंगाल में किया था. जरूरत पड़ने पर दिल्ली की तरह लखनऊ की सीमाएं भी घेरने की चेतावनी दी.” मोर्चा की इस घोषणा से ठीक एक दिन पहले-शनिवार को, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, दिवंगत अजीत सिंह को श्रद्धांजलि देने उनके घर पहुंचे थे. (Farmers Protest UP Election )

एक बात साफ है. किसान आंदोलन यूपी चुनाव को दिलचस्प बनाने जा रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जिसे जाट लैंड, किसान बेल्ट के रूप में जाना जाता है. उसका बड़ा हिस्सा आंदोलन संग हैं.

Farmers Protest UP Election
पूर्व मंत्री और राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक दिवंगत अजीत सिंह को श्रद्धांजलि देते पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव. साथ में अजीत सिंह के बेटे पूर्व सांसद जयंत सिंह.

खासकर तब से, जब गाजीपुर बॉर्डर से धरना खदेड़ने की तैयारी के बीच, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत जार-जार रोए थे. उनके आंसुओं ने इस आंदोलन को दोबारा सींचा. इसलिए अब किसान इससे भावनात्मक रूप से जुड़ चुके हैं.


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जाटलैंड की एक खूबी है. ये एकजुट-एकसाथ रहता है. कभी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह इसका प्रतिनिधित्व किया करते थे. उनकी इक आवाज पर इलाके के किसान इकट्ठा हो जाया करते. (Farmers Protest UP Election )

अजीत सिंह, जोकि चौधरी चरण सिंह के बेटे हैं और राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक भी. अजीत सिंह भारत सरकार में कृषि, उद्योग और नागरिक उड्यन मंत्री भी रहे हैं.

इसी साल 6 मई को गुरुग्राम में उनका निधन हो गया था. इसलिए अखिलेश यादव शनिवार को उनके घर श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे. उन्होंने अजीत सिंह के बेटे और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी से मुलाकात की.

चुनाव के बीच किसानों का गुस्सा, किसे होगा फायदा

केंद्र सरकार ने पिछले साल 3 नए कृषि कानून बनाए. जो किसानों को मंजूर नहीं. इन्हें वापसी के लिए वे पिछले 11 महीनों से आंदोलनरत हैं. दिल्ली सीमा-सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर स्थायी आंदोलन जारी है.

जिसे गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों और विपक्षी दलों का समर्थन हासिल है. अभी किसानों की अपनी संसद चल रही है. 26 जुलाई को महिला संसद थी. जिसमें राहुल गांधी ट्रैक्टर चलाकर पहुंचे थे. (Farmers Protest UP Election )


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इससे पहले समाजवादी पार्टी भी किसानों के मुद्​दे पर विरोध-प्रदर्शन कर चुकी है. और सपा मुखिया अखिलेश यादव लगातार किसानों के मुद्​दे पर बात करते आ रहे हैं. डीजल की महंगाई, एमएसपी को लेकर घेर रहे हैं.

पश्चिमी यूपी में कितने ताकतवर हैं किसान

जाटलैंड एकजुटता के लिए मशहूर रहा. किसान एकसाथ रहते हैं. छोटे-बड़े मसलों पर यहां पंचायतें, महापंचायें होतीं. उनके फैसले स्वीकार किए जाते.

इसी जाटलैंड से 2014 में भाजपा को जो अपार समर्थन मिला. उसका जलवा 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव तक बरकरार रहा, जो सामने है. मोदी स्नेह में यहां से किसान और जाटों के बड़े सियासी घराने से आने वाले पूर्व सांसद जयंत चौधरी भी हार गए. (Farmers Protest UP Election )

किसान नेता राकेश टिकैत भी नहीं टिक पाए. लेकिन अगले साल 2022 के चुनाव में क्या सूरत होगी? किसानों के तेवरों से इसका संकेत मिलता है.

120 विधानसभा सीटों पर असरदार

पश्चिमी यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाट और किसानों का अच्छा असर रहता है. मतलब पांच मंडलों में ये सियासी बाजी उलटफेर करने का माद्​दा रखते हैं.


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इसमें मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, गौतमबुद्धनगर, बिजनौर, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, अलीगढ़, नगीना, हाथरस, फतेहपुर सीकरी जिले शामिल हैं. दलित और मुसलमानों के बाद यहां 17 प्रतिशत आबादी के साथ जाट तीसरे नंबर पर आते हैं. (Farmers Protest UP Election )

दंगे ने बिखेर डाला राजनीतिक-सामाजिक तानाबाना

2013 में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क गए थे. उसी दंगे ने इस जाटलैंड का सामाजिक और राजनीतिक तानाबाना बिखेर डाला. तब, जब इस इलाके की सामाजिक एकता बड़ी खूबी हुआ करती थी.

बाद में इसके जख्मों पर मरहम के बजाय नफरत का कड़वापन और घोला जाता रहा. और 2014 के लोकसभा चुनाव में सारे समीकरण धराशाही हो गए थे. जो फिर नहीं बन पाए. लेकिन इस बार जब राकेश टिकैत के आंसुओं ने उन जख्मों को भरने का थोड़ा काम किया है.

किसानों के नेता महेंद्र सिंह टिकैत, जोकि राकेश टिकैत के पिता हैं-उनके साथी हैं गुलाम मुहम्मद जोला. जोला दंगों के बाद अलग हो गए थे. अब उन्होंने राकेश टिकैत को गले लगा लिया है. लेकिन इस मुहब्बत का कितना असर रहेगा. ये वक्त तय करेगा. (Farmers Protest UP Election )

क्या किसानों के गुस्से को शांत कर पाएगी सरकार

नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान, दोनों अपने रुख पर अड़े हैं. सरकार कानून वापस नहीं करना चाहती. और किसान दम भर रहे हैं कि कानून वापस न होने तक लड़ाई जारी रहेगी.


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बंगाल के बाद अब उन्होंने दूसरे राज्यों के चुनावों में भी जाने का फैसला कर लिया. सवाल ये है कि क्या चुनावों तक सरकार किसानों का गुस्सा शांत कर पाएगी?

महापंचयातों में सरकार पर गरजते रहे जयंत

राकेश टिकैत के आंसुओं के बाद पश्चिमी यूपी में महापंचायतों का दौर शुरू हुआ था. एक तरफ किसान नेताओं के मंच सज रहे थे. दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस के.

जिसमें प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी अपनी महापंचायतों से सरकार पर निशाना साध रहे थे. गलतियों पर बात कर रहे थे. इससे उन्होंने किसानों के बीच फिर से अपनी जगह बनाई है. (Farmers Protest UP Election )

 

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Ateeq Khan

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