द लीडर : जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के छात्रनेता रहे एक्टिविस्ट उमर खालिद ने दिल्ली दंगों को गहरी साजिश बताते हुए कई विरोधाभासों की तरफ इशारा किया है. उमर के वकील त्रिदीप पेस ने अदालत में दावा किया कि चार्जशीट पूरी तरह से मनगढ़ंत हैं. एक व्यापक तरीके से एफआइआर तैयार की गई है. सब कुछ पका-पकाया. जबकि उमर का भाषण देश को जोड़ने वाला था. उसमें गांधी के विचार शामिल थे. (Delhi Riots Umar Khalid )
उमर खालिद पर दिल्ली दंगों की साजिश का आरोप है. सोमवार को दिल्ली की एक अदालत में एफआइआर 59-2020 पर सुनवाई हुई. एडवोकेट त्रिदीप पेश ने उमर की पैरवी की.
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र में दिए गए उमर खालिद के उस भाषण की वीडियो फुटेज भी दिखाई गई. जिसके आधार पर उमर पर दंगें की साजिश का इल्जाम है. त्रिदीप ने कहा-उमर की स्पीच का जो हिस्सा दिखाया गया. दरअसल, वो भाजपा नेता अमित मालवीय के एक ट्वीट का हिस्सा है. उसी को समाचार चैनलों ने प्रसारित किया.
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पेस ने कहा, ” अभियोजन पक्ष की सामग्री एक यू-ट्यूब वीडियो है. पत्रकार की वहां मौजूद रहने की जिम्मेदारी नहीं थी. इसे एक राजनेता के ट्वीट से कॉपी कर रहे हैं. यह पत्रकारिता की मौत है.”
पेस ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत से अपने मुवक्किल उमर की जमानत मंजूर किए जाने को लेकर तर्क दिया. कहा-एफआइआर 59-2020, जिसमें भारतीय दंड संहिता और यूएपीए की धाराएं शामिल हैं. खालिद के 17 जनवरी 2020 को दिए भाषण के एक कथित वीडियो फुटेज पर निर्भर है. वीडियो, यू-ट्यूब पर जारी हुअस था. समाचार चैनलों ने प्रसारित किया. (Delhi Riots Umar Khalid )
पेस ने कहा-दिल्ली पुलिस द्वारा मीडिया घरानों को पत्र लिखकर कथित वीडियो की फुटेज भी मांगी गई थी. लेकिन चैनलों ने जवाब में कहा कि उनकी कहानी की बुनियाद मालवीय का वो कथित ट्वीट था.
पेस ने दावा किया कि पुलिस ने मूल वीडियो ही नहीं देखा था. इसके बावजूद प्राथमिकी दर्ज करने के लिए 6 मार्च 2020 तक इंतजार करते हुए समाचार चैनल के प्रसारण पर भरोसा किया.
उमर के बचाव पक्ष में पेस बोले,“6 मार्च को जब पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की, तो उनके पास कोई दूसरी ठोस जानकारी नहीं थी. आमतौर पर जब कोई अपराध होता है, तो अपराध के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की जाती. लेकिन यहां साफ है कि दिल्ली पुलिस के पास रिपब्लिक टीवी और सीएनएन न्यूज 18 के अलावा कुछ भी नहीं था. (Delhi Riots Umar Khalid )
पेस ने कहा- “न्यायपालिका का अविश्वास यूएपीए, पोटा है. ये इसलिए बनाए गए ताकि आपके (अदालत के) हाथ बंधे रहें.” पेस के अनुसार, “निष्पक्ष दुनिया” में एफआईआर 59/2020 को “पहले स्थान पर” दर्ज नहीं किया जाना चाहिए था.
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दिल्ली दंगों के ताल्लुक से करीब 750 प्राथमिकी दर्ज हुईं. खालिद को उनमें से किसी में भी आरोपी नहीं बनाया गया. लेकिन 6 मार्च, 2020 को, किसी को भी शामिल करने के लिए “एक खाका उभरा”.
“यह एक व्यापक तरीके से प्राथमिकी तैयार की गई थी. ताकि आपको, लोगों को फंसाने के लिए बयान मिलें. सभी कथन इस तरह के विचार के बाद हैं. कुछ गवाह, कुछ कहते हैं… सब कुछ पक गया है… चार्जशीट पूरी तरह से मनगढ़ंत है.’
वकील ने आगे कहा,
“ये एक तरह का मजाक है. 6 मार्च को आपके पास कुछ भी नहीं था. और जब भी आप किसी को गिरफ्तार करना चाहते थे, तब आपको बयान मिले. इस एफआईआर में कोई भी आरोपी नहीं होना चाहिए. यह एक सोची समझी एफआईआर है.” (Delhi Riots Umar Khalid )
पेस ने एक गवाह के बयान के पहलू पर भी तर्क दिया, जहां बाद वाले ने दावा किया था कि उसने खालिद और सह-आरोपी ताहिर हुसैन और खालिद सैफी को एक बैठक करते देखा था. वकील ने दावा किया कि उसी गवाह ने पुलिस को बाद में दिए गए बयानों में अपने पहले दिए गए बयान का खंडन किया था.
पेस ने तर्क दिया, “यह वही दर्जी है जो अलग-अलग लोगों के लिए कपड़े बनाता है. बयान में गवाह खुद का खंडन कर रहा है.” (Delhi Riots Umar Khalid )