इंद्र मेघवाल की मौत ने दलितों का कलेजा खरोंच दिया, कांग्रेस विधायक का इस्तीफ़ा-रो पड़ीं अभिनेत्री सलमा आग़ा

द लीडर : आज़ादी के जश्न में जातिवाद के कांटों ने दलित समाज का कलेजा खरोंच दिया है. सवर्ण वर्ग के एक टीचर ने इस समाज के नौ साल के बच्चे को इस क़दर पीटा कि 23वें दिन उनकी मौत हो गई. दलित बालक का जुर्म बस इतना था कि उसने मास्टर छैल सिंह की मटकी यानी घड़े से पानी पी लिया था, जो मास्टर को बर्दाश्त नहीं हुआ. इंद्र मेघवाल की मौत के बाद घटना पर हंगामा मचा है. इस बीच राजस्थान के बारां अटरू से मेघवाल समुदाय के कांग्रेस विधायक पानाचंद मेघवाल ने इस्तीफ़ा दे दिया है. जिसने जाति और धर्म के मुद्​दे पर भाजपा को घेरने में जुटी कांग्रेस की मुश्किल बढ़ा दी है. वहीं, बॉलीवुड की जानीमानी अभिनेत्री सलमा आग़ा, इंद्र मेघवाल की मौत पर अपने आंसू नहीं रोक पाईं. (Indra Meghwal Dalit Rajasthan)

घटना राजस्थान के जालोर के सुराणा गांव की है. इंद्र मेघवाल गांव के ही स्कूल में पढ़ते थे, जहां 20 जुलाई को मास्टर ने उन्हें पीटा था. जिसमें इंद्र मेघवाल की कान की नसें फट गईं थीं. इंद्र की मौत के बाद पुलिस ने मास्टर को गिरफ़्तार कर लिया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी घटना दुख जताते हुए न्याय का आश्वास दिया है. लेकिन कांग्रेस के विधायक पानाचंद मेघवाल ही इससे संतुष्ट नहीं हैं.

राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष को भेजे अपने इस्तीफ़े में विधायक पानाचंद मेघवाल ने जातीय आधार पर दलितों के उत्पीड़ पर अपनी टीस ज़ाहिर की है. उन्होंने कहा, ” जिस दलित और वंचित वर्ग के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान में समानता के अधिकार का प्रावधान किया था. आज उसकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है. आज़ादी के 75 साल बाद भी एक बच्चे को मटका छूने पर अध्यापक द्वारा पीट-पीटकर मार दिया जाता है. तो कहीं घोड़ी चढ़ने पर दुत्कारा जाता है. मैंने कई विधानसभा में दलित-वंचितों के सवाल उठाए. लेकिन पुलिस एक्शन नहीं लेती. दलितों को लगता है कि उन्होंने इस समाज में पैदा होकर ही ग़लती कर दी है. अगर हम कुछ नहीं कर सकते तो हमें पद पर रहने का कोई हक़ नहीं है. मैंने जिस पार्टी के साथ काम किया, उसी से मेरा समाज दुखी-बेबस है.” (Indra Meghwal Dalit Rajasthan)

पानांचद मेघवाल के इस्तीफ़े को राजनीतिक रंग-रूप और सियासी लाभ के तौर पर देखा जा सकता है. लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि इंद्र मेघवाल की घटना ने हर इंसान को झंकझोर दिया है. इसके विरोध में दलित समुदाय में भारी आक्रोश है. ये राजस्थान के बाहर पूरे देश में दिखाई दे रहा है. यूपी के बस्ती में रुधौली कस्बे में कई लोगों ने जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ विरोध-मार्च किया है. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से लेकर कई हिस्सों से विरोध सामने आए हैं.

भारतीय समाज में जातिवाद कैंसर से भी ज़्यादा घातक है. संविधान रचयिता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा वेटिंग फॉर वीज़ा में अपने स्कूल की घटना का ज़िक्र किया है. आंबेडकर लिखते हैं-: स्कूल में मुझे पानी की टोंटी छूने की इजाज़त नहीं थी. जबकि दूसरे बच्चे इसी से पानी पिया करते थे. मेरे लिए प्यास बुझाना मुश्किल था. अपनी क़िताब में उन्होंने छुआछूत और भेदभाव की तमाम घटनाओं को कलमबद्ध किया है. आंबेडकर भी तब 9 साल के थे और इंद्र मेघवाल भी नौ साल के ही थे, टीचर की पिटाई से जिनकी मौत हो गई.


इसे भी पढ़ें-अपनी मटकी से पानी पीने पर मास्टर ने 9 साल के दलित छात्र को पीटा-23वें दिन हो गई मौत


 

सवाल है कि 121 साल के सफ़र में मतलब अंबेडकर के बचपन से लेकर 2022 में इंद्र मेघवाल तक, जातिवाद पर आख़िर क्या बदला है? भारत आज़ाद है, लेकिन दलित समाज जातिवाद में क़ैद है. (Indra Meghwal Dalit Rajasthan)

राजस्थान में इसकी जड़े कहीं ज़्यादा गहरी हैं. जहां पिछले साल 2021 की फ़रवरी में जयपुर में दलित समाज के आईपीएस अफ़सर सुनील कुमार धनवंता को अपनी शादी में घोड़ी पर चढ़ने के लिए भारी पुलिस सुरक्षा का सहारा लेना पड़ा था. सुनील कुमार ने आईआईटी दिल्ली से बीटेक और जेएनयू से पढ़ाई की है. यूपीएससी में हिंदी माध्यम के टॉपर रहे हैं. भारतीय विदेश सेवा में तैनात निशा धवल से शादी की है. लेकिन दलित होने की वजह से उनके लिए घोड़ी पर बैठना आईआईटी और यूपीएससी के एंट्रेंस से भी ज़्यादा मुश्किल था. चूंकि ये जोड़ा इतने ऊंचे ओहदे पर था तो स्थानीय पुलिस-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने सुरक्षा के बीच बिंदौरी की रस्म पूरी कराई.

दरअसल, राजस्थान में दलित दूल्हों के घोड़ी पर बैठकर जाने पर बड़े विवाद होते रहते हैं. फिर चाहें वे आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर कितने ही मज़बूत क्यों न हों. बाक़ी जातीय आधार पर उत्पीड़न की ख़बरें देशभर में आम हैं ही. ऐसा नहीं है कि दलितों का उत्पीड़न रोकने के लिए कोई क़ानून नहीं है. 1989 में संसद ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, एससी-एसटी एक्ट पारित किया था. लेकिन आंबेडकर के शब्दों में देखें तो संविधान तब तक कागज़ का पुलिंदा भर है, जब तक इसे लागू करवाने वाले लोग ईमानदार नहीं हैं. (Indra Meghwal Dalit Rajasthan)

द लीडर हिंदी के साथ ख़ास बातचीत में बॉलीवुड की बेबाक़ अभिनेत्री और गायिका सलमा आग़ा इंद्र मेघवाली की घटना सुनकर फफककर रो पड़ीं. ये कहते हुए, ” ये कैसी आज़ादी है, जहां एक बच्चे को उसकी जाति की वजह से पानी पीने का हक़ नहीं है. बल्कि टीचर द्वारा इतना पीटा जाता है, जिससे उनकी मौत हो जाती है.”

सलमा आग़ा बीइंग मदर संस्था चलाती हैं, जो बच्चों की परवरिश के लिए काम करती है. उन्होंने एक बीइंग मदर-मैं विनती करती हूं कि भारत को ख़ूबसूरत बनाईए. हमारा देश बेहद सुंदर है. जाति-धर्म और नफ़रत की इसमें कोई जगह नहीं होनी चाहिए. (Indra Meghwal Dalit Rajasthan)

घटना को लेकर चंद्रशेख़र आज़ाद की भीम आर्मी बेहद आक्रामक हैं. यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने आक्रोश जताया है. और समाज के शिक्षाविद, पत्रकार, एक्टिविस्ट जातीय भेदभाव के ख़िलाफ़ बेहद कड़ा रुख़ किए हैं. जालोर में इंद्र मेघवाल के गांव में प्रदर्शन के दौरान पुलिस के लाठीचार्ज की भी आलोचना की जा रही है.


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Ateeq Khan

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