द लीडर : अपने बेबाक अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के चाहने वालों का दायरा केवल बिहार तक सीमित नहीं है. बल्कि देश के हर हिस्से में लालू के राजनीतिक कौशल-वाचन शैली के कायल मिल जाएंगे. लेकिन बिहार में उनके प्रति दीवानगी का आलम निराला है. एक शख्स तो अपनी छाती पर लालू यादव का टैटू बनावाए है. इसे भी पढ़ें : जेपी आंदोलन से उभरे एक ऐसे नेता, जिन्होंने कभी घुटने नहीं टेके
ये संयोग है कि जब गुरुवार को ही पत्रकारों ने बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से एक सवाल किया. जिसमें लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में अंतर पूछा? तेजस्वी ने जवाब में कहा-”लालू और नीतीश जी में इतना ही अंतर है कि, लालू जी गरीबों को बसाने का काम करते हैं. और नीतीश जी गरीबों को उजाड़ने का. किसानों को फसल का वाजिब दाम नहीं मिलता, लेकिन DM को मिलता है.”
तेजस्वी यादव गुरुवार को पटना में थे. जहां उन्होंने पार्टी कार्यालय पर वरिष्ठ नेताओं के स्थापना दिवस को सिलसिले में बैठक की. इसके बाद जब वह बाहर निकले, तो उन्हें वो शख्स मिला, जो अपनी छाती पर लालू यादव का टैटू बनवाए है.
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तेजस्वी ने अपनी गाड़ी रोककर उसका टैटू देखा. बात की और इसे इसे ट्वीटर पर साझा करते हुए कहा, ‘ सीने पर लालू प्रसाद जी की तस्वीर गुदवाए ऐसे प्रेमियों और समर्थकों के शर्तरहित भरोसे, जुनून और मुहब्बतों को सहेज कर रखना है. उसमें इजाफा करते रहना. ये काफी बड़ी जिम्मेवारी है. आपके अथाह प्रेम, विश्वास और अटूट समर्थन के सहयोग के बिना ये सब हासिल होना संभव नहीं है.’
बता दें कि लालू प्रसाद यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री हैं. उनकी पत्नी राबड़ी देवी भी तीन बार मुख्यमंत्री रही हैं. पटना यूनिवर्सिटी से छात्र राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव जेपी आंदोलन से मुख्यधारा की सियासत में उतरे थे. यही वो आंदोलन था जिसके कारण 1975 में देश में इमरजेंसी लागू हुई थी.
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तब 1974 में पटना यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए उन्हें बिहार छात्र संघर्ष समिति का अध्यक्ष चुना गया था. और इसी समिति ने सरकार के खिलाफ पूरे बिहार के युवाओं को लामबंद करके सड़कों पर उतार दिया था.
जेपी आंदोलन, जिसे बिहार मूवमेंट के नाम से भी जाना जाता है-उसमें छात्रनेता के तौर पर लालू प्रसाद यादव की बड़ी भूमिका रही थी. जिसने उन्हें आगामी 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत दिलवाकर पहली बार संसद भेजा था.