द लीडर : बिहार केंद्रीय चयन परिषद (सिपाही) भर्ती में कथित भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के मुद्दे पर घिरी नीतीश सरकार में एक और कारनामा सामने आया है. मुजफ्फरपुर जिला स्वास्थ्य विभाग में 780 पदों पर नियुक्तियों में योग्यता-दक्षता को किनारे रख दिया गया. और रिश्वतखोरी, सोर्स-सिफारिश के बल पर अयोग्य अभ्यर्थियों का नियोजन कर लिया गया. जब भ्रष्टाचार का हल्ला मचा. तब जांच बैठी. और इन्हें सभी नियुक्तियों को रद कर दिया गया.
रिश्वतखोरी के बल पर हुईं नियुक्तियों के रद होने पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार को निशाने पर लिया है. एक स्थानीय मीडिया रिपोर्ट को साझा करते हुए तेजस्वी ने कहा-, ‘बिहार में श्री नीतीश कुमार की अनुकंपाई सरकार कैसे चल रही है. उसका ये नमूना मात्र है. एक होता है गुड गवर्नेंस, एक बेड और नो गवर्नेंस. बिहार में कतई गवर्नेंस नहीं है.’
मुजफ्फरपुर जिला स्वास्थ्य विभाग ने सदर अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों के विभिन्न पदों के लिए 3 महीने की नियुक्ति का आदेश निकाला था. इसके अंतर्गत डॉक्टर, वार्ड ब्यॉय, एएनएम, डाटा एंट्री ऑपरेटर समेत अन्य पदों पर 780 अभ्यर्थियों की नियुक्ति हुई. आरोप है कि नियुक्तियों में योग्यता, स्किल और दक्षता को किनारे रख दिया गया. इन भर्तियों में जमकर रिश्वत का खेल चला.
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इसको लेकर योग्य अभ्यर्थियों ने काफी हल्ला मचाया. शासन और प्रशासन से शिकायतें कीं. तब डीएम प्रणव कुमार ने नियुक्तियों की जांच के लिए एक जांच समिति बनाई. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में अनियमितताएं पाईं. इसके बाद प्रशासन ने नियुक्तियां रद कर दीं और शासन को रिपोर्ट भेज दी है.
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नियुक्ति में योग्यता और कौशल की अनदेखी की गई थी. दरअसल, इसको लेकर एक आवेदक का ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें रिश्वतखोरी की बातें सामने आई थीं.
नियुक्ति रद किए जाने को लेकर डीएम ने कहा है कि इस मामले में आगे की कार्यवाही का निर्णय शासन स्तर से होगा. यहां से जांच रिपोर्ट भेज दी गई है.
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बीती 7 जून को तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर एक लेख लिखा था. जिसमें केंद्रीय चयन परिषद-सिपाही भर्ती में कथित घोटाले का जिक्र किया था. दरअसल, परिषद के एक ओएसडी पर यौन उत्पीड़न के आरोप हैं. और उन्हें बचाने की कोशिशों को लेकर ही तेजस्वी ने अपने लेख में सरकार पर गंभीर प्रश्न खड़े किए थे.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो सुशासन बाबू के रूप में पहचाने जाते हैं. इससे उनकी इस छवि को आरजेडी लगातार चुनौती दे रही है.