द लीडर हिंदी : अगर आप उनमें से हैं जिन्हें कॉफी पीना पसंद है. तो ये खबर आपके लिये है.जी हां एक बेहतरीन सुबह गर्मा-गर्म कॉफी पीना किसे पसंद नहीं होती. एक कप कॉफी में आपके मूड को ठीक करने की ताकत होती है. कई बार ये देखने में आता है कि हम जरा सा सुस्त होने लगते हैं, तो एक कप कॉफी हमें फ्रेश कर देती है. इसलिए कुछ लोग दिन में कई कप कॉफी पी जाते हैं.वही अगर आकड़े निकाले जाए तो कॉफ़ी दुनिया भर में कोरोड़ों लोगों के रोजमर्रा की जरूरत है. ऐसा नहीं है कि उनकी मीटिंग या होस्टिंग ज्यादा होने की वजह से उन्हें अक्सर ज्यादा कॉफी पीनी पड़ती है. बल्कि वे खुद ही इसके आदि हो जाते हैं.वैसे हम आपको बता दें कि कॉफी के कुछ साइड-इफेक्ट्स भी होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह आई कहां से है और शरीर पर कैसा असर डालती है.नहीं जानते तो आज जान लिये.
बतादें न्यूयार्क के शोर-शराबे वाली सड़कों से लेकर इथोपिया की शांत पहाड़ियों तक में कॉफी लाखों लोगों के रोजमर्रा के जीवन की एक बुनियादी जरूरत है. मानव सभ्यता में पिछली 15 सदियों से भी ज्यादा समय से कॉफी का एक महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है. कुछ लोगों ने इसके प्रभाव को 17वीं-18वीं शताब्दी में रेनेसां को बढ़ावा देने वाला बताया है. वहीं आधुनिक दुनिया के कई बौद्धिक और सांस्कृतिक विचारों की नींव रखी गई थी.
कॉफी का प्रमुख तत्व कैफीन है. इसे अब दुनिया में सबसे अधिक पिया जाने वाला ऐसा साइकोएक्टिव पदार्थ माना जाता है, जो हमारे सोचने-समझने के तरीके को प्रभावित करता है.कॉफी को कॉफिया अरेबिका नाम के पौधे से निकाला जाता है, जो मूल रूप से इथोपिया में पाया जाता है.वही दुनिया के कुल कॉफी उत्पादन का 90 फीसदी से अधिक हिस्सा विकासशील देशों से आता है. इसमें प्रमुख रूप से दक्षिण अफ्रीका के अलावा वियतनाम और इंडोनेशिया शामिल हैं. वहीं इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में होता है. वही ऐसा कहा जाता है कि 9वीं शताब्दी में काल्डी नाम के एक बकरी चराने वाले ने कॉफी के फल खाने के बाद अपनी बकरियों के ऊर्जा स्तर में बढोतरी देखी. इसके बाद उसने इसे खुद पर आजमाया. इसके बाद से ही स्थानीय लोगों ने इसे भिगोकर खाना और पौधे की पत्तियों से चाय बनाना शुरू कर दिया. ऐतिहासिक वृत्तांतों से पता चलता है कि 14वीं शताब्दी में यमन में सूफियों ने सबसे पहले कॉफी के बीजों को भूनकर वह पेय पदार्थ तैयार किया था, जिसे आज हम कॉफी के नाम से जानते हैं.
पूरे ऑटोमन साम्राज्य में 15वीं शताब्दी तक कॉफी हाउस खुल गए थे. बाद में ये यूरोप तक फैले जो वहां व्यापार. राजनीति और नए विचारों के निर्माण के हब बन गए.जानकारी के मुताबीक 20वीं सदी के मशहूर जर्मन दार्शनिक और समाजशास्त्री जुरगेन हैबरमास जैसे कुछ विद्वान तो यहां तक कहते हैं कि कॉफी के प्रभाव के बिना ज्ञानोदय नहीं हुआ होगा.वही हैबरमास के मुताबिक 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान कॉफी हाउस आलोचना के केंद्र बन गए. जहां जनता की राय और विचार बने.
कॉफी का पूंजीवाद के विकास में योगदान
बतादें ऐसा माना जाता है कि प्रमुख विद्वान भी इस कॉफी के बहुत बड़े प्रशंसक थे. फ्रांसीसी दार्शनिक, वोल्टेयर, एक दिन में 72 कप तक कॉफी पी जाते थे. उनके हमवतन डाइडरॉट ने अपने 28-खंडों वाली ‘इनसाइक्लोपीडी’ तैयार करने के लिए कॉफी पर ही भरोसा किया था. अमेरिकी लेखक, माइकल पोलन के मुताबिक ‘इनसाइक्लोपीडी’ को ज्ञानोदय के एक सिद्धांत कार्य के रूप में देखा जाता है.मानव विज्ञानी प्रोफेसर टेड फिशर अमेरिका के वेंडरबिल्ट विश्वविद्यालय में कॉफी अध्ययन संस्थान के निदेशक हैं. वो कहते हैं कि कॉफी ने पूंजीवाद के उदय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
एक साइड से ली गई जानकारीे के मुताबीक “कॉफी ने इतिहास की दिशा बदल दी और विचारों के विकास को प्रोत्साहित किया, इससे ज्ञानोदय और पूंजीवाद का जन्म हुआ.” वो कहते हैं, “यह मेरे लिए महज एक दुर्घटना नहीं लगती कि लोकतंत्र, तर्कसंगतता, अनुभववाद, विज्ञान और पूंजीवाद के बारे में विचार ऐसे समय में आए, जब इसका उपभोग लोकप्रिय हो गया. यह पदार्थ, धारणा और एकाग्रता का विस्तार करता है. यह निश्चित रूप से उस संदर्भ का हिस्सा था जिसने पूंजीवाद का नेतृत्व किया.वही फिशर कहते हैं, ”उस समय, व्यवसायियों को लगा कि कॉफी का उपयोग उत्पादकता बढ़ाने के लिए किया जा सकता है, इसलिए उन्होंने अपने कर्मचारियों को कॉफी देना शुरू किया और अंततः उन्हें कॉफी ब्रेक दिया.
जानिए कॉफी का स्याह पक्ष
बतादें कॉफी के इतिहास का एक स्याह पक्ष भी है. इसने गुलामों के शोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फ्रांसीसियों ने अफ्रीकी गुलाम का इस्तेमाल हैती के बागानों में किया. वहीं ब्राजील 1800 के दशक की शुरुआत तक अफ्रीकी गुलामों का इस्तेमाल कर दुनिया की एक तिहाई कॉफी का उत्पादन कर रहा था. आज दुनिया में रोजाना दो अरब कप से अधिक कॉफी की खपत होती है. इस तरह यह हर साल 90 अरब डॉलर के उद्योग में योगदान देती है.वही गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) हेइफर इंटरनेशनल दुनिया भर में गरीबी और भूख मिटाने के लिए काम करती है. इसके मुताबिक पिछले 600 सालों में बहुत थोड़ा सा बदलाव आया है.
हेइफर का कहना है कि लोगों का रंग अभी भी कॉफी उद्योग की रीढ़ बना हुआ है. जो कम पैसे में काम कर रहे हैं. दुनिया के 50 देशों में 12.5 करोड़ लोग जीवन यापन करने के लिए कॉफी पर निर्भर हैं. इनमें से आधे से अधिक लोग गरीबी में रहते हैं.
जानिए हमारे शरीर पर कैसे प्रभाव डालती है कॉफी?
पीने के बाद कॉफी का कैफीन पाचन तंत्र से गुजरते हुए आंत के जरिए खून में मिल जाता है. हालांकि इसका प्रभाव तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) तक पहुंचने के बाद शुरू होता है. ऐसा कैफीन की एडेनोसिन नाम के रासायन से समानता की वजह से होता है, जिसका उत्पादन शरीर प्राकृतिक रूप से करता है. एडेनोसिन आमतौर पर सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम को धीमा कर देता है. इससे हृदय गति में कमी आती है और सुस्ती और आराम की भावना पैदा होती है.कैफीन नर्व सेल की सतह पर मौजूद एडेनोसिन रिसेप्टर्स को बांधता है, ठीक उसी तरह से जैसे ताले में चाबी फिट होती है. लेकिन इन रिसेप्टर्स को बाधित कर यह विपरीत प्रभाव पैदा करता है.
यह रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को थोड़ा बढ़ा सकता है, मस्तिष्क की गतिविधि को बढ़ा सकता है, भूख कम कर सकता है और सतर्कता को बढ़ावा दे सकता है. इससे लंबे समय के लिए एकाग्रता बढ़ सकती है. कैफीन का प्रभाव मनोदशा को सुधारने, थकान कम करने और शारीरिक प्रदर्शन में सुधार लाने तक पर हो सकता है. एथलीट कभी-कभी इसका इस्तेमाल सप्लिमेंटरी डाइट के रूप में भी करते हैं.वही कैफीन का यह प्रभाव 15 मिनट से दो घंटे तक रह सकता है. इसके लेने के पांच से 10 घंटे बाद शरीर कैफीन को हटा देता है, लेकिन इसका प्रभाव लंबे समय तक बना रह सकता है.
प्रतिदिन कैफीन की सीमा 400 मिलीग्राम
हर से ज्यादा किसी भी चीज का सेवन करना सेहत के लिये हानिकार होता है. कैफी के मामले में भी ऐसा है. दरअसल कैफीन का अधिकतम लाभ लेने के लिए विशेषज्ञ इसे सीमित मात्रा में लेने की सलाह देते हैं.विशेषज्ञों का कहना है कि सुबह जब आप कॉफी का पहला कप पीते हैं तो, लंबे समय तक उसका प्रभाव बनाए रखने के लिए दोपहर में कॉफी पीने से बचें. दिशा-निर्देश के मुताबिक एक स्वस्थ वयस्क के लिए प्रतिदिन कैफीन की सीमा 400 मिलीग्राम है. यह चार-पांच कप कॉफी के बराबर है.हर व्यक्ति की सीमा अलग-अलग होती है. इस सीमा से अधिक होने पर कैफीन होने पर अनिद्रा, चिंता, दिल की धड़कन बढ़ना, पेट में परेशानी, मितली और सिरदर्द जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
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