द लीडर। आज हम भारत देश के लोग स्वतंत्रता से रहते हैं। और सभी धर्मों का सम्मान करते है। इसके साथ ही राष्ट्रीय पर्व पर हम लोग देश का राष्ट्रीय गीत गाते हैं। वो राष्ट्रगान हो या राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, देश में पहला राष्ट्रगान कब और कहा गाया गया था। देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है। राष्ट्र गौरव के इस अवसर पर अपने राष्ट्रगान जन गण मन की चर्चा जरूरी है। 110 साल पहले 27 दिसंबर 1911 को यह गान सार्वजनिक मंच से सर्वप्रथम गूंजा था। इसके बाद सारण के लाल देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति के रूप में संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 को जन गण मन को राष्ट्रगान और वंदे मातरम को राष्ट्रगीत घोषित किया था।
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सारण के लोग आज भी इसकी चर्चा कर गौरवान्वित होते हैं। वह गौरवशाली दिन आज है, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पहली बार जन गण मन को गाया गया था। इस गान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर और उनकी भांजी सरला ने हिदी व बांग्ला में इसे सस्वर गाया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन सत्र, शीर्षक से लिखी गई पुस्तक में जन-गण-मन की राष्ट्रगान के तौर पर स्वीकार्यता का वर्णन किया गया है। इसमें इसपर तमाम उल्लेख है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में बताया गया देश का राष्ट्रगान
जन गण मन को राष्ट्रगान अंगीकार करने के पूर्व ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में बता दिया गया था कि, हमारा राष्ट्रगान यही है। आजादी के पहले 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक न्यूयार्क में हुई थी। दुनिया भर के प्रतिनिधियों के साथ भारत का प्रतिनिधिमंडल भी पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में इस सभा में पहुंचा था। सदस्यों ने जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल से राष्ट्रगान बताने को कहा तो उन्होंने जन गण मन को ही बताया था। यूनाइटेड नेशन जेनरल एसेंबली यानी यूएनजीए को प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रगान की रिकार्डिंग भी सौंपी थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस वाकये का जिक्र अपने एक पत्र में किया है।
बांग्ला की साधु भाषा में लिखा गया है राष्ट्रगान
राष्ट्रगान जन गण मन बांग्ला की साधु भाषा में लिखा गया है। इस गान में तत्सम शब्दों का खूब इस्तेमाल हुआ है। वैसे हिन्दी के अध्यापकों का मानना है कि राष्ट्रगान में जो संज्ञाएं हैं, उसमें से कई को क्रिया की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। राष्ट्रगान में पांच छंद हैं। इन छंदों में भारतीय संस्कृति, सभ्यता समेत स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन किया गया है। राष्ट्रगान बनने से पहले ही, इस गीत को देहरादून के द दून स्कूल ने इसे अपना आधिकारिक गीत बना रखा था। 1945 में आई फिल्म हमराही में भी यह गीत राष्ट्रगान बनने के पहले इस्तेमाल हुआ था।
जब पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाया गया ‘जन-गण-मन’
बता दें कि, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार यों ही नहीं मिला, वह इसके लिए सर्वथा उपयुक्त और योग्य साहित्यकार थे। वह विश्व साहित्यकारों की श्रृंखला की ऐसी मजबूत कड़ी है, जिनकी एक रचना-जन-गण-मण-भारत का राष्ट्र गीत है, तो दूसरी रचना-आमार सोनार बांग्ला-बांग्लादेश का राष्ट्र गीत है। यही नहीं, श्रीलंका के राष्ट्रगीत की रचना में भी उनके सकारात्मक और रचनात्मक परामर्शों की अपनी प्रासंगिकता है। गुरुदेव ने जन-गण-ज्ञन का पहला ड्राफ्ट 1908 में लिखा था. शान्तिनिकेतन में वो जगह आज भी सुरक्षित है,जहां उन्होंने इस गाने को लिखा था.
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भारत के मुक्ति संग्राम में 1911 का साल बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस साल जॉर्ज पंचम भारत आए और तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंग्स के कहने पर बंग-भंग का निर्णय रद्द किया। बिहार और उड़ीसा को एक अलग राज्य का दर्जा दे दिया था। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के न्याय के प्रति भरोसा पैदा हुआ। कांग्रेस का 27वां अधिवेशन 26 दिसंबर,1911 से कोलकाता में प्रस्तावित था।यह सच है कि 1911में कांग्रेस के मॉडरेट नेता चाहते थे कि अधिवेशन में सम्राट दंपति का महिमामंडन किया जाए,लेकिन इस बात के लिए टैगोर तैयार नहीं हुए।लेकिन, कांग्रेस के जलसे में जॉर्ज की प्रशंसा भी की गई और उन्हें धन्यवाद भी दिया गया।
…तब जन-गण-मन को राष्ट्रगान नहीं माना गया था
भारत में रिवाज है कि पहले ‘सर्वशक्तिमान भगवान’ की आराधना की जाती है, फिर कार्यक्रम शुरू होता है. उनका लिखा ‘जन गण मन’ पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले गाया गया था। 5 स्टैंजा का यह गीत राष्ट्रगान नहीं माना गया था। आखिरी स्टैन्जा में एक लाइन थी: ‘निद्रितो भारतो जागे’ मतलब ‘सोता इंडिया जाग गया है’. इसका इस्तेमाल जवाहर लाल नेहरू ने ‘Tryst with destiny’ स्पीच में किया था.’जन गण मन’ के बाद जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में भी एक गाना गाया गया था. सम्राट के आगमन के लिए यह दूसरा गाना रामभुज चौधरी द्वारा रचा गया था. यह हिंदी में था और इसे बच्चों ने गाया था,बोल थे-बादशाह हमारा….’ सत्ता-समर्थक अख़बारों ने ख़बर कुछ इस तरह दी कि जिससे लगा कि सम्राट की प्रशंसा में जो गीत गाया गया था वह टैगोर ने लिखा था.
जन-गण-मन में ‘अधिनायक’ शब्द पर हुआ था विवाद
जन-गण-मन में ‘अधिनायक’ शब्द पर एक विवाद शुरू हो गया। कहां गया कि ‘जन-गण-मन’ब्रिटिश जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा गया था।देशभर में यह विवाद शुरू हो गया कि, अधिनायक और भारत का भाग्यविधाता कौन है? गीत के अंग्रेजी अनुवाद में टैगोर ने राज राजेश्वर को किंग ऑफ ऑल किंग्स लिखकर विरोधों को और हवा दे दी। टैगोर ने आरोपों को बेबुनियाद बताया। उन्होंने 1912 में ही स्पष्ट कर दिया कि गाने में वर्णित ‘भारत भाग्य विधाता’के केवल दो ही मतलब हो सकते हैं: देश की जनता,या फिर सर्वशक्तिमान ऊपर वाला—चाहे उसे भगवान कहें, चाहे देव.टैगोर के कहे का अर्थ था कि वे किसी अंग्रेज शासक को भारत का भाग्य विधाता नहीं कह रहे बल्कि ये शब्द ईश्वर या देश की जनता के लिए हैं.
24 जनवरी, 1950 को ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान घोषित किया
24 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान पर हस्ताक्षर करने के लिए संविधान सभा आयोजित की गई और इसी दौरान देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने आधिकारिक रूप से ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान और ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रगीत घोषित किया. मूल गीत संस्कृतनिष्ठ बंग्ला में पांच पैरा हैं। जिनमें से पहले पैरा के हिंदी रूपांतरण को ही भारत के राष्ट्रगान के तौर पर अपनाया गया है.
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