चंद्रशेखर जोशी
शासक जब निकम्मे और अत्याचारी हो जाएं तो लोग खुद को बचाने उठ खड़े होते हैं। दुनिया में हर जगह ऐसा ही हुआ। नीदरलैंड इस जज्बे की खास मिसाल बना। बलिदानी लोगों का नेता भी खामोश था। यहां के लोग आज भी दुनिया के सबसे सहिष्णु और उदार माने जाते हैं।
ऐसा था कि 16वीं-17वीं सदी में पूरे यूरोप में राजा निरंकुश हो गए। तड़क-भड़क, शानो-शौकत, ऐशो-आराम ही बादशाहत बन गई। टैक्सों के बोझ से दबे अभागे लोगों के लहू से पेरिस के आलीशान महल बने। राजसी चोगा हटा दें तो राजा बेढंगे, कुरूप और घिनौने थे।
इस चोगे को बचाने के लिए समाज में मजहबी झगड़े, दंगे-फसाद आम थे। यूरोप की सबसे सुंदर नीदरलैंड की धरती समुद्र सतह से गहरी है। इस धंसे हुए हॉलैंड को हमेशा डूबने का खतरा रहता है। समुद्र की लहरों से लडऩे वाले यहां के लोग फौलादी थे।
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बताते हैं 15वीं सदी के आसपास हॉलैंड यूरोप की तिजारत का केंद्र बन गया। इस मंडी में सभी मुल्कों के व्यापारी पहुंचते थे। खेतों में अव्वल दर्जे के मसाले, कपास और खाद्यान्न की पैदावार थी, उद्योगों में माल तैयार होता था। एंटवर्प यूरोप का मालदार शहर बन गया। हैप्सबर्ग के चार्ल्स पंचम के जमाने से पहले तक व्यापारियों को कई रियायतें थीं। शहरों के शासन की बागडोर व्यापारी समूहों के हाथ में ही थी।
आगे कुछ और भी हुआ। कई देशों के व्यापारी जब नीदरलैंड में जमा होने लगे तो नए विचार भी पनपने लगे। उन दिनों यूरोप में प्रोटेस्टेंट मत फैल रहा था। व्यापारियों का एक बड़ा हिस्सा इस मत का समर्थन करने लगा।
चार्ल्स पंचम और बाद में शासक बने उसके बेटे फिलिप द्वितीय को नया विचार कतई पसंद न था। उसने नए मतावलों को कुचलने की बड़ी कोशिशें कीं। नीदरलैंड में नरसंहार रचे गए। न जाने कितनों को फांसी पर लटकाया गया और कितनों को खेतों में जला दिया, इतिहास में इसका कोई हिसाब लगाने वाला भी न रहा।
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फिलिप को तब भी चैन नहीं आया तो उसने एल्बा के ड्यूक को गवर्नर जनरल बनाया और एक खूनी परिषद का गठन किया। इस परिषद के नरसंहार और लंबी मारकाट का बयान नहीं किया जा सकता।
1568 में इनक्विजिशन ने एक फैसला दिया और नीदरलैंड के सारे निवासियों को काफिर घोषित कर मौत की सजा सुना दी। करीब 30 लाख आदमियों को एक साथ मौत का फरमान जारी कर दिया गया। अब मनुष्यों के प्राण हरने के कारनामे तेज हो गए। स्पेन की निर्दयी फौजें सुंदर धरती की हर प्यारी चीज का सत्यानाश करने लगीं।
जब नीदरलैंड पर स्पेन के जुल्म बढ़ते गए तो एक प्यारा जवां नेता आगे आया। उसके नक्श-कदम, छरहरा बदन, उसकी युक्ति का कोई तोड़ न था। न बोझिल था, न हारता था, उसकी बुद्ध का कोई जवाब न था। उसे प्रिंस विलियम आफ ऑरेंज भी कहते थे। विलियम ज्यादा बोलते न थे तो उनको खामोश विलियम भी कहा गया।
जब सब कुछ नष्ट हो रहा था तो अपनी धरती को बचाने का जिम्मा आम लोगों के हिस्से आ गया। विलियम लुटे-पिटे लोगों के अगवा बन गए। हॉलैंड के इन अभागे जांबाजों ने स्पेन की फौजों को डुबोने के लिए शरहदों पर बने समुद्र-बांधों की दीवारें तोड़ डालीं।
कुछ ही समय में उत्तरी सागर का पानी हॉलैंड में भरने लगा। ये बेरहम लड़ाई हर जीवन को खत्म करने पर आमादा हो गई। सब कुछ लुट गया और प्रिय शहर हार्लेम को बचाना कठिन हो गया। चहुंओर भूख और बीमारी फैल गई।
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यहां एक जगह है लाइदन। जब दुश्मनों ने इस शहर को घेर लिया तो भूखे लोग उन पर टूट पड़े। कंकाल की माफिक शरीर स्पेनवालों से कहते कि हममें मजहब का कोई बंटवारा नहीं। हम घास, चूहे, कुत्ते खाएंगे पर हार नहीं मानेंगे। जब कुछ नहीं बचेगा तो एक हाथ को चबा डालेंगे, दूसरा हाथ तुमसे लड़ता रहेगा। जब आखिरी घड़ी आएगी तो हम अपने प्रिय शहर को जला डालेंगे और खुद भी भष्म हो जाएंगे पर तुमको हरगिज भीतर घुसने न देंगे।
लाइदन की धरती पर कहीं भी हरी घास नहीं बची, पेड़ों पर एक भी हरा पत्ता नहीं रहा, आदमी के अलावा सारे जीव भूख मिटाने को खत्म हो गए। तब भी खाल पर लिपटी मानव हड्डियां दुश्मनों से लड़ती रहीं। समुद्र की लहरें अंदर घुसती चली गईं। लाइदन वासी चिल्लाते रहे-ऐ लाइदन हम तुझे संकट में नहीं छोड़ेंगे, तेरे साथ हम समुद्र में समा जाएंगे। इतिहास में इस जोश की कोई मिशाल नहीं है।
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समुद्री बांध टूटते गए, धरती पर प्रलय शुरू हुआ। सुनो ! लेकिन नहीं हुआ। स्पेनी फौजें डर के मारे भाग निकलीं, लहरों के साथ हॉलैंड के दूसरे हिस्सों से जहाज भोजन और सामान लेकर शहर में प्रवेश कर गए।
इन जांबाजों ने अपने प्यारे लड़ाके बचा लिए और लाइदन भी बचा लिया। अपनी धरती बचाने की इस शानदार लड़ाई की याद में बना लाइदन विश्वविद्यालय आज भी दुनिया में मशहूर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)